वरिष्ठ अधिवक्ता अभय कुमार मिश्र की लिखी पुस्तक “लॉ रिलेटिंग टू सोसाइटीज रिजस्ट्रेशन इन द स्टेट ऑफ झारखण्ड” शीघ्र ही बाजार में होगी उपलब्ध
झारखण्ड हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अभय कुमार मिश्र बहुत प्रसन्न हैं। वे अपनी प्रसन्नता विद्रोही24 से व्यक्त करते हुए कहते हैं कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। अगर आवश्यकता नहीं हो तो कोई व्यक्ति उस चीज को प्राप्त करने का प्रयास नहीं करता, जिसके नहीं रहने पर उस व्यक्ति को बार-बार कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
वे बड़े ही गर्व से कहते हैं कि वे रामकृष्ण सेवा संघ व विवेकानन्द विद्या मंदिर से कई वर्षों से जुड़े है और इन दोनों संस्थाओं की बेहतरी के लिए उनका प्रयास वर्षों से जारी है। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी है कि वे नहीं चाहते कि ये संस्थाएं निरन्तर विकास की गति को बनाये रखें। वे इसके विकास को अवरुद्ध करने के लिए नाना प्रकार के प्रंपच रचते हैं। ऐसे-ऐसे प्रपंच की, उससे प्रपंच शब्द तक शरमा जाये।
लेकिन वैसे लोगों को शर्म नहीं आती। वे कहते हैं कि वे ऐसे प्रपंचियों को भी ढेरों आभार प्रकट करते हैं, जिनके प्रपंचों ने उन्हें मजबूती प्रदान की और उन्होंने अपनी हरकतों से नाना प्रकार के मिथ्या, कपोल-कल्पित, मुकदमे उन पर दर्ज करवाएं। जिसको लेकर उन्हें एक किताब पर काम करना पड़ा और वो किताब आज शक्ल ले चुका है। उसका आईएसबीएन नंबर भी मिल चुका है। किताब का नाम है – लॉ रिलेटिंग टू सोसाइटीज रिजस्ट्रेशन इन द स्टेट ऑफ झारखण्ड।
अभय कुमार मिश्र कहते है कि जिन कपोल-कल्पित मुकदमों का उन्हें सामना करना पड़ा। वो सारे मुकदमें एक ही कानून से संबंधित थे वो था संस्थान निबंधन अधिनियम 1860, जो झारखण्ड में लागू है। इस अधिनियम को उन्हें इतना बार पढ़ना पड़ा कि उन्हें ये कंठस्थ हो गया। वे यह भी कहते हैं कि झारखण्ड में इस कानून का संस्थान निबंध अधिनियम का कोई पुस्तक भी उपलब्ध नहीं था। जिससे उन्हें और अन्य सभी अधिवक्ताओं को काफी परेशानियां होती थी।
झारखण्ड में संस्था निबंधन अधिनियम के कानून अन्य राज्यों से भिन्न है। अन्य प्रदेशों ने संस्थान अधिनियम में संशोधन कर लिया है। अन्य प्रदेशों में संशोधित कानून झारखण्ड में लागू नहीं है। इसलिए बड़ी परेशानी होती है, झारखण्ड मे क्या लागू है, क्या लागू नहीं है? इस पर उन्होंने पुस्तक लिखना शुरू किया, जो इतना आसान भी नहीं था। वे कहते हैं कि इस कार्य को पूरा करने में उन्हें वरीय अधिवक्ता व पूर्व महाधिवक्ता अजीत कुमार का बहुत सहयोग मिला। साथ ही सहयोग प्रीतम ला हाउस का भी मिला।
विगत सात से आठ महीने में सभी के पूर्ण मनोयोग से यह पुस्तक अपना पूर्ण आकार ले रहा है। पुस्तक अंतिम छपाई के लिए तैयार हैं। एक दो सप्ताह में बाजार में भी आ जायेगा। अभय कुमार मिश्र ये भी कहते हैं कि मनुष्य कितना भी उत्कृष्ट कार्य करें, फिर भी कुछ न कुछ भूलें रह जाती है। इसलिए जो लोग इस पुस्तक को पढ़ेंगे और उन्हें उसमें कुछ त्रुटियां मिलें और उसे वे सूचित करेंगे तो बड़ी कृपा होगी।