चतुर्थ बाल मेले में बाल अधिकार संरक्षण अधिनियम पर संगोष्ठीः पूर्व न्यायाधीश एस एन पाठक ने कहा मोरल साइंस में 75 प्रतिशत अंक लाना अनिवार्य कर देना चाहिए
झारखंड उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एस एन पाठक ने कहा है कि बच्चे देश के भविष्य हैं। बचपन को सुधारने का काम किया जाए। उनकी नींव मजबूत की जाए। यहां चतुर्थ बाल मेले में आयोजित बाल अधिकार संरक्षण अधिनियम विषयक संगोष्ठी में श्री पाठक ने कहा कि समाज में नैतिक शिक्षा देने की जरूरत है। मोरल साइंस की पढ़ाई नहीं होती। ये विधिवत होनी चाहिए। मोरल साइंस में 75 प्रतिशत नंबर लाना अनिवार्य कर देना चाहिए।
एस.एन. पाठक ने कहा कि हमारे यहां सामाजिक पतन इसलिए हो रहा है क्योंकि हम ये चाहते हैं कि ये हो। इसके लिए जिम्मेदार हम ही हैं। उन्होंने कहा कि पापी से नहीं, पाप से घृणा करना चाहिए। जिस समाज में हम रहते हैं, उस समाज के बच्चों के लिए कुछ करें। यह हमारी जिम्मेवारी होनी चाहिए। आपका अधिकार, आपके कर्तव्य के साथ चलता है।
श्री पाठक ने कहा कि बाल श्रम खतरनाक है। उन्होंने कहा कि झारखंड के एक स्थान पर उन्होंने आयरन ओर के माइंस में बच्चों के काम करते देखा है। ये उस राज्य में हुआ, जहां प्रावधान लागू हैं। सरकारी तंत्र इन चीजों से अनभिज्ञ नहीं है। सरकार को पता है, इसके बावजूद अवैध काम हो रहा है। इसे हर हाल में रोकना होगा।
उन्होंने कहा कि भारत में चोर वह है, जो पकड़ा जाता है। विदेशों में आप चोरी कर रहे हैं तो आप खुद ही पकड़े जाएंगे क्योंकि वहां डर है। भारत में किसी को किसी से डर नहीं। ऐसा इसलिए है क्योंकि हमें कानूनों के बारे में जानकारी नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि कानून के बारे में हमें जानना होगा, पढ़ना और समझना होगा।
श्री पाठक ने कहा कि संविधान हर कानून की मां है। संविधान में हर चीज का प्रावधान है। उसे जानने की जरूरत है। झालसा और लीगल सर्विसेज अथारिटी का काम ही है लोगों की मदद करना। झालसा को चाहिए कि वह पंपलेट लोगों के बीच में बांटें। सारे नियम-कानून बने हुए हैं। जरूरत है हथौड़ा चलाने की, पहल करने की। मीडिया के लोग भी जागरुक हों। श्री पाठक ने संविधान में बच्चों को दिये गए 10 अधिकारों के बारे में भी सविस्तार चर्चा की। उन्होंने जेजे एक्ट, पॉक्सो एक्ट समेत कई एक्टों के बारे में भी बताया।
चंद्रदीप पांडेय ने राइट टू एजुकेशन पर कहा कि बच्चों का बचपन मोबाइल तक सीमित हो गया है। उसे नई दिशा देना जरूरी है। यही बाल मेला में हो रहा है। 2009 में शिक्षा का अधिकार अधिनियम में शिक्षा को मौलिक अधिकार के रुप में जोड़ा गया। 6 से 14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा देना राज्य सरकार की अनिवार्यता बन गई है। अब चीजें धीरे-धीरे बदल गई हैं।
शिक्षक-छात्र अनुपात तय किया गया है। 30 बच्चों पर एक शिक्षक का अनुपात तय किया गया है। खेल के मैदान, शौचालय, व्यावहारिक शिक्षा आदि दी जा रही है। योग्य शिक्षकों की बहाली के नए मानदंड निर्धारित किये गए हैं। बच्चों के साथ कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। इन्क्लूसिव एजुकेशन को प्रमोट किया गया। शिक्षा का अधिकार हम सभी के लिए वरदान है। दीपक कुमार सिंह ने जुवेनाइल और पॉक्सो एक्ट के बारे में बताया।
विकास दोदराजका ने कहा कि कानून, योजनाएं, नियम और अधिनियम देश भर में लागू हैं। झारखंड राज्य बाल संरक्षण आयोग सही तरीके से सक्रिय रहता है। उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि संसाधन तो बढ़ गए लेकिन बच्चों के विरुद्ध हिंसा में कोई कमी नहीं आ रही। हम आमजन तक इस बात को नहीं पहुंचा सके कि बच्चों की रक्षा के लिए कितने कड़े कानून हैं। हमें कानूनों की जानकारी भी नहीं है।
बाल श्रम अधिनियम में नियम है कि 14 साल से नीचे के बच्चे से कोई काम नहीं करा सकते, फिर भी वो कर रहे हैं। पॉक्सो एक्ट के मामले रोज बढ़ते जा रहे हैं। बच्चों के प्रति सेक्सुअल हिंसा के मामले बढ़ रहे हैं। अच्छी बात ये है कि झारखंड में बच्चों के प्रति हिंसा रोकने के लिए व्यापक पैमाने पर प्रचार-प्रसार किया जा रहा है। पहले जो बातें छुपी रहती थी, वो अब सामने आ रही हैं और उस पर कार्रवाई भी हो रही है, मामले दर्ज हो रहे हैं। उन्होंने दुख जताया कि बच्चों में नशे का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। कहा कि कोई प्लान नहीं है कि इसे कैसे रोकें। ये चिंतनीय है। इस पर विचार करना ही होगा।
आदर्श सेवा संस्थान की प्रभा जायसवाल ने कहा कि बच्चों को हमने अहमियत नहीं दी। उनको समझा ही नहीं। बच्चे कमजोर हैं, हर मामले में। हम बड़ों की अपेक्षा बेहद कमजोर हैं। इनके लिए विशेष तरीके से काम करने की जरूरत है। 20 नवंबर 1989 को हमने अंतरराष्ट्रीय बाल दिवस को मान तो लिया, दस्तखत कर दिया। लेकिन क्या बच्चों के अधिकार संरक्षित हो पाए? हमारे यहां कई कानून बने। जेजेसी एक्ट बना, पॉक्सो एक्ट बना। ये सब बच्चों के हित को ध्यान में रखते हुए बनाया गया। कितना सुंदर कानून है।
लेकिन समाज है कि मानता ही नहीं। कानून अलग, समाज अलग। जेजे एक्ट तो ऐसा है कि अगर मां-बाप बच्चे के लिए कुछ न करें तो जेजे एक्ट करेगा। बच्चे वर्तमान ही नहीं, भविष्य भी हैं। वर्तमान गड़बड़ हो तो भविष्य बढ़िया कैसे होगा। 40 से 59 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं, बाल विवाह है, अर्बन स्लम को मान्यता देनी होगी। अब लड़का-लड़की भाग कर शादी कर रहे हैं। ये मूलतः बाल विवाह ही है। बच्चों के अधिकार के बारे में भी सोचना चाहिए। बच्चों के पुनर्वास के बारे में योजना बनाई जानी चाहिए। हर बस्ती में ड्रग्स बिक रहे हैं। इन्हें रोकने की दिशा में काम करना जरूरी है।
जमशेदपुर बार एसोसिएशन के सीनियर मेंबर एडवोकेट अनिल कुमार ने कहा कि बच्चों को शिक्षित करने की जरूरत है। बच्चों को पता ही नहीं कि अगर उनके साथ कोई दुराचार होता है तो उन्हें बताना चाहिए। पॉक्सो एक्ट में इस बात की व्यवस्था है कि आप अपने ऊपर हुए अत्याचार को बताएं और चुप न रहें। इस एक्ट के तहत आपकी बात किसी को नहीं बताई जाएगी। राइट टू इन्फार्मेशन एक्ट में यह भी व्यवस्था है कि आप बच्चों के साथ कैसे व्यवहार करें। 14 साल के बच्चे से काम नहीं लेना है, ये एक्ट में है। लेकिन हम ही उसे तोड़ देते हैं। आर्टिकल 15 (3) में राज्य सरकार के पास यह व्यवस्था है कि वे बच्चों के हित में खुद भी नए नियम बना सकते हैं। अधिनियम बनाने भर से कुछ नहीं होगा। हमें जागरुक होना होगा।
संजय मिश्रा ने कहा कि पॉक्सो एक्ट को समझदारी से कार्यरुप में हमें लाना होगा। 34 सामाजिक सुरक्षा योजनाएं हैं। हम चाहें तो बच्चों को इन योजनाओं से जोड़ सकते हैं। समस्याएं खत्म हो जाएंगी। योजनाओं में परिवार को केंद्र बिंदु बना कर काम करना चाहिए। जमशेदपुर को चाइल्ड फ्रेंडली डिस्ट्रिक्ट बनाने का संकल्प हमें लेना चाहिए। कानून को धरती पर उतारने वाले लोग जब तक संवेदनशील नहीं होगे, फायदा नहीं होगा। विषय प्रवेश राजहंस तिवारी ने कराया। मंच संचालन अधिवक्ता प्रतीक ने जबकि संजीव रंजन बरियार ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
