कार्यकर्ताओं ने तरेरी आंखें, CM रघुवर के नेतृत्व में एसेम्बली चुनाव हुआ तो 25 सीटें भी नहीं जीत पायेगी भाजपा

झारखण्ड में विधान सभा चुनाव इस साल के अंत में होने हैं। चुनाव को देखते हुए राज्य की रघुवर सरकार उन तमाम तरह की प्रलोभन टाइप्ड योजना शुरु कर दी हैं, जो रुपये से शुरु होते हैं और रुपये पर जाकर खत्म होते हैं। इसके लिए उनकी जो टीम हैं, वह यह भी नहीं देख रही हैं कि किसानों से आशीर्वाद लिया जाता है या किसानों को आशीर्वाद दिया जाता है, चूंकि फिलहाल कहने को तो यहां लोकतंत्र हैं, पर झारखण्ड में राजतंत्र का परिदृश्य साफ दिखाई पड़ रहा हैं, जिस कारण अगर कोई सीएम रघुवर को आइना दिखाने का काम करता हैं, तो उसे औकात में रहने का संदेश भी सुना दिया जाता है।

फिलहाल भाजपा में अभी जातीय आधार पर, जो राजनीति करने में सक्रिय है, उनकी सोच हैं, कि इस बार जब विधानसभा का चुनाव हो, तो वह रघुवर दास के नेतृत्व में हो, पता नहीं केन्द्र ने ऐसी घोषणा की है या नहीं, पर सूत्र बताते है कि जिन्हें फिलहाल झारखण्ड का प्रभार सौंपा गया है, उन ओम प्रकाश माथुर का कहना है कि अभी अगर ये  घोषणा कर दी जाती है, कि रघुवर दास के नेतृत्व में चुनाव होगा तो ये जल्दबाजी होगी, अभी वे झारखण्ड की वस्तुस्थिति देखेंगे तभी कुछ बोल पायेंगे।

इधर सोशल साइट पर भाजपा के युवा नेता संजय पोद्दार ने एक पोस्ट डाला – “झारखण्ड में झारखण्ड के विकास पुरुष मुख्यमंत्री रघुवर दास के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जायेगा, केन्द्रीय नेतृत्व को बहुत-बहुत बधाई।” चूंकि भाजपा में फिलहाल जातीयता चरम पर हैं। वैश्य-साहु-तेली समुदाय के लोगों की चाहत हैं कि रघुवर दास के नेतृत्व में चुनाव हो,और फिर वे मुख्यमंत्री बने।

दूसरी ओर जो रघुवर दास को अंदर तक जानते हैं, उनके व्यवहार और कार्यशैली को देख, स्पष्ट कहते हैं कि अगर रघुवर दास के नेतृत्व में विधानसभा का चुनाव हुआ तो भाजपा को लेने के देने पड़ जायेंगे, क्योंकि जनता तो दूर, इस व्यक्ति को भाजपा कार्यकर्ता भी पसन्द नहीं करते, अगर भाड़े के कार्यकर्ता जो इन दिनों पार्टी में आकर अपना आशियाना बना रहे हैं, और इन पर उनको लग रहा है कि वे मजबूत होते जा रहे हैं, तो उन्हें इस खुशफहमी में रहने का पूरा अधिकार है।

सोशल साइट में जैसे ही उक्त युवा नेता ने अपने विचार को प्रकट किया, कई लोगों ने उक्त पोस्ट पर तीखी टिप्पणी की, तो कई आपस में ही उलझ गये।  शक्ति रामायण सिंह कहते है कि अगर ऐसा हुआ तो “गइल भाइस पानी में” कहावत चरितार्थ हो जायेगी। कविन्द्र कुमार तो व्यंग्य करते हुए कहते है कि ऐसे में “81+  कम  क्यों बोलना? बोलने में क्या जाता है।”। प्रकाश दूबे की बात माने तो “झारखण्ड डूबोकर केन्द्रीय नेतृत्व होश में आयेगा।” अर्पिता दत्ता सूत्रधार की माने तो “मोदी वेभ, नॉट रघुवर दास वेभ।”

एक कट्टर भाजपा कार्यकर्ता विक्की बाबू तो कहते है कि “25 सीट से ज्यादा नहीं नोट कर के रखियेगा।” यहीं नहीं संजय पोद्दार के जवाब में वे विक्की बाबू यह भी कहते है कि “मेरे विचार रघुवर दास जी के नेतृत्व में चुनाव लड़ने के संबंध में था, अगर हमलोग बिना किसी के नाम से या मोदी जी के नाम से लड़ते तो ज्यादा फायदा होता, क्योंकि कार्यकर्ता हो या विधायक या सांसद हो रघुवर जी से नाराजगी लगभग सभी को हैं, ये बात और है कि सभी खुलकर नहीं कहते, लेकिन मैंने जो अनुभव किया हैं, वो बता दे रहा हूं, पार्टी अगर 65 सीटे ले आये तो हमलोगों को और क्या चाहिए।”

कट्टर भाजपा कार्यकर्ता विक्की बाबू की बातों में दम हैं, ये सच्चाई है कि बहुत कम ही भाजपा कार्यकर्ता है, जो रघुवर दास की कार्यशैली से प्रसन्न है, बहुसंख्य नाराज है। अति प्रतिष्ठित नेता जो भाजपा में हैं, वे तो रघुवर दास से इतने नाराज है कि उन्होंने कई समयों में अपने विचार राष्ट्रीय स्तर के नेताओं के समक्ष रख चुके हैं, एक मंत्री तो रघुवर दास के साथ मंच तक शेयर करना नहीं चाहते, कैबिनेट की बैठक में जाना तो दूर की बात है।

इधर विपक्ष भी ईश्वर से प्रार्थना कर रहा है कि भाजपा का शीर्षस्थ नेतृत्व रघुवर दास के नेतृत्व में विधानसभा का चुनाव लड़ें ताकि रघुवर सरकार के चाल-चरित्र को जान रही जनता के पास उसे ज्यादा दिमाग लगाना नहीं पड़ें, क्योंकि राज्य में किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्या, लगातार भूख से हो रही मौत, युवाओं को नौकरी के नाम पर दिखाये जा रहे दिवास्वप्न, लगातार हो रहे पलायन, महिलाओं के साथ हो रहे दुष्कर्म की घटना, राज्य में खूलेआम पुलिस और प्रशासन द्वारा हो रही जमीन की लूट तथा मोमेंटम झारखण्ड के नाम पर हाथी उड़ाने की प्लानिंग ऐसी कई असंख्य बाते हैं, जिसको लेकर जनता खुद-ब-खुद आंदोलित हैं, उसे तो बस बटन दबाने की आवश्यकता है, स्थिति तो ऐसी है कि खुद सीएम रघुवर दास ही न, कही अपनी सीट से हार जाये।