बाबूलाल मरांडी का गंभीर आरोप – शराब घोटाले में अधिकारियों के साथ मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन भी समान रूप से भागीदार

भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी ने भाजपा प्रदेश कार्यालय में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कहा कि छ्त्तीसगढ़ी शराब कंसलटेंट, सप्लायरों और झारखंड के उत्पाद विभाग ने मिलकर झारखंड के सरकारी राजस्व को 450 करोड़ रुपए से अधिक का उत्पाद राजस्व का घाटा पंहुचाया है। शराब घोटाले में भारी व्याप्त गड़बड़ियों को लेकर उनके द्वारा शुरुआती दिनों से लेकर लगातार कई बार मुख्यमंत्री को पत्राचार करने के बाद भी उनके द्वारा कोई कार्रवाई नहीं किया जाना साफ बता रहा है कि इस घोटाले में मुख्यमंत्री दोषी पदाधिकारियों के साथ समान रूप से भागीदार और हिस्सेदार हैं।

श्री मरांडी ने कहा कि कायदे से जिन पदाधिकारियों ने गलत सलाह दिया, उन पर कार्रवाई होनी चाहिए। परन्तु लगातार सचेत करने के बाद भी सीएम हेमन्त सोरेन ने ध्यान नहीं दिया। उनकी मांग है कि जिन अफसरों की मिलीभगत से राज्य को 450 करोड़ रुपए के राजस्व की क्षति हुई है। उन पर एफआईआर दर्ज हो। सीएम कार्रवाई नहीं करेंगे तो ऊपर की एजेंसी तो जांच करेगी ही। राज्य हित में उन एजेंसियों से भी इस मामले में कार्रवाई का आग्रह है।

श्री मरांडी ने कहा कि सारा मामला छुपा और दबा रहा। झारखंड सरकार तब सक्रिय हुई जब छत्तीसगढ़ में ईडी का छापा पड़ा और कई सुराग मिले। झारखंड सरकार के उत्पाद विभाग के सचिव और आयुक्त को नोटिस दिया गया, तब जाकर मामले में हड़कंप मचा। आश्चर्य तो इस बात का है कि 450 करोड़ रुपए रिकवर का नोटिस दिया जाता है और काम भी इन्हीं से लिया जाता है।

उत्पाद विभाग ने इनको 450 करोड़ जुर्माना का नोटिस ऐसे वक्त पर लगाया है जब इनकी अवधि का मात्र 10-12 दिन ही बची हुई है। आज भी सरकार इन्ही एजेंसियों से काम करवा रही हैं। इससे सरकार की मंशा को समझा जा सकता है। कार्रवाई की बजाय नोटिस दिया जाता है ताकि बचाव के लिए कोर्ट का सहारा लिया जा सके और ये लोग अपनी चमड़ी बचा सके।

छत्तीसगढ़ में ईडी की ताबड़तोड़ कार्रवाई और ईडी की पूछताछ से घबराये एक्साइज डिपार्टमेंट के अधिकारियों ने मैन पावर एजेन्सीज ए टू जेड इंफ्रा सर्विसेज लि., प्राइमवन वर्कफोर्स प्रा. लि., सुमीत फैसिलिटिज लि., ईगल हंटर सोलूशन लि. पर क़रीब 450 करोड़ रूपये का पेनाल्टी करने की काग़ज़ी ख़ानापूर्ति कर अपनी गर्दन बचाने की कोशिश की जा रही है।

श्री मरांडी ने कहा कि झारखंड में शराब घोटाला एक बड़ा भ्रष्टाचार के रूप में सामने आया है। हमने इस संदर्भ में कई बार मुख्यमंत्री को पत्राचार किया। इसके बावजूद सरकार कुंभकर्णी निंद्रा में सोई रही। मैंने 18 और 19 अप्रैल 2022 को लगातार दो पत्र लिखकर सरकार को आगाह किया। 09 दिसंबर 2022 को भी पत्र लिखा। 19 अप्रैल को लिखे पत्र में मैंने साफ तौर पर कहा कि पहले जो टेंडर हुआ था। उसमें से इनके चहेते कंपनी जिनसे सरकार के अधिकारी, दलाल, बिचौलियों ने डील कर रखा था।

उन लोगों के मनमाफिक टेंडर नहीं होने के कारण सरकार को दुबारा टेंडर निकालना पड़ा। उसी वक्त जानकारी मिली कि किन कंपनियों के लिए सारी कवायद की रही है। हमने चारों कंपनियों ए टू जेड इंफ्रा सर्विसेज लि., प्राइमवन वर्कफोर्स प्रा. लि., सुमीत फैसिलिटिज लि., ईगल हंटर सोलूशन लि. के नाम पहले ही बता दिया कि सारा खेल और चक्रव्यूह इनके लिए ही रचा गया है। बाद में टेंडर भी इन्हीं चारों कंपनियों को ही मिलना सारी चीजों को आईने की तरह साफ कर देता है। उस वक्त 2300 करोड़ राजस्व की बड़ी बड़ी घोषणाएं की गई थी।

श्री मरांडी ने कहा कि भारतीय जनता पार्टी राज्य के तमाम मुद्दों को लेकर संघर्ष करती रही है। उसमें एक बड़ा मुद्दा करप्शन का है। आज झारखंड में हर क्षेत्र में भ्रष्टाचार मचा हुआ है। बालू, पत्थर, कोयला, शराब सभी जगह लूट खसोट मची है। झारखंड में नित नए भ्रष्टाचार प्रतिदिन अखबारों की सुर्खियां बटोर रही है। प्रदेश में ईडी की छापामारी जारी है। कई जेल जा चुके हैं और कई कतार में खड़े हैं। लगता है कि झारखंड में सरकार ही भ्रष्टाचार के लिए बनी है। कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं है। ईडी जब भ्रष्टाचार को लेकर सीएम को नोटिस जारी करती है तो वे आदिवासी सीएम का राग अलापने लगते हैं।

श्री मरांडी ने कहा कि हम जब सरकार को पत्र के माध्यम से राज्य में व्याप्त गड़बड़ियों को लेकर सचेत करते हैं तो उस पर कार्रवाई की बजाय हमें पत्रवीर की उपाधि दी जाती है। सरकार को जो उपाधि देनी हो दे, हमें कोई परवाह नहीं, क्योंकि जनता ने इसी काम के लिए हमें चुना है। सत्ता पार्टी हमें भले ही नेता प्रतिपक्ष नहीं समझती परंतु हम राज्य के पूर्व सीएम के साथ एक नागरिक तो हैं।

इस नाते राज्य में व्याप्त गड़बड़ियों को लेकर कोई पत्र लिखा जाता है तो सरकार को उस पर कार्रवाई करनी चाहिए जो सरकार नहीं करती। सरकार और मुख्यमंत्री को लगातार सचेत करने के बाद भी कहीं कोई कार्रवाई और सुनवाई नहीं होना कई सवाल खड़े करती है।  स्वाभाविक है, जब मुख्यमंत्री मामलों पर संज्ञान नहीं लेंगे तो उन्हें भी इसकी सजा देर सबेर भुगतनी ही पड़ेगी।