अपनी बात

जो मूर्ख होते हैं, वे अक्षय तृतीया के दिन सोना चांदी या भौतिक वस्तुओं को खरीदने के चक्कर में पड़ते हैं और जो विद्वान होते हैं, वे ज्ञान और आशीर्वाद, जिनका कभी क्षय नहीं होता, उसे प्राप्त करने में समय बिताते हैं

जो मूर्ख होते हैं, वे अक्षय तृतीया के दिन सोना-चांदी या भौतिक वस्तुओं को प्राप्त करने में दिमाग लगाते हैं। लेकिन जो सही मायनों में विद्वान होते हैं, वे इन सभी वस्तुओं के प्रति दिमाग नहीं लगाकर, वो चीजें प्राप्त करने में ज्यादा दिमाग लगाते हैं, जिनका कभी क्षय हो ही नहीं सकता। अब बात आती है कि दुनिया में कौन ऐसी चीज हैं, जिसका क्षय नहीं हो सकता। तो इसका उत्तर कोई मूर्ख तो दे नहीं सकता।

इसका जवाब तो सिर्फ और सिर्फ विद्वान ही दे सकते हैं, जिनका मन भौतिक सुख-सुविधाओं में नहीं भटकता हो। जिनका मन हमेशा सोना-चांदी में ही भटकता रहता हो, उनके लिए अक्षय तृतीया और धनतेरस क्या? उनके लिए तो हर दिन ही सोना-चांदी खरीदने और भौतिक वस्तुओं में अपना ईश्वर ढूंढने का है।

आजकल तो मीडिया, व्यापारी और विजातीय पंडितों का समूह मिलकर यहां के नागरिकों को भरमाने में लगा है। दिग्भ्रमित करने में भी इन तीनों ने ऐसी महारत हासिल कर ली है कि इनके चक्कर में अच्छे-अच्छे लोग अपनी खुशियां का बंटाधार कर चुके हैं और भविष्य के लिए रखे गये अपने संचित धन को बैंकों से निकालकर बड़े-बड़े धन्ना सेठों के तिजोरियों को भरने में लगे हैं।

जो लोग ऐसा कर रहे हैं, उनसे ये पूछिये कि ये अक्षय तृतीया क्या हैं? तो ये आसमान की ओर देखने लगेंगे। मतलब साफ है कि उन्हें पता ही नहीं कि अक्षय तृतीया क्या होता है? बस चूंकि मीडिया, व्यापारियों का समूह और विजातीय पंडितों ने इनके दिमाग को पूरी तरह हाईजैक कर लिया है, बस इसी चक्कर में अपने घर के संचित धन को निकालकर एकमेव कार्य, कि इन पैसों को व्यापारियों के यहां रखना है और सोना या कोई भौतिक वस्तुएं प्राप्त करनी है, जिससे उन्हें सुख प्राप्त होगा।

जबकि सच्चाई यही है कि सोना-चांदी खरीदने या किसी भी भौतिक वस्तुओं को प्राप्त करने या खरीदने से कभी सुख प्राप्त नहीं हुआ और न ही इन वस्तुओं का कभी क्षय नहीं हुआ। आप तो जैसे ही कोई वस्तु को खरीदते हैं, उसका क्षय होना उसी समय से शुरू हो जाता है, जबसे आप उसका उपयोग करने लगते हैं। ये सीधी सी बात आपको समझ में नहीं आती। तो आप आदमी हैं या भूत हैं या मूर्ख हैं? आप खुद समझिये, चिन्तन करिये कि आप क्या हैं?

दरअसल सच्चाई यही है कि दुनिया में दो ही वस्तुएं ऐसी हैं, जिनका कभी क्षय नहीं होता। ये शास्त्रसम्मत बाते हैं। जिसके बारे में न तो आज की मीडिया, न ही व्यापारियों का समूह और न ही विजातीय पंडितों का समूह आपको बताता है।  आखिर वो दो वस्तुएं क्या हैं? पहला – आशीर्वाद और दूसरा ज्ञान। इनदोनों का कभी क्षय नहीं होता और अक्षय तृतीया इसी का भान कराने का अवसर है।

हमारे पूर्वज कभी सोना-चांदी के चक्कर में नहीं पड़े, इसलिए वे जीवन का आनन्द लेते थे। आज क्या है? हमारे पास सब कुछ रहने के बाद भी हम विषाद में पड़े हैं। आज जो भी अपराध बढ़े हैं, इस अपराध को किसने बढ़ाया, क्या आशीर्वाद और ज्ञान ने या भौतिक वस्तुओं की चाहत ने? सच्चाई है कि भौतिक वस्तुओं की ओर हमारा आकर्षण और उसे प्राप्त करने के लिए हमारी ललक ने हमारे जीवन से आनन्द को ही छीन लिया है। जबकि पूर्व में ज्ञान और आशीर्वाद की महत्ता ने हमारे परिवार को इतना पुष्ट किया कि हमारे पूर्वज जब तक जीवित रहे, उन्हें न तो आज की मीडिया की जरुरत पड़ी, न व्यापारियों के समूहों की जरुरत पड़ी और न ही विजातीय पंडितों के चक्कर में वे पड़े।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *