संताप हरनेवाला, संशय दूर करनेवाला और शांति प्रदाता ये सभी गुरु हैं, इनके प्रति साधक को सच्ची श्रद्धा रखनी चाहिएः स्वामी निगमानन्द
संताप को हरनेवाला, संशय को दूर करनेवाला और शांति प्रदान करनेवाला ये सभी गुरु हैं। इनके प्रति प्रत्येक साधक को श्रद्धा रखनी चाहिए। साधक को इनका सम्मान करने में सबसे आगे भी रहना चाहिए। उक्त बातें आज रांची के योगदा सत्संग आश्रम में आयोजित रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए स्वामी निगमानन्द ने योगदा भक्तों के बीच में कही।
उन्होंने योगदा भक्तों से कहा कि साधक को हमेशा चौकन्ना रहना चाहिए, क्योंकि एक साधक को गुरु ही हर समस्याओं से बचा सकता है, दूसरा कोई बचा ही नहीं सकता। प्रत्येक गुरु को अपने साधकों को नापने का अलग-अलग तरीका होता है। वो अपने तरीके से साधक को नाप लेता है कि उसके शिष्य की साधना किस स्तर तक पहुंची है।
उन्होंने कहा कि कोई अगर यह सोचता है कि उसने अपनी समस्याओं का हल खुद ही निकाल लिया या निकाल लेगा, तो फिर गुरु की आवश्यकता ही क्या है? सच्चाई यही है कि आप अपनी समस्याओं का हल खुद निकाल ही नहीं सकते, आपकी प्रत्येक समस्याओं के हल के लिए उसकी कुंजी आपके गुरु के पास हैं। वहीं आपकी आध्यात्मिक पथों पर आनेवाली कठिनाइयों को चुटकी में हल कर सकता है।
स्वामी निगमानन्द ने कहा कि गुरु के प्रति श्रद्धा रखनी चाहिए, क्योंकि श्रद्धा में ही ज्ञान का प्रकाश होता है। जिस प्रकाश में आनन्द ही आनन्द है। इसी से निष्ठा का प्रार्दुभाव भी हो जाता है। कठिन परिस्थितियों में भी हमारी ईश्वर या गुरु के प्रति प्रेम किसी भी प्रकार से कम नहीं होना, दरअसल यही श्रद्धा की पराकाष्ठा है।
उन्होंने इसी संदर्भ में गौतम बुद्ध से जुड़ी एक कथा सुनाई। एक बार गौतम बुद्ध जब राजगृह प्रवास पर थे। तब उस दौरान वे प्रातः काल में भिक्षाटन को निकले। थोड़ी ही दूर गये थे। तो उन्होंने एक राजकुमार को स्नान करने के बाद देखा कि वो चारों दिशाओं में मुड़-मुड़कर दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम कर रहे हैं। गौतम बुद्ध ने जब उस राजकुमार को ऐसा करते देखा तो उन्होंने राजकुमार से प्रश्न किया कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं। राजकुमार ने कहा कि उन्हें इसका कारण नहीं पता। लेकिन पिता जी ने कहा था, तो वे ऐसा कर रहे हैं।
स्वामी निगमानन्द ने कहा कि उस राजकुमार के हृदय में यहां अपने पिता के प्रति श्रद्धा व निष्ठा साफ दिख रही थी। लेकिन कारण उसे मालूम नहीं था। गौतम बुद्ध ने राजकुमार को बताया कि दरअसल पूर्व माता-पिता, पश्चिम पति-पत्नी, उत्तर इष्ट-मित्रादि तथा दक्षिण दिशा सेवकों का प्रतिनिधित्व करता है। अब ये आपको सम्मान दे अथवा न दें। लेकिन आपको हर हाल में इनका सम्मान करना और इन पर विशेष ध्यान देना है।
स्वामी निगमानन्द ने कहा कि हमारे प्रिय गुरुदेव परमहंस योगानन्द कहते हैं कि तुम्हें कोई मान दे रहा हैं या नहीं, ये उतना महत्वपूर्ण नहीं। जितना ये महत्वपूर्ण हैं कि तुम किसी को कितना सम्मान दे रहे हो या उनका कितना ख्याल रख रहे हो। उन्होंने कहा कि भगवान व गुरु की शक्ति पर विश्वास रखना और उन पर समय आने पर भरोसा रखना, दोनों अलग-अलग बाते हैं।
उन्होंने कहा कि जो अपने गुरु या ईश्वर पर श्रद्धा रखते हैं। उन्हें ही ज्ञान का लाभ प्राप्त होता है। ऐसे ही ज्ञान से शांति की भी प्राप्ति होती हैं। इसी पर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि हे अर्जुन जो भी साधक उनके प्रति अनन्य श्रद्धा रखते हुए, उनको भजता है, ऐसे लोगों को तुम साधु मानो, ऐसे लोग ही धर्मात्मा है, ऐसे ही लोग सही मायनों में मेरे भक्त होते हैं, जिनका विनाश कभी हो ही नहीं सकता, क्योंकि इनकी सारी व्यवस्थाओं को मैं स्वयं देखता हूं।
स्वामी निगमानन्द ने यह भी कहा कि श्रद्धा में शुद्धता का होना आवश्यक है। हमारी चेतना पर बाहरी शक्तियों का प्रभाव पड़ता रहता है। इनमें कुछ पूर्व जन्मों की भी भूमिका रहती हैं। फिर भी इसमें निरन्तर सुधार हो, इसके लिए चेष्टा साधक को ही करनी पड़ेंगी। श्रद्धा एक ऐसी सम्पत्ति है, जो जितना अपने सद्गुरु को अर्पित करेगा, वो उतना ही लाभान्वित होता जायेगा। उसकी साधना निरन्तर आध्यात्मिक पथ पर प्रगति करती रहेगी।