जो रांची प्रेस क्लब का चुनाव हार कर भी जीते, उसे संजय रंजन कहते हैं
पिछले दिनों यानी शनिवार को रांची प्रेस क्लब का चुनाव संपन्न हो गया और देखते ही देखते रविवार को प्रेस क्लब के नव-निर्वाचित पदाधिकारियों की सूची भी अखबारों ने निकाल दी। रांची प्रेस क्लब के अध्यक्ष पद के लिए छः उम्मीदवार मैदान में थे। जिसमें इन सभी उम्मीदवारों में संजय रंजन सबसे कम उम्र का उम्मीदवार था। इन उम्मीदवारों में कई ऐसे भी थे, जो पूर्व में प्रेस क्लब के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ चुके थे और विजयी भी हुए, कार्यभार भी संभाला। लेकिन क्या संभाला। ये वहीं जाने।
इस बार के अध्यक्ष पद के चुनाव में संजय रंजन ने 141 वोट लाकर दूसरा स्थान प्राप्त किया। जबकि सत्य प्रकाश पाठक 121 वोट लाकर तीसरे, शफीक अंसारी 111 वोट लाकर चौथे, राजेश कुमार सिंह 109 वोट लाकर पांचवें और सुरेन्द्र सोरेन 53 वोट लाकर छठे स्थान पर रहे। ज्ञात रहे, राजेश कुमार सिंह रांची प्रेस क्लब के पहले अध्यक्ष रहे हैं, जबकि सुरेन्द्र सोरेन निवर्तमान अध्यक्ष थे। जहां भी लोकतांत्रिक प्रकिया चलती है। वहां भले ही कितने उम्मीदवार हो। लेकिन जीतेगा – एक ही। बाकी सभी हारेंगे ही।
हारने का मतलब यह भी नहीं होता कि हार जानेवाला व्यक्ति अब कुछ है ही नहीं। व्यक्तित्व किसी भी हार या जीत का गुलाम नहीं होता। व्यक्तित्व ही इस बात को इंगित करता है कि कोई व्यक्ति अपने जीवन में कितनी दूरी कब और कैसे तय कर सकता है। जब मैं दिलीप श्रीवास्तव नीलू जी के कहने पर न्यूज 11 ज्वाइन किया था। उसी दौरान दो बच्चों से मेरी वहां भेंट हुई। एक बिपिन सिंह और दूसरा संजय रंजन। दोनों बच्चे मेरा काफी इज्जत करते थे। आज भी करते हैं और लगता है कि आगे भी करेंगे ही।
संजय रंजन को मैं जब भी देखता हूं। तो महसूस करता हूं कि वो जैसा बाहर से दिखता है। वैसा अंदर से भी हैं। बाकी ज्यादातर लोगों को खासकर पत्रकारिता जगत में मैंने पाया कि ड्यूल कैरेक्टर के मिलें। जो उपर से कुछ, भीतर से कुछ और कब क्या कर देंगे वो अलग से कुछ। मेरी आदत रही है कि मैं खुलकर किसी के बारे में लिखता हूं। लेकिन इसलिए नहीं लिखता हूं कि उससे मेरा हानि होगा या लाभ? लेकिन लिखता हूं। क्योंकि ईश्वर ने मुझे लिखने के लिए ही भेजा है।
क्योंकि ऋग्वेद कहता है कि “ऐ मन तू मत डर, ठीक उसी तरह जैसे दिन और रात्रि कभी नहीं डरते, वे नियत समय पर अपनी उपस्थिति का ऐहसास करा देते हैं। ऐ मन तू मत डर, जैसे सूर्य व चन्द्र अपने होने का हर समय ऐहसास करा देते हैं।” संजय रंजन की खासियत हैं, वो खुलकर बोलता है। वो हमसे भी लड़ जाता है। ऐसा लड़ता है कि कोई देख लें तो पता चले कि अब कृष्ण बिहारी और संजय रंजन में कभी बात ही नहीं होगी। लेकिन पल ही में, संजय रंजन की विनम्रता इस बात की ऐहसास करा देती है कि वैचारिक लड़ाई और रिश्तों की समझ दो अलग-अलग बातें हैं।
ये बच्चा शत प्रतिशत शुद्ध मानसिकता को बढ़ावा देनेवाला है। इसने बचपन में कई झंझावातों को सहा है। उन झंझावातों को देख-सुन कर ही बड़ा हुआ है। पढ़ाई की है और खुद से स्वयं को गढ़ा है। वो आज भी है तो किसी की कृपा पर नहीं हैं। उसने जो आज मुकाम बनाई है। वो उसकी अपनी है। ये केवल मैं ही नहीं कहता, उसके बारे में और लोगों की भी यही राय है। जैसी कि मेरी राय है। हाल ही में इसी से मिलती-जुलती राय, वरिष्ठ पत्रकार मनोज श्रीवास्तव की संजय रंजन के बारे में देखी थी।
इस बच्चे ने बड़ी तेजी से रफ्तार पकड़ी है। ये रफ्तार उसकी अपनी मेहनत और जमीन से जुड़े रहने के कारण है। ठीक है, वो अभी हारा है। लेकिन ये उसकी हार नहीं हैं। हो सकता है कि ईश्वर ने उसके लिए कोई बड़ा सा स्थान पहले से ही तय कर रखा हो, वो उस स्थान को पायेगा। लेकिन उस स्थान तक पहुंचने के लिए उसे प्रयास तो करने होंगे। फिर ऐसे ही प्रयास और झंझावात तो ही उसे एक दिन वो स्थान दिलायेंगे, जिसका उसे ही नहीं, बल्कि हमें भी इंतजार है। संजय रंजन ने रांची प्रेस क्लब के चुनाव में दूसरा स्थान पाकर, स्वयं को इस प्रकार से स्थापित किया है कि अब उसे कोई नजरंदाज नहीं कर सकता। क्योंकि उसने दूसरा स्थान जो पाया है, वो दिलो पर राज करने की वजह से हैं, न कि मगजमारी और न कि झूठ के पुलिंदे पर।
