अपनी बात

5 कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर दिल्ली में बैठे कांग्रेसियों ने झारखण्ड में अपनी ही पार्टी की दुर्गति कर दी

लीजिये अंततः कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार की विदाई हो ही गई, जो बहुत ही जरुरी था, क्योंकि जनाब ने प्रदेश में कांग्रेस को मजबूत तो किया नहीं, उलटे इतनी अराजकता फैला दी कि कांग्रेस रसातल में पहुंच गई। अजय कुमार की विदाई के बाद, अब डा. रामेश्वर उरांव के जिम्मे झारखण्ड प्रदेश कांग्रेस को सौंप दिया गया, साथ ही पांच कार्यकारी अध्यक्ष कमलेश महतो कमलेश, इरफान अंसारी, राजेश ठाकुर, मानस सिन्हा, संजय पासवान बना दिये गये। जिसका सर्कुलर कांग्रेस पार्टी के महासचिव के सी वेणुगोपाल के हस्ताक्षर से कल जारी कर दिया गया।

अब सवाल उठता है कि क्या एक अध्यक्ष और पांच कार्यकारी अध्यक्ष बना दिये जाने से कांग्रेस में फैला असंतोष समाप्त हो जायेगा, गुटबाजी खत्म हो जायेगी, कांग्रेस मजबूत हो जायेगी। राजनीतिक पंडित बताते है कि ऐसा करने से कांग्रेस का और बेड़ा गर्क हो जायेगा, क्योंकि इसके बाद कहने को तो प्रदेश अध्यक्ष डा. रामेश्वर उरांव होंगे और सारा काम कार्यकारी अध्यक्ष अपने-अपने मत्थे ले लेंगे और लीजिये वे वहीं करेंगे जो उनके मन का होगा।

राजनीतिक पंडित बताते है कि झारखण्ड को लेकर कांग्रेस की नीति हास्यास्पद लगती है, जब देश में कांग्रेस को प्रतिष्ठित व मजबूत करने के लिए इतने कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं तो फिर झारखण्ड में पांच-पांच कार्यकारी अध्यक्ष क्यों? इससे कौन सा फायदा पार्टी को मिलेगा? इससे अच्छा रहता कि रामेश्वर उरांव को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेवारी सौंपी ही नहीं जाती। राजनीतिक पंडित बताते है कि यकीन मानिये, ‘ज्यादा जोगी मठ उजाड़’ वाली कहावत इस बार कांग्रेस में लागू हो जायेगी और लोग कहेंगे ‘ज्यादा कार्यकारी अध्यक्ष, कांग्रेस का बंटाधार।’

राजनीतिक पंडित बताते है कि जब से पांच-पांच कार्यकारी अध्यक्ष का सर्कुलर जारी हुआ है, जो लोग कार्यकारी अध्यक्ष बने हैं, फूले नहीं समा रहे, जबकि कांग्रेस की स्थिति ऐसी है कि वह 1984 के बाद इस इलाके में कभी भी दूसरे स्थान पर नहीं रही, झारखण्ड निर्माण के बाद भी जब उसने किसी पार्टी से गठबंधन कर चुनाव लड़ा तब भी वह तीसरे स्थान पर ही रही और आज भी जो स्थिति है, वो लगता है कि तीसरी स्थान पर ही रहेगी, इससे ज्यादा उसे कुछ हासिल नहीं होगा, क्योंकि डा. रामेश्वर उरांव के पास कुछ करने को है ही नहीं और न ये पांच कार्यकारी अध्यक्ष उन्हें स्वतंत्र रुप से करने देंगे। ज्यादातर समय रामेश्वर उरांव का इन पांच कार्यकारी अध्यक्षों को संभालने में ही जायेगा,  जिससे कांग्रेस की स्थिति झारखण्ड में पतली ही होगी।

अच्छा रहता कि डा. रामेश्वर उरांव को स्वतंत्र रुप से काम करने दिया जाता, पर राजनीतिक पंडितों को नहीं लगता कि कांग्रेस के दिल्ली दरबारी नेता चाहते थे कि डा. रामेश्वर उरांव को स्वतंत्र रुप से काम करने दिया जाये, अब इधर अचानक कार्यकारी अध्यक्ष बने कांग्रेसी नेता फूले नहीं समा रहे, उनके संग जूड़े लोग भी उनके प्रति वाह-वाह किये जा रहे हैं, जबकि भाजपा-झामुमो अभी से ही विधानसभा के चुनाव में जूट गये हैं, पर कांग्रेस को इनसे क्या मतलब? वो तो जानती है कि वह कुछ भी कर लें, उसे तीसरे स्थान पर ही रहना है, इसलिए ज्यादा दिमाग लगाने की क्या जरुरत?

कुल मिलाकर, राजनीतिक पंडित कहते है कि कांग्रेस की हालत उस नाव की तरह हो गई है, जिसमें छः नाविक एक साथ बैठ गये और सभी अपने-अपने पतवारों को लेकर अपनी-अपनी दिशा में खेते जा रहे हैं, ऐसे में नाव कितनी दूरी तय करेगा, घाट पर लगेगा भी या नहीं, जरा चिन्तन करते रहिए, ऐसी स्थिति कांग्रेस ने झारखण्ड में स्वयं की बना ली है, ऐसे में कांग्रेस का कभी भला नहीं हो सकता और न कांग्रेस चाहती है कि उसका भला हो।