अपने यहां कार्यरत पत्रकारों को वेतन व भविष्य निधि की राशि तक पर कुंडली मारकर बैठ जानेवाले घाघ लोगों को हो रही अपनी पेंशन की चिंता
कल यानी गुरुवार को विभिन्न अखबारों के मालिकों/संपादकों तथा पत्रकारों के नाम पर दुकान चलानेवाले विभिन्न पत्रकार संगठनों से जुड़े घाघ लोगों का समूह सुबह-सुबह झारखण्ड के वित्त मंत्री राधा कृष्ण किशोर के घर पहुंच गया। वित्त मंत्री के घर पहुंचने के बाद, इन लोगों ने उन्हें एक ज्ञापन देते हुए अपने-अपने चेहरे पर विजयी मुस्कान की मुद्रा लाकर एक फोटो खिंचवाया और फिर उसे अपने सोशल साइट पर डाल दिया। फिर उसके बाद क्या होता है? आप लोग जानते ही है। इनके चाहनेवालों ने नाना प्रकार के कमेन्ट्स से उन्हें सराबोर कर दिया।
जो लोग राधाकृष्ण किशोर के घर गये थे। उनमें से एक ने अपने फेसबुक पर लिखा है कि ‘आज सुबह झारखण्ड के वित्त मंत्री राधा कृष्ण किशोर से उनके आवास पर मुलाकात हुई। बातचीत में झारखण्ड के वरिष्ठ पत्रकारों को पेंशन और स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभ दिलाने पर विस्तार से चर्चा हुई। 2019 में कैबिनेट से पास होने के बावजूद अब तक एक भी पत्रकार को लाभ नहीं मिलने पर उन्होंने चिन्ता जताई और जल्द ही सरकार की ओर से उचित कार्रवाई करने का भरोसा दिलाया। इस अवसर पर वरिष्ठ संपादक रजत गुप्ता, अशोक कुमार, प्रेम शंकरन, मंगल पांडेय और कबीर मौजूद थे।’
अब सवाल उठता है कि पत्रकारों को पेंशन मिले। इससे कौन पत्रकार इनकार करेगा? उत्तर होगा – कोई भी नहीं। लेकिन पेंशन सिर्फ वरिष्ठ को ही क्यों मिले? कनिष्ठ को क्यों नहीं मिले? गांव-कस्बों, मुहल्लों, जिला, अनुमंडल में काम करनेवाले पत्रकारों को इसका लाभ क्यों न मिलें? ये वरिष्ठ कौन होता है भाई? मतलब जिंदगी भर संपादक बनकर अखबार के मालिक की सेवा करते हुए उनसे वेतन भी लीजिये, उपर-झापर भी कमाइये और फिर अखबार के मालिक की जिंदगी भर सेवा करने का उपहार, पेंशन स्वरूप सरकार से लीजिये। ये कहां की और कैसी सोच हैं भाई? एक ने कहा कि कई राज्यों में ऐसा प्रावधान है, तो अगर कोई राज्य अपने कोषागार को लूटवा दें, तो हम भी अपने राज्य के कोषागार को लूटवाने के लिए सरकार और उनके मंत्रियों पर दबाव डालें, क्यों यही आप कहना चाहते हैं न?
दूसरी बात। सर्वप्रथम जो लोग कल राधाकृष्ण किशोर के घर गये थे। उनमें से कोई अखबार का मालिक भी था, कोई संपादक भी था और कोई पत्रकार संगठन से जुड़ा नेता भी था। ये तीनों लोग अपने छाती पर हाथ रखकर बता सकते हैं कि उनके यहां काम करनेवाले लोगों को ये वेतन समय पर देते हैं? सही समय पर उनके भविष्य निधि की राशि, भविष्य निधि कार्यालय में जमा करवाते हैं? हम तो कई प्रमाण दे देंगे, कि इनके यहां कई लोग काम किये और जब वेतन नहीं मिला तो इनमें से कई के यहां दस-दस महीने काम करने के बाद वेतन नहीं मिलने की वजह से कई पत्रकार इनके यहां की नौकरी छोड़कर दूसरा धंधा कर लिया।
नियम तो यह भी है कि इनके यहां जो लोग यानी पत्रकार काम करेंगे, वे उनका वेतन बैंक के माध्यम से दें। लेकिन इनमें से तो कई अपनी सुविधानुसार कुछ को, नकद भुगतान भी करते हैं। क्या लोग (पत्रकार) इतने मूर्ख हैं कि इनकी चालाकी नहीं जानते। दरअसल शायद इसी को राजनीति कहते हैं। पत्रकार बिरादरी में भी राजनीति घुस आई है। ये अपने लोगों का शोषण करने का नया जरिया है। शोषण करते रहो। मंत्री जी के यहां जाते रहो। अपनी छवि भी चमकाते रहो।