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अपनी बात

नेताओं याद रखो, यह समय टिव्टरबाजी का नहीं, पत्रकारों को मदद करने का हैं, मीडिया संस्थानों पर दबाब डलवाओ और उन्हें उनका हक दिलवाओ

इधर पत्रकारों का कोरोना संक्रमण से मरना जारी है। संख्या 20 को पार कर गई है, लेकिन क्या मजाल कि कोई भी राज्य का नेता या पत्रकार से नेता बना, नेता पत्रकारों के लिए कुछ कर जाये, सभी घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। कोई पत्रकारों के मरने के बाद, उसके बारे में झूठी श्रद्धाजंलि देकर अपना पिंड छुड़ा ले रहा हैं, तो कोई दो मिनट का मौन धारण कर, स्वयं को इस प्रकार जनता के समक्ष पेश आ रहा हैं, जैसे लगता है कि उसने गजब कर डाला है।

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