अपने पिता के प्रति श्रद्धा व उनकी आत्मा को सद्गति प्रदान करने के लिए अपने धर्म व संस्कृति को आत्मसात् करना, उसका अनुसरण करना आज की युवा पीढ़ी को राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन से सीखना चाहिए
अपने दिवंगत पिता झारखण्ड के महान आंदोलनकारी दिशोम गुरु शिबू सोरेन के प्रति श्रद्धा व उनकी आत्मा को सद्गति प्रदान करने के लिए अपने धर्म व संस्कृति को आत्मसात् करना, उसका अनुसरण करना आज की युवा पीढ़ी को राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन से सीखना चाहिए, साथ ही इस कार्य में अपने पति का बढ़-चढ़कर सहयोग करने की कला प्रत्येक महिलाओं को कल्पना सोरेन से सीखना चाहिए।
सचमुच जब मैं ये सब देखता हूं, तो मुझे गर्व हो उठता है। आजकल तो थोड़ा सा लोग पढ़ जाते हैं। भौतिकता में डूब जाते हैं। सत्ता का सुख प्राप्त करने लगते हैं, तो लोग अपने माता-पिता को भूल जाते हैं। अपने धर्म व संस्कृति में बुराइयां ढूंढने लगते हैं और अपने यहां दिवंगत हो जानेवाले माता-पिता व अभिभावकों को कैसे जितनी जल्दी उनके कर्म को निबटा दिया जाये। इसका उपाय ढूंढने लगते हैं।
ये बातें में ऐसे ही नहीं लिख रहा हूं। मेरे पास इसके कई प्रमाण है। इसी झारखण्ड में एक आईएएस हुआ। जो यहां विभिन्न विभागों में प्रमुख पदों पर रहा, बाद में केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर भी गया, फिलहाल वो अवकाश प्राप्त कर चुका है। वो कभी अखबारों की सुर्खियां भी बना। लेकिन जब उसकी मां मरी, तो उसने अपनी मां का दाह संस्कार वाराणसी में करवाया और अपनी मां का कर्म तीन दिन में ही, वो भी आर्य समाजी विधि से निबटा दिया।
जबकि वो कभी भी आर्य समाजी नहीं रहा। लेकिन अपनी मां का श्राद्ध कर्म करने के लिए वो तीन दिन के लिए आर्य समाजी बन गया और दशकर्म तथा द्वादश कर्म तक नहीं किया। सनातनी परम्परा को केवल वहीं नहीं, उसका पूरा परिवार भूल गया। वो आईएएस कोई साधारण आईएएस नहीं था। रांची से प्रकाशित होनेवाला अखबार प्रभात खबर तो गाहे-बगाहे हर दम उसकी स्तुति गा दिया करता है।
लेकिन मैं जब तक जीवित रहूंगा, उसे कभी सही नहीं ठहरा सकता, क्योंकि आईपीआरडी में जब मैं कार्यरत था, तो मुख्यमंत्री जनसंवाद कार्यक्रम के अंतर्गत, जब दुमका से आया एक गरीब व्यक्ति मुद्रा योजना की धांधली के बारे में जो उस वक्त तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास से कहा, उस वक्त वो भी वहां बैठा था और उस आईएएस का चेहरा देखने लायक था।
लेकिन दूसरी ओर, वहीं इसी राज्य में एक मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन है। उनकी पत्नी कल्पना सोरेन हैं। जो अपने दिवंगत बाबा दिशोम गुरु शिबू सोरेन की आत्मा को सद्गति प्राप्त हो, उसके लिए अपनी प्राचीन आदिवासी परम्परा व संस्कृति को अपनाते हुए अपने धर्म को छोड़े नहीं हैं। जिस दिन से दिशोम गुरु ने अपना शरीर त्यागा है। उसके बाद से वो धर्मानुसार आचरण करते हुए, अपनी परम्परा का निर्वहण करते हुए, वो हर कार्य कर रहे हैं, जैसा कि एक पुत्र और बहू को करना चाहिए।
ऐसा भी नहीं, कि इन धार्मिक कार्यों व परम्पराओं को निर्वहण करने के क्रम में हेमन्त सोरेन अपना राजधर्म भूल गये हो। वे अपने घर से ही वो सारे राज-काज संभाले हुए हैं, जो एक मुख्यमंत्री का पहला और अंतिम कर्तव्य है। यहीं नहीं अपने परिवार व समाज के साथ कदम से कदम मिलाकर गुरुजी के आत्मा को सद्गति कैसे प्राप्त हो, उसके लिए मीटिंग भी करते हैं।
इसी बीच झारखण्ड के कोने-कोने से आये अपने इष्टमित्रों को भी समय देते हैं। दिन-रात कभी भी आराम करने का मौका उन्हें नहीं मिल रहा। फिर भी लोगों के साथ लगे हैं। जब भी समय मिलता है, वो नेमरा के किसानों के बीच पहुंच कर उनकी समस्याओं से दो-चार भी होते हैं। धनरोपनी देखते भी हैं और उसमें सहयोग कैसे वे कर सकते हैं, उस पर दिमाग भी लगाते हैं।
यह लिखने का मतलब हमारा यह है कि प्रत्येक बेटे-बेटियों-बहूओं को चाहिए कि वो अपने माता-पिता के प्रति श्रद्धा रखें। जब वो दिवंगत हो, तो उन्हें सद्गति प्रदान करने के लिए वो हर प्रकार के धर्मानुसार आचरण करें, जो उनका धर्म सिखाता है। ऐसा नहीं, कि अपने परिजनों को जब सद्गति प्रदान कराने का समय आये, तो वो समय नहीं होने का बहाना बनाकर कन्नी काट जाये। ऐसा करना अपने माता-पिता के प्रति अपराध करना है। प्रत्येक बेटे-बेटियों का यह कर्तव्य है कि वो अपने माता-पिता को सद्गति प्रदान करने के लिए समय निकालें। क्योंकि माता-पिता को संतुष्ट करने से बड़ा इस दुनिया में कोई धर्म नहीं हैं।
आप श्रीरामचरितमानस उठाकर देखें। आप देखेंगे कि बेटा राम केवल अपने पिता की बातों को प्रतिष्ठित करने के लिए वनगमन के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। जब उन्होंने वनगमन किया, तो भरत अपने पूरे परिवार के साथ राम को पुनः अयोध्या लाने के लिए चित्रकूट पहुंचे। जहां भरत का राम से मिलाप होता है।
जहां श्रीराम को पता चलता है कि उनके पिता दशरथ इस दुनिया में नहीं रहे। श्रीराम तुरंत वहीं अपने पिता का श्राद्ध करते हैं। पिंडदान करते हैं। आखिर श्रीराम का यह चरित्र हमें क्या संकेत देता है। इसे भी समझने की जरुरत है। भारत अपनी परम्परा व संस्कृति के लिए जाना जाता है। भारत अपने धर्म को लेकर जाना जाता है और यहां से धर्म, परम्परा व संस्कृति ही नष्ट हो जायेगी तो भारत के पास बचेगा क्या?
हृदय से बधाई, हेमन्त सोरेन जी। आपने आदिवासियत को बचाया है। धर्म, परम्परा व संस्कृति को बचाया है। भारत की अमूल्य संस्कृति को बचाया है। अपने पिता के प्रति जो आपने श्रद्धा दिखाई है। वो भारतीय राजनीति में बहुत कम देखने को मिलता है। आनेवाले समय में, आपके इस कार्य का अवश्य प्रभाव पड़ेगा। आज की आधुनिक पीढ़ी आपके और आपकी पत्नी के इस कार्य को देखकर अवश्य कुछ सीख रही होगी। आपका हृदय से धन्यवाद।