अपनी बात

काश पिंजड़े का तोता बन चुका CBI, बकोरिया कांड की भी जांच, बंगाल के तर्ज पर करता

भले ही बंगाल में लोकसभा चुनाव के दौरान चुनाव परिणाम ममता बनर्जी और उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ जाये, पर सीबीआइ के खिलाफ राज्य सरकार द्वारा लिया गया एक्शन और उसके बाद ममता बनर्जी का धरने पर बैठ जाना, लोकसभा और राज्यसभा में इस मुद्दे को लेकर हंगामा खड़ा करदिया जाना और अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का आया बयान कि चुनावी तारीख के एलान के पहले देश में तरह-तरह की चीजें होंगी, बहुत कुछ कह दे रहा हैं कि देश में सीबीआइ के नाम पर सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा।

साथ ही इस बात को अब पूरी तरह बल मिल गया कि केन्द्र में किसी भी पार्टी की सरकार हो, वह सीबीआइ को अपने तरीके से हैंडल करती हैं, दुरुपयोग करती है, और इसकी शुरुआत कांग्रेस ने ही की, जिसका फायदा बाद में जो भी दल सरकार में आया, उठाया और सीबीआइ उन दल के सरकारों के हाथों की कठपुतलियां बन गई, हालांकि सीबीआइ बंगाल के ताजा प्रकरण पर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाई है तथा कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार पर सुबूत मिटाने का आरोप लगाया है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने तो यहां तक कह दिया कि अगर कमिश्नर सुबूत मिटाने के दोषी हुए तो पछताएंगे।

पर ऐसा लग नहीं रहा कि सुप्रीम कोर्ट में कुछ ऐसा होगा, जो अप्रत्याशित होगा और बंगाल सरकार या कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार पर गाज गिरेगी, क्योंकि फिलहाल जिस प्रकार रामजन्मभूमि मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा डेट पर डेट बढ़ाने का खेल चल रहा हैं, और केन्द्र सरकार को नाक में नकेल डालने की तरकीब निकाली जा रही है, उससे साफ लग रहा है कि देश में कही भी सब कुछ ठीक नहीं चल रहा और देश की सारी संवैधानिक संस्थाओं पर बैठे सर्वोच्च व्यक्ति संविधान की बात न मानकर, अपने-अपने ढंग से उसका दुरुपयोग कर रहे हैं, और इसी के साथ, अब इसमें कोई दो मत नहीं कि सीबीआइ ने आम जनता के समक्ष अपना विश्वास पूरी तरह से खो दिया है।

जैसा कि पूर्व में था, पहले माना जाता था कि सीबीआइ ने कह दिया, वह ब्रह्मवाक्य है, पर आज सीबीआइ का मतलब, केन्द्र सरकार की कठपुतली या आम जनमानस में तोता के सिवा कुछ भी नहीं। इसी बीच जैसा सर्वविदित था, सुप्रीम कोर्ट ने आशा के अनुरुप ही आज आदेश निर्गत किया, कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार को सीबीआइ की जांच में सहयोग करने को कहा है, साथ ही उनकी गिरफ्तारी पर रोक लगा दी है, जिससे साफ पता चलता है कि ऐसा कर सुप्रीम कोर्ट ने, सीबीआइ और ममता बनर्जी दोनों को खुश कर दिया, जैसा कि आज के ममता बनर्जी के बयानों से भी पता चल रहा है।

इधर इन सभी घटनाओं से अलग आम जनता के पास सीबीआइ को कटघरे में खड़ा करने के लिए एक नहीं कई सवाल है, आज लोग सीबीआइ से धड़ल्ले से पूछ रहे है कि जिस सक्रियता से कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार पर दबाव डाला जा रहा है, उसी सक्रियता से सीबीआइ ने विजय माल्या, नीरव मोदी, ललित मोदी, मेहुल चौकसी के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की? ये आम जनता के सवाल है, क्योंकि देश में लोकतंत्र हैं, सभी को अंततः जनता की अदालत में ही जाना है। यही नहीं, झारखण्ड की जनता तो साफ कहती है कि जेपीएससी मेधा घोटाला मामले की जांच सुस्त क्यों पड़ी है, क्या है वह वजह? सीबीआइ को जवाब देना चाहिए?

जिस बकोरिया कांड के निष्पक्ष जांच की जिम्मेवारी झारखण्ड हाई कोर्ट ने 22 अक्टूबर 2018 को सीबीआइ के जिम्मे किया, और 19 नवम्बर 2018 को इस मामले में सीबीआइ ने प्राथमिकी दर्ज की, सीबीआइ के उपाधीक्षक के के सिंह अनुसंधानकर्ता बनाये गये। डेढ़ से दो महीने तक इन्होंने बकोरिया कांड में केस डायरी तक नहीं लिखी, और जल्द ही उन्हें हटाकर अनुसंधानकर्ता डी के राय को बना दिया गया, ये भी नहीं बताया गया कि आखिर अनुसंधानकर्ता को बदला क्यों गया? आज भी बकोरिया कांड की सीबीआइ जांच सुस्त गति से चल रही है।

क्या जनता इतनी मूर्ख है कि बकोरिया कांड के साथ सीबीआइ ऐसा क्यों कर रही है, उसे नहीं पता। ये वहीं बकोरिया कांड हैं, जिस कांड में नाबालिगों को नक्सली बताकर उनकी हत्या कर दी गई, मामला संसद में भी गूंजा, पर सीबीआइ को इससे क्या मतलब?  सीबीआइ और सरकार दोनों जानती है कि इसकी जांच निष्पक्ष हो गई तो केन्द्र और राज्य दोनों की भाजपा सरकारों के चेहरे पर कालिख पूत जायेंगे और यहीं कारण है कि बकोरिया कांड की जांच की आग को ठंडी करने का प्रयास किया जा रहा है।

आश्चर्य है भाजपा कैसे संवैधानिक ढांचों को प्रभावित कर रही है, उसके एक नहीं अनेक उदाहरण है, जरा देखिये पूरे देश में चुनाव का माहौल है, सभी राज्यों में जहां किसी भी पदाधिकारी के तीन साल उस पद पर बीत चुके हैं, उनका स्थानान्तरण किया जा रहा है, पर झारखण्ड के पुलिस महानिदेशक डी के पांडेय जो पिछले चार सालों से अपने पद पर विराजमान है, उन्हें आज भी वहां से हटाने की कोशिश नहीं की जा रही, आखिर ये सब क्या है?

केन्द्र की मोदी सरकार और राज्य की रघुवर सरकार जनता को इतना मूर्ख क्यों समझ रही है, अगर सचमुच आप सीबीआइ को स्वतंत्र रखे हैं, तब तो बकोरिया कांड की भी त्वरित जांच होनी चाहिए थी, यहां के भी बड़े-बड़े पुलिस अधिकारियों के गिरेबां तक सीबीआइ के अधिकारियों के हाथ पहुंचने चाहिए थे, क्योंकि बकोरिया कांड में सीबीआइ को ज्यादा दिमाग लगाने की जरुरत ही नहीं, क्योंकि इसकी जांच तो वरीय पुलिस अधिकारी एमवी राव ने इस कदर कर दी है कि दूध का दूध, पानी का पानी कब का हो चुका, पर बात सीबीआइ की है।

हमें तो लगता है कि सीबीआइ को भी मालूम है कि बकोरिया कांड का सच, पर वह जानती है कि केन्द्र और राज्य की भाजपा सरकारें, दोषियों को बचाने में मदद कर रही हैं, ताकि वह अपना चेहरा कम से कम चुनाव तक बचा सकें, बाद में लोकसभा या विधानसभा चुनाव के बाद, कुछ भी इसका परिणाम आये, क्या फर्क पड़ता है?