अश्विनी राजगढ़िया जी, ये आर्टिकल मैंने आपके लिए और आप जैसे लोगों के लिए लिख रहा हूं, कृपया इसे पढ़े जरुर…

सबसे पहले तो आत्महत्या करने की इच्छा रखनेवाले ये गिरह बांध लें कि वे अगर सोचते हैं कि आत्महत्या कर लेने से उनकी जिंदगी या सारी समस्याएं खत्म हो गई, तो यह सोचना ही सबसे बड़ी मूर्खता है, क्योंकि इससे न तो जिंदगी खत्म होती हैं  और न ही समस्याएं, बल्कि ये समस्याएं नई शरीर धारण करने पर फिर से आ खड़ी होंगी, वो भी विकराल रुप धारण कर।

अब सवाल उठता है कि जब-जब जिंदगी मिलेगी, समस्याएं आयेंगी तो आप कितने जन्मों तक आत्महत्या करते रहेंगे और भागते रहेंगे। इसलिए जिंदगी से भागिये नहीं, ईश्वर ने जितनी जिंदगी दी है, उस जिंदगी को जीये, अगर आपके साथ कोई गलत करता हैं, तो करने दें, उसके द्वारा की गई गलत की सजा, वो खुद भोगेगा, लोग भोगते ही हैं, कोई समझ जाता है, पर कोई समझ नहीं पाता, अगर वो नहीं समझ पा रहा तो इसका मतलब यह थोड़े ही है कि समस्याएं उसके पास है ही नहीं।

आप जान लीजिये, जिंदगी समाप्त कर देने पर सिर्फ आपका शरीर नष्ट होता है और कुछ नहीं बदलता, बाकी सब कुछ ज्यों का त्यों रहता है। परम तेजस्वी योगी परमहंस योगानन्द तो साफ कहा करते थे ऐसा नहीं कि कोई चोर, कोई धोखेबाज, कोई झूठ बोलनेवाला व्यक्ति अपने शरीर से मुक्ति पा लेगा तो अगले जन्म में देवदूत बन जायेगा, दरअसल वो जहां से उसने पहले की जिंदगी छोड़ी हैं, उसे वहां से ही फिर से प्रारम्भ करना पड़ेगा, तो जब हमें फिर से वहीं से प्रारम्भ करना है, तो फिर आत्महत्या करने से क्या फायदा?

आपके आस-पास जो भी हैं, वो आपका ही किया हुआ है, वो आपको ही भोगना है, जब तक आप उसे भोगेंगे नहीं, आपका पिंड नहीं छुटना है। ये अलग बात है कि आपको भोगवाने के लिए ईश्वर ने किसे आपके सामने प्रस्तुत कर दिया, हो सकता है कि वो आपका सगा हो या कोई पराया भी हो सकता है। लेकिन जब आप कष्टों या सुखों को भोगते हैं, और दोनों अवस्थाओं में ईश्वर को साथ रखते हैं, तो पायेंगे कि जो कष्ट था वो कम होता गया और जो सुख के पल थे, वे बढ़ते चले गये।

अश्विनी जी, आपका एक ऑडियो वायरल हो रहा हैं, जो आपने आत्महत्या करने के पहले, अपने पापा को संबोधित किया था। आप उसमें जो कह रहे हैं, वो पूर्णतः सत्य है, इसे कोई भी व्यक्ति स्वीकार करेगा, जो सत्य को जानता हैं। हां, जिसने जिंदगी में कभी सत्य स्वीकारा ही नहीं, झूठ से ही महल खड़े किये, उसके लिए ये आर्टिकल भी हमनें नहीं लिखी है।

आप इतने सुंदर विचारधारा के मालिक है कि मैं क्या कहूं। मैंने खुद देखा कि कोरोनाकाल में आपने आगे बढ़कर लोगों को हंसना सीखाया, आनन्द दिया। कई एंबुलेंस झारखण्ड से बाहर दूसरे राज्यों में भी सेवाओं के लिए भेजें, भला ये सुंदर काम करनेवाला व्यक्ति इस प्रकार की हरकत करें, हमें अंदर से झकझोर दिया। आत्महत्या करनेवाला व्यक्ति कभी भी मुक्ति नहीं पा सकता, और आप पर तो ईश्वरीय कृपा है, जो भी संकट आया हैं, वो क्षणभंगुर हैं, वो जल्द खत्म हो जायेगा।

आप ईश्वर पर विश्वास न कर, आत्महत्या का शार्टकट कैसे अपनाने की कोशिश की। वो तो ईश्वरीय कृपा हैं कि आप बच गये, और आप तथा आपके परिवार की जिंदगी नरकमय होने से बच गई। अब आप स्वयं को संभालियें, खुद पर भरोसा रखिये, खुद पर भरोसा रखना ही, ईश्वर पर भरोसा रखने का नाम है। फिर देखिये, आपके विरोधी, आपके समक्ष कैसे दंडवत् होते हैं?

जब भी आपको कष्ट हो, ईश्वर को हृदय से पुकारिये, वो  ईश्वर कही दूसरी जगह नहीं बैठा रहता, वो आपके हृदय में ही विराजता है, वो आपकी मदद करता है। ये जिंदगी आपकी नहीं, ईश्वरीय देन है। उसका आनन्द लीजिये। मेरे उपर ही तो कभी रघुवर सरकार, तो कभी हेमन्त सरकार कृपा कर देती है। झूठे मुकदमें करवा देती हैं। तो क्या मैं भी आत्महत्या कर लूं। आत्महत्या तो किसी समस्या का हल नहीं।

मैं जब सत्य पर हूं तो हमें कौन डिगा सकता है? सत्य की रक्षा का जो व्रत लेता हैं, परीक्षाएं तो उसी की होती है। ध्रुव, प्रह्लाद जैसे महान महात्माओं को कितना झेलना पड़ा, पर उन्होंने तो आत्महत्या नहीं की, बल्कि उसका सामना किया और वे आज भी इन्हीं कारणों से जग में प्रतिबिंबित है।

इसलिए स्वयं को पहचानिये। समस्याओं से भागिये नहीं। समस्याओं को अंगीकार करिये। माता-पिता की सेवा करिये। पत्नी और बच्चों में दिल लगाइये। जब कभी निराशा घेरे, तो आशाओं के पहाड़ खड़ा करनेवाले महान आत्माओं की जीवनी पढ़िये। फिर देखिये, आप के जीवन में बहारें कैसे आती है?

केस-मुकदमों से डरिये नहीं। समस्याओं से डरिये नहीं। ये आते ही हैं आपको बेहतर बनाने के लिए। हमारे पास तो इतनी समस्याएं है कि पूछिये मत। जिसको मैंने बनाया, वो भी हमें भूल चूका तो क्या करें? उसके लिए रोएं, अरे हम आगे का देखेंगे।आत्महत्या  महापाप है। आत्महत्या समस्याओं का समाधान नहीं। ये आपके और आपके परिवार की जिंदगी को नर्क बना देती है। जिंदगी जीने का नाम है। चलने का नाम है। दुख से भागना नहीं। दुख को अंगीकार करना है। किसी ने ठीक ही लिखा/गाया है…

दुख हुए तो सब जलते हैं, पथ के दीप निगाहों में।

इतनी बड़ी इस दुनिया की, लंबी अंधेरी राहों में।

हम राह तेरे कोई अपना तो हैं, हो…,

सुख है इक छांव ढलती, आती है, जाती है, दुख तो अपना साथी है…