अपनी बात

केरल की वामपंथी सरकार और ‘द टेलीग्राफ’ की घटिया स्तर की मनोवृत्ति को आदित्य की सटीक चुनौती

जिन केरल के वामपंथी महिलाओं ने अचानक धर्म का स्वाद चखा है, जिन्हें भगवान अयप्पा में अचानक श्रद्धा उमड़ पड़ी हैं, हालांकि ये श्रद्धा अचानक क्यों उमड़ी हैं, केरल के धर्मप्रेमी बुद्धिजीवी अच्छी तरह जानते हैं, उन्हें रांची का अय्यपा मंदिर बुला रहा हैं, क्या वे केरल से यहां दर्शन करने आयेंगी?

क्योंकि धर्म और भगवान को जो जानते हैं, वे तो मानते है कि वो सर्वत्र हैं, तो क्या जरुरत हैं, सबरीमला को लेकर धर्मांध बनने की, दंगे भड़काने की, आइये रांची आपका स्वागत कर रहा हैं, अगर केरल की वामपंथी सरकार ये घोषणा कर देगी कि ये केरल की वामपंथी महिलाएं, भगवान अयप्पा का दर्शन करने के लिए केरल से रांची आ रही हैं तो हो सकता है कि झारखण्ड के धर्मप्रेमी भी उनके स्वागत के लिए, यह कहकर उमड़ पड़ें कि देखों धर्म को अफीम मानने वाले भी इस ओर चल पड़े।

मैं तो कहूंगा कि ‘द टेलीग्राफ’  जिसने सबरीमला प्रकरण को मिर्च-मसाला लगाकर छापा, जिसके संवाददाताओं ने केरल के प्रदर्शनकारियों की तुलना कश्मीर के पाकिस्तानी सपोर्टर पत्थरबाजों से कर दी, उन्हें भी इसमें रुचि दिखानी चाहिए, क्योंकि उन्होंने इस प्रकरण पर अपना दीदा दिखा दिया कि, वे कितने नीच और दुष्ट हैं जो धर्म को भी अपने घटियास्तर के नजरिये से देखते हैं। ‘द टेलीग्राफ’ के इस कुकर्म की जितनी निंदा की जाय कम है।

इधर रांची चुटिया के रहनेवाले 31 वर्षीय आदित्य स्वरुप साहू जो रांची विश्वविद्यालय से पत्रकारिता का कोर्स कर चुके हैं, उन्होंने बड़ी ही मार्मिक अपील कर दी है। वो अपील है “भारत की जिन बहनों को भगवान अयप्पा का दर्शन करना है, उनका रांची के अयप्पा मंदिर में स्वागत हैं, सबरीमला रहने दें, रांची आए” ये इस अपील को लिखकर,  पोस्टर के माध्यम से जागृति फैला रहे हैं तथा वो काम भी कर दे रहे हैं, जो काम न तो ‘द टेलीग्राफ’ कर सका और न ही हिंसा को रोकने की बात करनेवाली वामपंथी सरकारें।

हमारा मानना है कि आप कहीं भी हैं, आप वो काम कर सकते हैं, जो आपने ठान लिया हैं, ऐसे में आदित्य स्वरुप साहू की अपील कम से कम झारखण्ड के लोगों को काफी आनन्दित कर चुकी है, हम आपको बता दे कि झारखण्ड में भी बड़ी संख्या में केरल के लोग रहा करते है, जो काफी संख्या में बोकारो, रांची तथा धनबाद में बसे है, और इन तीनों स्थानों पर अयप्पा मंदिर हैं, जहां विभिन्न महत्वपूर्ण समयों पर बड़ी संख्या में केरलवासी जुटते हैं।

अन्य हिन्दू समुदाय के लोगों तथा यहां तक कि यहां के ब्राह्मणों को भी भगवान अयप्पा के बारे में जानकारी नहीं हैं, पर केरल की इस घटना ने उन्हें भी सबरीमला और भगवान अयप्पा के बारे में जानने को मजबूर कर दिया। कल यहां के लोग भी उत्तर भारत के वैष्णो देवी मंदिर की तरह केरल के सबरीमला जाने का प्रोग्राम बनाने लगे तो इसे आश्चर्य मत मानियेगा? क्योंकि क्रिया तथा प्रतिक्रिया बराबर एवं विपरीत दिशा में होती है, और इसका अगर श्रेय किसी को मिलेगा तो वह वामपंथियों को ही दिया जायेगा, और थोड़ा श्रेय घटियास्तर के अखबार ‘द टेलीग्राफ’ को भी जायेगा।