हड़प्पा अथवा सिंधु–सरस्वती सभ्यता पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का सफलतापूर्वक समापन, प्रो. रेणु विज ने कहा युवाओं को कम्फर्ट जोन से बाहर निकलकर अपने जड़ों से जुड़ने की जरुरत
हड़प्पा अथवा सिंधु–सरस्वती सभ्यता केवल अतीत की धरोहर नहीं, बल्कि भविष्य के लिए मार्गदर्शन प्रदान करने वाली जीवंत परंपरा है। हमें परम्परा और आधुनिकता का मिलन कराने के प्रयास करने चाहिए क्योंकि यही एक तरीका है जिसके माध्यम से हम युवाओं को अपने गौरवशाली इतिहास से जोड़ सकते हैं। आज के युवाओं को अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलकर अपनी जड़ों से जुड़ने की जरूरत है। यह बात पंजाब विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. रेणु विज ने “हड़प्पा अथवा सिंधु–सरस्वती सभ्यता: नामकरण के उभरते प्रतिमान” विषय पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में कही।
यह संगोष्ठी पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में 22-23 अगस्त को सप्त सिंधु फाउंडेशन ट्रस्ट और आईसीएसएसआर – उत्तर-पश्चिम क्षेत्रीय केंद्र, पंजाब विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में तथा हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय, धर्मशाला के भारतीय मत, पंथ, संप्रदाय एवं सेमिटिक रिलिजन अध्ययन केंद्र के शैक्षणिक सहयोग से आयोजित की गई।
संगोष्ठी के समापन सत्र में मुख्य अतिथि के तौर पर पंजाब विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. रेणु विज और विशिष्ट अतिथि के तौर पर आईसीएसएसआर – उत्तर-पश्चिम क्षेत्रीय केंद्र, पंजाब विश्वविद्यालय की मानद निदेशक प्रो. उपासना जोशी मौजूद रहीं। संगोष्ठी की अध्यक्षता सप्त सिंधु फाउंडेशन ट्रस्ट के अध्यक्ष प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने की।
वहीं संगोष्ठी के पहले दिन आभासी स्वागत सत्र में मुख्य अतिथि के तौर पर हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सत प्रकाश बंसल और बीज वक्ता के तौर पर डेक्कन कॉलेज विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो. वसंत शिंदे उपस्थित रहे। समापन सत्र की शुरुआत दीप प्रज्वलन और स्वागत उद्बोधन के साथ की गई। संगोष्ठी संयोजक डॉ. गिरीश गौरव ने दो दिवसीय आयोजन की विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत की।
विशिष्ट अतिथि तथा आईसीएसएसआर उत्तर-पश्चिम क्षेत्रीय केंद्र की मानद निदेशक प्रो. उपासना जोशी ने कहा कि इस प्रकार का विमर्श समाज और शिक्षा जगत के लिए अत्यंत आवश्यक एवं प्रासंगिक है। यह हमारा दायित्व बनाता है कि हम सामाजिक अनुसंधान के क्षेत्र में इस दिशा में तेजी से अग्रसर हों। उन्होंने कहा कि लगातार सिंधु–सरस्वती सभ्यता की दिशा में हो रहे शोध कार्य यह साबित करते हैं कि हम पहले से ही सभ्य रहे हैं।
संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए सप्त सिंधु फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. कुलदीप चंद अग्निहोत्री ने सप्त सिंधु के सम्पूर्ण इतिहास को संक्षिप्त में बताते हुए कहा कि इतिहास को गलत तरीके से प्रस्तुत करने का प्रयास अंग्रेजों द्वारा किया गया। वे अपनी गलत प्रस्तुति को आज तक साबित करने का प्रयास कर रहे हैं, इसलिए वे आज भी हड़प्पा सभ्यता से आगे इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं, जबकि सच्चाई इससे भिन्न है। नामकरण का सवाल इसलिए आवश्यक है कि पहले इसे हड़प्पा या इंडस वैली सिविलाइजेशन कहा जाता था क्योंकि उस समय केवल सिंधु नदी के पास से ही अवशेष प्राप्त हुए थे, लेकिन वर्तमान में यह केवल सिंधु के तटों तक ही सीमित नहीं है बल्कि अनेक क्षेत्रों तक विस्तार प्राप्त कर चुका है।
संगोष्ठी के संयोजक डॉ. गिरीश गौरव ने दो दिवसीय संगोष्ठी की रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए कहा कि इन दो दिनों में देश के विभिन्न हिस्सों से लगभग 250 से अधिक शिक्षाविदों, शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने ऑनलाइन और ऑफलाइन हिस्सा लिया। वहीं 60 से अधिक शोधपत्र प्रस्तुत किए गए।
तकनीकी सत्रों में प्रस्तुत शोधपत्रों और विचार-विमर्श में नामकरण के सवाल का स्पष्ट उत्तर तलाशने का प्रयास किया गया। साथ ही विमर्श सभ्यता का नामकरण और इसकी भाषिक प्रक्रिया, सांस्कृतिक स्मृति, सामूहिक पहचान और भविष्य की शोध दिशा के इर्द-गिर्द घूमता रहा।