राजनीति

जो निजी विद्यालयों पर अंगूलियां उठा रहे हैं, वे ही अनुशंसा पत्र लेकर ऐसे विद्यालयों में नामांकन करने के लिए नाक रगड़ते हैं, अगर इनके अनुशंसा पत्रों को सार्वजनिक कर दी जाय तो कई की लूटिया डूब जायेगीः आलोक दूबे

जो आज निजी विद्यालयों की आलोचना कर रहे हैं, वही लोग कल इन्हीं विद्यालयों में अपने बच्चों के दाखिले के लिए सिफारिशी पत्र लेकर खड़े थे। यदि निजी विद्यालयों ने अब तक प्राप्त सभी अनुशंसा पत्र (Recommendation Letters) को सार्वजनिक कर दिया, तो कई तथाकथित जनप्रतिनिधि, प्रशासनिक अधिकारी और प्रभावशाली व्यक्तियों के दोहरे चरित्र सामने आ जाएंगे। ये कहना है कि पासवा के राष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार दूबे का।

श्री दूबे का कहना है कि यह अनुशंसा पत्र केवल एक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं कि निजी विद्यालयों की शैक्षणिक गुणवत्ता, अनुशासन, सुविधाएं और वातावरण पर कितना विश्वास है समाज के प्रभावशाली वर्ग को। इससे यह भी स्पष्ट होगा कि वे निजी विद्यालय, जिनकी आज आलोचना की जा रही है, उन्हीं विद्यालयों को कभी अपने बच्चों के भविष्य के लिए पहली पसंद माना गया।

ऐसे में निजी विद्यालयों को निशाना बनाना या उनकी छवि खराब करना केवल एक राजनीतिक चाल या पूर्वनियोजित अभियान प्रतीत होता है, जिससे झारखंड की शिक्षा व्यवस्था को नुकसान पहुंचना तय हैं। आलोक कुमार दूबे ने अपनी बातों के समर्थन में कई प्रमाण भी प्रस्तुत किये कि आज निजी विद्यालय कितना जरुरी है।

  1. अधिकारी सरकारी विद्यालयों को प्राथमिकता दें, निजी विद्यालय में एडमिशन के लिए पैरवी ना करें अधिकारी – पासवा अध्यक्ष ने सभी अधिकारियों और पदाधिकारियों से अपील है कि वे अपने बच्चों को निजी विद्यालयों की बजाय सरकारी विद्यालयों में पढ़ाएं। तथा एडमिशन के लिए पैरवी निजी विद्यालयों में ना कर सरकारी स्कूलों में एडमिशन कराने के लिए प्रेरित करें, इससे सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता, जवाबदेही और व्यवस्था में स्वाभाविक सुधार होगा।
  2. निजी विद्यालयों के संचालन और पारदर्शिता – कई निजी विद्यालय RTI के अंतर्गत पारदर्शिता के साथ संचालित हो रहे हैं और उनके संचालन हेतु पहले से बनी कमेटियां सक्रिय हैं और अगर कहीं कमेटियां निष्प्रभावी हैं तो उसे ठीक करने का प्रयास होना चाहिए। निजी विद्यालयों में शिक्षा की गुणवत्ता और पारदर्शिता को मान्यता मिलनी चाहिए।
  3. सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता में गिरावट – पहले सरकारी विद्यालयों की जो स्थिति थी, आज वैसी नहीं रही। सरकार को चाहिए कि वह निजी विद्यालयों की आलोचना के बजाय सरकारी स्कूलों की गिरती गुणवत्ता पर ध्यान केंद्रित करें। सरकार को यह मैंडेटरी करना चाहिए और सेवा पुस्तिका में स्पष्ट होना चाहिए, विशेष कर सरकारी विद्यालयों के प्रिंसिपल शिक्षक एवं शिक्षा के अधिकारी जिस स्कूल में वह पढ़ाते हैं अपने बच्चों को वही दाखिला करायें अन्यथा उन्हें पदमुक्त कर दिया जाएगा।
  4. निजी विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था को प्रोत्साहन मिले – झारखंड की शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ हैं निजी विद्यालय। यहां के उच्च वर्गीय परिवारों से लेकर बीपीएल परिवार तक, सभी अपने बच्चों को निजी विद्यालयों में पढ़ाना चाहते हैं। ऐसे में सरकार को निजी विद्यालयों को प्रोत्साहित करना चाहिए।
  5. मुख्यमंत्री का सहयोगात्मक दृष्टिकोण – मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन शिक्षा के प्रति संवेदनशील हैं और वे हमेशा निजी विद्यालयों को प्रोत्साहित करते रहे हैं। उनका दृष्टिकोण निजी विद्यालयों को सहयोगात्मक रूप से देखने का रहा है।
  6. फीस भुगतान में चुनौतियां – BPL छात्रों को तो नि:शुल्क शिक्षा मिलती है, लेकिन अन्य छात्रों में से कई समय पर फीस नहीं देते या बीच में पढ़ाई छोड़ देते हैं। इससे निजी विद्यालयों को वित्तीय संकट का सामना करना पड़ता है क्योंकि उन्हें शिक्षकों का वेतन, इन्फ्रास्ट्रक्चर, और अन्य लागत वहन करनी होती है।
  7. निजी विद्यालयों की विविधता को समझना जरूरी – झारखंड में दो प्रकार के निजी विद्यालय हैं: एफिलिएटिड और नॉन-एफिलिएटिड। एफिलिएटिड विद्यालयों का इन्फ्रास्ट्रक्चर बड़ा होता है और शिक्षकगण अधिक प्रशिक्षित होते हैं, जिससे उनकी लागत अधिक होती है। वहीं, छोटे निजी विद्यालय ₹500-₹1000 मासिक शुल्क पर भी शिक्षा दे रहे हैं और कई बार छात्रों से शुल्क भी नहीं लिया जाता।
  8. निजी विद्यालयों पर अनावश्यक दोषारोपण गलत – कुछ संगठित समूह निजी विद्यालयों को लक्ष्य बनाकर झारखंड की शिक्षा व्यवस्था को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं। यह एक गहरी साजिश का हिस्सा हो सकता है, जिससे जनता को सावधान रहने की आवश्यकता है। 90% अभिभावकों को निजी विद्यालयों से कोई शिकायत नहीं है।
  9. सरकार और जनता से अपील – सरकार इस पूरे मामले को संवेदनशीलता से देख रही है और संगठित भ्रम फैलाने वालों की मंशा को समझती है। पासवा जनता से भी अपील करता है कि वे किसी भी तरह की नकारात्मक मुहिम का हिस्सा न बनें और सच्चाई को समझें। डोनेशन लेकर एवं पैरवी पर एडमिशन लेने वाले अभिभावक ही ज्यादा हल्ला मचाते हैं।
  10. आधुनिक सुविधाओं से युक्त शिक्षण प्रणाली – निजी विद्यालयों में बच्चों को आधुनिक लैब, पुस्तकालय, स्मार्ट क्लास, कंप्यूटर लैब और खेलकूद की बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। ये सुविधाएं छात्रों के सर्वांगीण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
  11. डिजिटल लर्निंग और टेक्नोलॉजी इंटीग्रेशन – निजी विद्यालय शिक्षा में डिजिटल टेक्नोलॉजी का उपयोग कर बच्चों को स्मार्ट और ग्लोबल स्तर की शिक्षा दे रहे हैं। इससे बच्चों की सीखने की गति और समझने की क्षमता में सुधार आता है।
  12. सह-पाठयक्रम और व्यक्तित्व विकास – निजी विद्यालय केवल किताबों तक सीमित नहीं रहते, बल्कि बच्चों के व्यक्तित्व निर्माण, नेतृत्व कौशल, भाषण कला, नृत्य-संगीत, कला व खेल के जरिए उन्हें जीवन के हर क्षेत्र के लिए तैयार करते हैं।
  13. प्रतिस्पर्धात्मक माहौल से प्रतिभा निखरती है – निजी विद्यालयों में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी, ओलंपियाड्स, क्विज़ और डिबेट्स जैसे आयोजन नियमित होते हैं, जिससे बच्चों की प्रतिभा उभरती है और वे राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुँचते हैं।
  14. फीस एक सेवा का मूल्य है, मुनाफाखोरी नहीं – निजी विद्यालयों द्वारा ली जाने वाली फीस, उनकी उच्च गुणवत्ता की शिक्षा, प्रशिक्षित शिक्षक, आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर और सुविधाओं की लागत को देखते हुए होती है। यह मुनाफाखोरी नहीं, बल्कि सेवा के बदले दी जाने वाली न्यूनतम राशि है।
  15. ग्रामीण क्षेत्र के निजी विद्यालयों का समर्पण – झारखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में भी कई छोटे निजी विद्यालय न्यूनतम शुल्क में बच्चों को समर्पण भाव से गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे रहे हैं, जिससे गांव के बच्चों को भी उज्ज्वल भविष्य की राह मिल रही है।
  16. शिक्षक-छात्र अनुपात बेहतर होता है – निजी विद्यालयों में प्रत्येक छात्र पर बेहतर ध्यान देने हेतु शिक्षक-छात्र अनुपात संतुलित होता है, जिससे बच्चों की व्यक्तिगत आवश्यकताओं और शंकाओं को तुरंत दूर किया जा सकता है।
  17. माता-पिता की सक्रिय भागीदारी – निजी विद्यालयों में पेरेंट्स-टीचर मीटिंग्स, रिपोर्ट कार्ड फीडबैक और ओपन हाउस सत्रों के माध्यम से अभिभावकों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित होती है, जिससे बच्चों की प्रगति में सहयोग मिलता है।