अपनी बात

कमाल है! आशुतोष चतुर्वेदी के केन्द्रीय सूचना आयुक्त बनने के बाद, वे लोग भी उन पर ढेले चला रहे हैं, जो ढेला फेंकने का भी मुहूर्त देखते हैं कि कब ढेला फेकेंगे तो उनका नुकसान नहीं होगा

प्रभात खबर के प्रधान सम्पादक आशुतोष चतुर्वेदी जी पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी की कृपा हुई हैं। वे केन्द्रीय सूचना आयुक्त बनाये गये हैं। जिसको लेकर मार्केट में तरह-तरह की चर्चा हैं। कई लोग अब उनके खिलाफ खुलकर लिखने और बोलने भी लगे हैं। ये वो लोग हैं, जो कभी उनके अंडर में काम किये हैं और उनके समय में उनसे डरते भी थे, कि कहीं जनाब की नौकरी न चल जाये, इसलिए वे चुप रहना ज्यादा पसंद करते थे। जब तक नौकरी करते रहे, उनकी क्रांति नहीं दिखी। लेकिन जैसे ही नौकरी पूरी हो गई। प्रभात खबर से नाता टूटा। अब वे क्रांतिकारी हो गये हैं।

ये लोग उनके खिलाफ लिख रहे हैं। जिनके खिलाफ लिखना तो दूर, उनके समक्ष खड़े होने में पसीने छूट जाते थे। ये वो लोग है, जो खुद को नहीं देखते, लेकिन दूसरों में गड़बड़ियां खुब देखते हैं। अपने बेटे की शादी करते हैं, और चुन-चुनकर ऐसे-ऐसे लोगों को आमंत्रित करते हैं, जिन्हें एक सज्जन व्यक्ति कभी आमंत्रित नहीं कर सकता यानी जब उनको मौका मिलता है, वे उक्त व्यक्ति के खिलाफ बोलने/लिखने से नहीं चूकते और समय आने पर उनके साथ गर्व के साथ फोटो खिंचाने से भी नहीं चूकते।

अब इसे क्या कहेंगे, दोहरा मापदंड या कुछ और? अब इस पर हम कुछ नहीं कहेंगे, आप चिन्तन करिये। मेरा तो मानना है कि किसी पर ढेला वहीं फेंके, जो ढेला फेंकने लायक हो। वो नहीं, जो ढेला फेंकने का भी मुहूर्त देखता हो कि कब ढेला फेंकेंगे तो हमारा नुकसान नहीं होगा। जो लोग किसी की पोस्ट पर कमेन्ट्स करते हैं। उन पर भी ये बात लागू होती है। ये क्या, आपकी अपनी औकात नहीं और चल दिये, हरिवंश पर बोलने को, बैजनाथ मिश्र पर बोलने को, आशुतोष चतुर्वेदी पर बोलने को…।

भाई ये तो पूर्णतः सत्य है कि कोई व्यक्ति उसी को महत्वपूर्ण पद सौंपता हो, जिसे वो जानता है, समझता है, जिसने उसकी सपने में भी कभी कोई अहित नहीं किया हैं और समय-समय पर उसके लिए अपनी औकात के अनुसार कुछ भी करने को तैयार रहा है। इतिहास देख लीजिये। हर जगह यही बात लागू होती है। कभी अटल बिहारी वाजपेयी ने, नरेन्द्र मोदी को भी इसी प्रकार से गुजरात की सत्ता संभालने के लिए आमंत्रित कर दिया था।

नीतीश कुमार ने भी हरिवंश को इसी प्रकार से राज्यसभा में भेजा था। हरिवंश ने और अपने आपको वहां बेहतर सिद्ध किया। अब वे राज्यसभा के उप सभापति है। दुनिया में कोई भी व्यक्ति कही भी, किसी की कृपा से पहुंच सकता है। लेकिन वो वहां कितने दिन तक टिका रहेगा, ये उसकी बुद्धिमता और कौशल पर निर्भर करता है। कभी महेन्द्र सिंह धौनी को किसी ने क्रिकेट में मौका दिया। लेकिन धौनी अगर अपना कौशल नहीं दिखाते, तो निःसंदेह वे क्रिकेट से बाहर होते, आज की तरह शीर्ष पर नहीं होते।

रही बात पत्रकार और पत्रकारिता की, तो आज कितने लोग हैं, जो पत्रकारिता धर्म और पत्रकार होने का सामर्थ्य रखते हैं? मैंने कई पत्रकारों को देखा है, कि वे गांधी के नाम का जमकर उपयोग करते हैं और गांधी के नाम पर ही वे अपने हित के लिए किसी को भी धोखा दे सकते हैं/देते हैं। धनबाद में ही एक मेरे परम मित्र हैं। उन्होंने एक गांधीवादी पत्रकार के बारे में बताया कि उसे उन्होंने तीन लाख रुपये दिये कि जाकर एक व्यक्ति को दे दीजिये। बाद में, जिस व्यक्ति को उक्त राशि मिलनी थी। हमारे मित्र को मिले, तो उन्होंने पूछा कि क्या आपको तीन लाख रुपये मिला। उक्त व्यक्ति ने कहा कि नहीं।

जब उन्होंने कहा कि मैंने गांधीवादी पत्रकार से भिजवाया था। उक्त व्यक्ति ने कहा कि उसने नहीं दिया। अगर देता तो जरुर कहता कि मिला। अब, बताइये, उक्त गांधीवादी पत्रकार को क्या कहियेगा। वो गांधीवादी पत्रकार, आज भी जिंदा है। लेकिन, उससे किसको फायदा हो रहा है। जब मैं धनबाद में ईटीवी में था। तो उक्त गांधीवादी पत्रकार से मेरी मुलाकात हुई थी। शुरू में तो मुझे भी वो ठीक लगा था। लेकिन जैसे ही उसकी टूच्ची हरकतें देखी। उसे देखकर मेरा मन उसके प्रति घृणा से भर जाता है, कि ऐसे लोग अपनी जमीर को मारकर जिंदा कैसे रहते हैं?

और अब बात आशुतोष चतुर्वेदी की। जो केन्द्रीय सूचना आयुक्त बने हैं। अगर आप मुझसे उनके बारे में पूछेंगे तो उनके बारे में मेरी राय कभी सही नहीं रही। मैंने विद्रोही24 में कई बार उनके खिलाफ लिखा हूं। उनके बारे में मेरे द्वारा की गई कड़ी टिप्पणी आज भी मौजूद है। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनमें क्या देखा और केन्द्रीय सूचना आयुक्त बना दिया। ये वे जाने। उनका विशेषाधिकार है। वे कुछ भी कर सकते हैं। देश के प्रधानमंत्री ठहरे। लेकिन देश में लोकतंत्र हैं। हर कोई अपनी बात कहने/लिखने को स्वतंत्र हैं।

वरिष्ठ पत्रकार सुशील भारती, जो कभी प्रभात खबर में संपादक पद पर रहे हैं। उन्होंने अपने फेसबुक पर कुछ पोस्ट किया है, पहले उसे देखना चाहिए, किसी को उनकी बातें गलत भी लग सकती है और कुछ को अच्छी भी लग सकती है। फेसबुक पर कई लोगों ने उनकी प्रशंसा की है, कई लोगों ने तो गर्दा-गर्दा तक लिख दिया है, लेकिन एक-दो लोगों ने उनके द्वारा लिखी गई बातों पर कड़ी टिप्पणी करते हुए, इसे मर्यादा के खिलाफ बताया है। आइये देखिये, सबसे पहले सुशील भारती ने क्या लिखा है …

“यह गर्व का अवसर है कि शर्म का। प्रभात खबर के पूर्व प्रधान संपादक आशुतोष चतुर्वेदी केंद्र सरकार के सूचना आयुक्त बन गए। उन्हें बधाई लेकिन यह गौरव का अवसर है या शर्म का, समझ नहीं पा रहा हूं। सच्चा पत्रकार कभी भी व्यवस्था का हिस्सा नहीं बन सकता क्योंकि वह जनता की आवाज़ होता है। व्यवस्था के खिलाफ खड़ा रहता है। लेकिन अब पत्रकारिता बची कहां है। आज के मीडिया मालिक उसी को संपादक की कुर्सी पर बिठाते हैं जो सरकारी तंत्र में पैठ बनाकर उनके व्यवसायिक हितों को साध सके। उसके पास भाषा का ज्ञान और खबरों की समझ हो या नहीं हो, एक अच्छे लाइजनर का गुण अवश्य होना चाहिए।

आशुतोष जी के पास यह गुण पर्याप्त मात्रा में था। वे यदा-कदा दिल्ली की तीर्थयात्रा करते रहे हैं और दिल्ली दरबार के सभी देवताओं की चरण वंदना करते रहे हैं। इस बात के प्रति बेहद सतर्क रहा करते थे कि अखबार में कुछ ऐसा नहीं छपे जिससे सरकार को कोई नुकसान हो। प्रभात खबर के तेवर को देखते हुए उन्होंने अत्यंत चाटुकारिता वाली खबरों से कुछ परहेज़ किया क्योंकि अखबार के स्तर पर उंगली उठ सकती थी। लेकिन असहमति को रोके रखना भी तो सहमति का परिचायक होता है। यह मोदी सरकार की खासियत है कि वह दुश्मनों की दुश्मनी और यारों की यारी में किसी भी लक्ष्मण रेखा की चिंता नहीं करती। आशुतोष जी को भी काबिलीयत का नहीं, गणेश परिक्रमा का इनाम मिला है। जबतक यह सरकार रहेगी आशुतोष जी के सितारे बुलंद रहेंगे। ऐसी उम्मीद की जानी चाहिए।”

डालटनगंज निवासी वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सहाय सुशील भारती के पोस्ट पर कमेन्ट करते हुए लिखते है कि  “चतुर्वेदी जी पत्रकारिता सरकारी सेवा से जुड़ने के लिए कर रहे थे, तभी तो ऑफर आया, तो स्वीकार तुरंत कर लिये अर्थात सरकारी ओहदे पर काबिज होने में गौरवान्वित हैं आशुतोष जी, पत्रकारिता को दोयम दर्जे का मानते रहे हैं, आखिर क्या कारण था कि झारखंड/रांची में संपादक रहते इन्होंने कभी सूचनाधिकार और लोकायुक्त पर कभी अपनी बात साफ़-साफ़ पत्रकारिता के जरिए नहीं रखी, न ही इसे मुद्दे बना कर लिखा, सिर्फ सूचनात्मक खबर से पत्रकारिता नहीं होती।

हेमंत सोरेन भी इनको सरकारी सम्मान से नवाजते तो लपकने में देरी नहीं करते, हरिवंश/ हरिनारायण के बाद राज्य की पत्रकारिता समझिये मर ही गयी, पत्रकारिता लोकतंत्र में वह सम्बल है, जिसके ताकत के आगे सत्ता दूम हिलाती नजर आती है, आज चारण वाली पत्रकारिता चल पड़ी है तो इसके मतलब यह नहीं कि यह हमेशा ऐसा ही रहेगा। राजेन्द्र माथुर, एस सहाय, अज्ञेय, विनोद कुमार मिश्रा, अजीत भट्टाचार्य, सुरेन्द्र किशोर, बलबीर दत्त कभी चारण उन्मुखी पत्रकारिता को बढ़ावा नहीं दिए, प्रतिष्ठा खुद चल कर इनके चरण में आई, कमजोरियाँ हर पत्रकार में है, लेकिन उसमें तुलनात्मक नजरिये को देखा जाना चाहिए, बस अभी इतना ही, सस्नेह।”

वरिष्ठ पत्रकार देवेन्द्र गौतम लिखते हैं कि “भाई सुशील भारती जी आपने बिल्कुल सही टिप्पणी की है। जहां तक मेरी जानकारी है आशुतोष जी कभी पत्रकार नहीं रहे। वे प्रबंधकीय भूमिकाओं में रहे हैं। पहली बार प्रभात खबर में संपादकों के संपादक बने। बहुत कोशिश की पत्रकार बनने की। कुछ लिखने की लेकिन बगुला कभी हंस नहीं बन सकता। सत्ता की चाकरी करने वाले पत्रकार पहले भी थे लेकिन उन्हें संपादकीय विभाग का भय होता था। लेकिन 2014 के बाद जब शीर्ष स्थान पर बैठे लोग ही सत्ता की चरण-वंदना करने लगे तो फिर पत्रकारिता की जगह बेशर्मी भरी चाटुकारिता ने ले ली। गिने चुने मीडिया हाउस ही इस प्रदूषण से बच सके।

लेकिन मैं हरिवंश जी को आशुतोष जी की श्रेणी में नहीं गिन सकता। धर्मयुग और रविवार से लेकर प्रभात खबर तक जबतक वे संपादक या प्रधान संपादक रहे, कभी न अपनी कलम की धार कमजोर होने दी न अपने सहकर्मियों की। वे हमेशा हार्ड रिपोर्ट को प्रोत्साहित करते थे। सेवानिवृत्ति के बाद वे राजनीति में गए भी तो अपने व्यक्तिगत संबंधों की बदौलत। उन्होंने कभी किसी की चरण वंदना नहीं की। राजनीति में जाने के बाद उनके कुछ निर्णयों की आलोचना हुई भी तो वह बदली हुई सत्ता संस्कृति का दबाव हो सकता है, उनकी व्यक्तिगत राय या पहल नहीं। उनके प्रति मेरे मन में श्रद्धा है लेकिन आशुतोष चतुर्वेदी जैसे लोगों के लिए नहीं। उनसे एकाध बार मिला हूं लेकिन उनके बारे में मेरी राय वही है जो आपकी है।”

वरिष्ठ पत्रकार स्वयं प्रकाश सुशील भारती की हौसला बढ़ाते हुए कहते हैं  -गर्दा गर्दा। वरिष्ठ पत्रकार विकास झा लिखते है कि  – प्रभात खबर के पहले इन्हें कोई जानता नहीं था। इसके विपरीत महेश दिवाकर लिखते हैं  – प्रगति मिलने पर जीवन में असफल रहे, मित्रों को ही अतीव पीड़ा होती है। अपने को सत्यवादी हरिश्चंद बताने लगते हैं और ऊंचाइयों को वरण करने वाले मित्र को चाटुकार सिद्ध करते देर नहीं लगती। ये ही वे लोग हैं जो सबसे अधिक लाभ अपने इसी मित्र से प्राप्त करते हैं। आज अवसरवाद का युग है। लोमड़ी को अंगूर सदैव खट्टे लगते है। लेकिन चींटी उनका रसास्वादन करती है।

One thought on “कमाल है! आशुतोष चतुर्वेदी के केन्द्रीय सूचना आयुक्त बनने के बाद, वे लोग भी उन पर ढेले चला रहे हैं, जो ढेला फेंकने का भी मुहूर्त देखते हैं कि कब ढेला फेकेंगे तो उनका नुकसान नहीं होगा

  • रमेश पुष्कर

    जिस प्रकार एक मीडिया हाउस को सफलतापूर्वक चलाने के लिए अलग अलग प्रकार के बीट देखने वाले पत्रकारों की जरूरत होती है … उसी प्रकार जो पत्रकार हरफनमौला होते हैं .. यानि उनमें संपादकीय और प्रबंधकीय दोनों गुण होते हैं …. ऐसे लोग आज के समय में किसी मीडिया हाउस या सरकारी संस्थान की सबसे बड़ी जरूरत हैं…. श्री आशुतोष चतुर्वेदी जी ऐसे ही व्यक्तित्व हैं .. .. मोदी जी ने यदि किसी व्यक्ति का चयन किया है तो श्री हरिवंश जी की महत्ती भूमिका भी उसमें शामिल है | मुझे खुशी है कि रांची एवं झारखंड से जुड़ा एक और पत्रकार देश के बड़े ओहदे पर पहुंचा हैं … इस नियुक्ति के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी को कोटि कोटि धन्यवाद एवं आभार … केंद्रीय सूचना आयुक्त बनने पर श्री आशुतोष चतुर्वेदी जी को कोटि कोटि बधाई एवं अनंत शुभकामनाएं |

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