अमेरिका कौन होता है सीजफायर की बात करनेवाला, व्यापार बंद करने की धमकी देनेवाला, आखिर केन्द्र की सरकार आपरेशन सिन्दूर और पहलगाम की घटना को लेकर संसद का विशेष सत्र क्यों नहीं बुला रहीः सुप्रियो
अमेरिका कौन होता है सीजफायर की बात करनेवाला? वो कौन होता है यह कहनेवाला कि अगर युद्ध नहीं रोका तो वो व्यापार बंद कर देगा? 1971 में तो वो हमारे खिलाफ था और पाकिस्तान का समर्थन कर रहा था, आज वो धमकी देता है और आप युद्ध रोक देते हैं। मेरा सवाल है कि आपरेशन होता है तो कार्रवाई होती है। आपरेशन सिंदूर आतंकियों के ठिकाने के खात्मे के लिए था। ऐसे में इसमें सीजफायर कहां से आ गया?
सीजफायर तो युद्ध के समय होता है और यदि सीजफायर की घोषणा देश या विदेश में हो रही है तो फिर पूंछ और राजौरी में अटैक कैसे हुआ? इस प्रकार के गंभीर सवालों से केन्द्र की सरकार बच नहीं सकती। उसे इन सवालों के जवाब देने के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाना ही होगा, ताकि देश के लोगों को आपरेशन सिन्दूर के हकीकत का पता चल सकें। ये बातें आज रांची में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के केन्द्रीय महासचिव व प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कही।
सुप्रियो ने कहा कि 1947 की स्वतंत्रता के बाद जब पाकिस्तान ने कबीलों के वेष में जम्मू कश्मीर को लेने का षडयंत्र किया तो उस वक्त हमारे देश की सेनाओं ने जम्मू कश्मीर की जनता के साथ मिलकर पाकिस्तान के षडयंत्रों का मुंहतोड़ जवाब दिया। चीन ने जब 20 अक्टूबर 1962 को भारत पर आक्रमण किया तो उसका भी मुंहतोड़ जवाब हमारी सेना ने दिया। जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया तो उस दौरान भारतीय जनता पार्टी के उस वक्त के बड़े नेता अटल बिहारी वाजपेयी जो उस वक्त एकमात्र नेता थे।
उन्होंने भारत-चीन युद्ध को लेकर उस वक्त के तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरु से संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग की थी। उस वक्त पं. नेहरु ने केवल एकमात्र सांसद अटल बिहारी वाजपेयी के कहने पर संसद का विशेष सत्र बुलवा लिया था। तो आज क्या वजह है कि देश की प्रमुख विपक्षी पार्टियां बार-बार आपरेशन सिन्दूर और पहलगाम की घटना को लेकर संसद का विशेष सत्र बुलाने की मांग केन्द्र से करती हैं तो केन्द्र उस ओर ध्यान नहीं देता। जबकि इस मुद्दे पर उनकी पार्टी समेत सारी विपक्षी पार्टियां केन्द्र के सारी निर्णयों के साथ खड़ी है।
सुप्रियो ने कहा कि केन्द्र की सरकार विपक्षी पार्टियों से हर प्रकार का सहयोग ले रही हैं। केन्द्र इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाती है और उस सर्वदलीय बैठक से स्वयं प्रधानमंत्री नदारद रहते हैं। केवल एक दिन से राष्ट्र का नाम संदेश देने के लिए दिखाई पड़ते हैं। पर संसद का विशेष सत्र नहीं बुलाते। आश्चर्य है कि वे संसदीय प्रतिनिधिमंडलों को विदेश का दौरा करवा रहे हैं। जिसमें सारी पार्टियां मौजूद है। हम इसका समर्थन भी करते हैं। लेकिन उसके बाद भी चाहेंगे कि जब ये विदेशों से ये प्रतिनिधिमंडल लौटें तो देश की जनता को पता भी चलें कि उनके दौरे का क्या फलाफल निकला? और ये तभी हो सकता है, जब संसद का विशेष सत्र आयोजित हो।