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सरयू का दावा – सारण्डा वन्य जीव अभ्यारण्य घोषित होने के बाद पर्यटन, वन उत्पाद आदि से जो साधन पैदा होंगे वे खनन से मिलनेवाले लाभों से कई गुणा अधिक और स्थायी लाभ सिद्ध होंगे

जमशेदपुर पश्चिम के विधायक सरयू राय ने आज रांची प्रेस क्लब में पत्रकारों से बातचीत के क्रम में, सारंडा सेंक्चुअरी को लेकर अपने 18 वक्तव्य जारी किये। उन सारी वक्तव्यों को झारखण्ड के प्रत्येक व्यक्तियों को पढ़ना चाहिए, पढ़ना उन्हें भी चाहिए जो पर्यावरण की सुरक्षा और पर्यावरण को लेकर चिन्तित रहते हैं। वो वक्तव्य क्या हैं? नीचे दे दिया गया है…

  1. सारण्डा सेंक्चुअरी घोषित करने के बार में सर्वोच्च न्यायालय ने दिनांक 17 सितम्बर को एक कड़ा आदेश जारी किया है और कहा है कि झारखण्ड सरकार 07 अक्टूबर, 2025 तक सारण्डा वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित करे अन्यथा राज्य के मुख्य सचिव जेल जाने के लिए तैयार रहे।
  2. इसके पूर्व गत 29 अप्रैल, 2025 को झारखड सरकार के वन पर्यावरण विभाग के सचिव ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष सशरीर उपस्थित हुए थे, अभ्यारण्य घोषित होने में देरी के लिए क्षमा याचना किया था और कहा था कि झारखण्ड सरकार 57,519.41 हेक्टेयर क्षेत्र में अभ्यारण्य घोषित करेगी और 13603,80 हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र को ससंगदा बुरू संरक्षण रिजर्व के रूप में अधिसूचित करेगी। परंतु सरकार ने यह वादा पूरा नहीं किया।
  3. उल्लेखनीय है कि बिहार सरकार ने 06 फरवरी, 1969 को सारण्डा वन क्षेत्र के 314.68 वर्ग किलोमीटर इलाके को गेम सेंक्चुअरी घोषित किया था, जिसका उल्लेख सारण्डा वन प्रमण्डल के वर्किंग प्लान 1976 में है। मैंने इस बारे में विधानसभा में 02 मार्च 2021 को प्रश्न पूछा था, जिसके उत्तर में सरकार ने कहा था कि बिहार सरकार की यह अधिसूचना सरकार के पास उपलब्ध नहीं है।
  4. आज झारखण्ड सरकार की एक मंत्रिमंडलीय उपसमिति सारण्डा वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित करने के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययन करने के लिए सारण्डा गया है। उप समिति द्वारा मंत्रिपरिषद को दिये गये परामर्श के अनुसार ही सरकार सर्वोच्च न्यायालय में आगामी 08 अक्टूबर, 2025 को अपना पक्ष रखेगी।
  5. सारण्डा वन क्षेत्र में खनन का इतिहास काफी पुराना है। सबसे पहले बोनाई आयरन कंपनी को घाटकुरी क्षेत्र में 06 दिसम्बर, 1909 को 249.60 और 281.60 एकड़ में आयरन ओर खनन का लीज दिया गया था। इसी तरह 08 दिसम्बर, 1915 तक अंकुवा और घाटकुरी इलाका में इस कंपनी को कुल 2706.16 एकड़ क्षेत्र में आयरन ओर और मैंगनींज के खनन का लीज दिया था। इसके बाद में सार्वजनिक क्षेत्र और निजी क्षेत्र की कतिपय कंपनियों को मिलाकर स्वतंत्रता के पूर्व 11,886 एकड़ अर्थात 4,831.71 हेक्टेयर क्षेत्र में लीज दिया गया था।
  6. स्वतंत्रता के उपरांत सार्वजनिक क्षेत्र की कुल 12 कंपनियों को कुल 6,633.30 हेक्टेयर में और निजी क्षेत्र की कुल 30 कंपनियों को 3132.18 हेक्टेयर क्षेत्र में लीज दिया गया था।
  7. इसके अतिरिक्त सार्वजनिक क्षेत्र की दो कंपनियों को 115.46 हेक्टेयर में और निजी क्षेत्र की 5 कंपनियों को 5,128.20 हेक्टेयर क्षेत्र में आयरन ओर और मैंगनींज के खनन का प्रोस्पेक्टिंग लीज दिया गया।
  8. वर्ष 2006 के बाद मधु कोड़ा की सरकार में सारण्डा क्षेत्र में खनन लीज लेने वालों की बाढ़ आ गई। करीब 65,679.40 हेक्टेयर में माईनिंग लीज के आवेदन आये। इसमें प्रायः सभी आवेदन निजी क्षेत्र की कंपनियों का था। उल्लेखनीय है कि सारण्डा सघन वन का कुल क्षेत्रफल करीब 85,712 हेक्टेयर है।
  9. ऐसा लगा कि खनन कंपनियां पूरे सारण्डा सघन वन क्षेत्र में खनन लीज प्राप्त कर लेना चाहती है और तत्कालीन राज्य सरकार भी इसके पक्ष में थी। इस तरह सारण्डा सघन वन क्षेत्र का अस्तित्व पर खतरा पैदा हो गया है। इसके मद्देनजर मैंने ‘‘सारण्डा संरक्षण अभियान’’ आरंभ किया और राज्य सरकार पर अवैध खनन करने और सारण्डा वन खेत्र का अस्तित्व समाप्त करने का आरोप लगाया। इसे लेकर वर्ष 2012 में मैंने माननीय झारखण्ड उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका भी दायर किया, जिसका निष्पादन हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय का आदेश आने के बाद उसके अनुरूप हुआ।

मैंने न्यायालय को बताया कि एक तरफ भारत सरकार के वन महानिदेशक के निर्देशानुसार (16 जून, 2003) झारखण्ड सरकार ने वन एवं पर्यावरण विभाग ने पर्याप्त अध्ययन के उपरांत सारण्डा क्षेत्र के कुल 63,199.89 हेक्टेयर क्षेत्र को अभग्न (नो माईनिंग क्षेत्र) क्षेत्र घोषित करने का प्रस्ताव दिया है तो दूसरी ओर इन सभी इलाकों में झारखण्ड सरकार के खान विभाग ने खनन लीज देने का आवेदन स्वीकार किया है।

  1. इस बीच झारखण्ड सहित अन्य राज्यों में अवैध खनन के आरोपों की जाँच के लिए भारत सरकार ने 22.09.2010 को एम.बी. शाह आयोग का गठन किया। एम.बी. शाह आयोग ने अवैध खनन पर कार्रवाई करने और सारण्डा वन क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण करने की अनुशंसा की।
  2. इसके बाद भारत सरकार के सलाह पर झारखण्ड सरकार ने 27.08.2011 को पलामू के प्रोफेसर डी.एन. इंटिग्रेटेड वाईल्ड लाईफ मैनेजमेंट प्लान तैयार करने के लिए एक समिति बनाया। इस समिति ने भी सारण्डा वन क्षेत्र को संरक्षण करने तथा अभग्न क्षेत्रों को चिन्हित करने की अनुशंसा की।
  3. इसके बाद एक वन्यजीव विशेषज्ञ डॉ. आर.के. सिंह ने 2020 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के समक्ष सारण्डा को बचाने के लिए और बिहार सरकार के द्वारा घोषित किये गये गेम सेंक्चुअरी के आदेश को लागू करने के लिए आवेदन दिया, जिस पर एनजीटी ने 12.07.2022 को सारण्डा सेंक्चुअरी बनाने का आदेश राज्य सरकार को दिया। यह आदेश दो वर्ष तक लागू नहीं हुआ तो डॉ. आर.के. सिंह की सलाह पर पलामू, झारखण्ड के प्रोफेसर डी.एस. श्रीवास्तव इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय ले गये और गोदावर्मन मुकदमा (1995) में हस्तक्षेप याचिका दायर किया। सुनवाई के दौरान झारखण्ड सरकार के वन एवं पर्यावरण सचिव ने सर्वोच्च न्यायालय को दिनांक 16.04.2025 को सूचित किया कि झारखण्ड सरकार के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक ने सरकार के समक्ष सारण्डा वन क्षेत्र के करीब 57,551 हेक्टेयर को क्षेत्र को वन्यजीव अभ्यारण्य क्षेत्र घोषित करने और 13,603 हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र को संरक्षित रिजर्व के रूप में घोषित करने का प्रस्ताव दिया है। झारखण्ड के वन सचिव, अबु बकर सिद्दीकी ने सर्वोच्च न्यायालय को आश्वस्त किया कि यह प्रस्ताव टिप्पणी के लिए वाईल्ड लाईफ इंस्टिच्यूट, देहरादून को भेजा गया है। इसका प्रतिवेदन आते ही सरकार इसे राज्य वन्यजीव पर्षद के सामने और तदुपरांत मंत्रिपरिषद में रखा जाएगा और तब इस क्षेत्र को सारण्डा वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित कर दिया जाएगा। अभी तक सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष किया गया यह वादा सरकार ने पूरा नहीं किया है। इस कारण सर्वोच्च न्यायालय ने अगले 08 अक्टूबर, 2025 के पूर्व इस क्षेत्र को वन्यजीव अभ्यारण्य घोषित करने अथवा मुख्य सचिव को जेल भेजने का कड़ा आदेश पारित किया है।
  4. खनन और उद्योग क्षेत्र के प्रतिनिधियों द्वारा कहा जा रहा है कि सारण्डा क्षेत्र में करीब 40 लाख टन का लौह अयस्क रिजर्व है। देश के विकास के लिए इसका खनन आवश्यक है। सारण्डा वन्यजीव अभ्यारण्य क्षेत्र घोषित होने के बाद इसका खनन नहीं हो पाएगा और विकास अवरूद्ध हो जाएगा।

ज्ञातव्य है कि भारत सरकार ने इस संबंध में एक माईनिंग प्लान फॉर सस्टेनेबल माईनिंग (एमपीएसएम) हेतु एक उच्चस्तरीय समिति तथा इसके बाद सारण्डा कैरिंग कैपेसिटी अध्ययन के लिए एक उच्चस्तरीय समिति 2014 में गठित किया गया। इन समितियों ने सतत खनन योजना लागू करने का सुझाव दिया, जिसमें खनन के साथ ही पर्यावरण तथा सामाजिक एवं आर्थिक स्थिरता को प्राथमिकता दी जाए, ताकि खनिज का निष्कर्षण करते समय प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण किया जा सके। इन प्रतिवेदनों में भी झारखण्ड के वन एवं पर्यावरण विभाग द्वारा पूर्व में तैयार किये गये सारण्डा के अभग्न क्षेत्रों के प्रतिवेदनों पर मुहर लगाया और कहा कि सारण्डा क्षेत्र में खनन की प्रक्रिया में पर्यावरण, वन्य जीव संरक्षण, जैव विविधता आदि का संरक्षण आवश्यक है।

  1. इसके बावजूद झारखण्ड सरकार द्वारा सारण्डा वन्य जीव अभ्यारण्य घोषित करने में आनाकानी करना समझ से परे है। सरकार इस मामले में खनन और विकास को एक दूसरे के साथ जोड़ना चाहती है, तो इस पर विचार किया जाना चाहिए कि धनबाद, हजरीबाग, रामगढ़ आदि जिलों की खनन और विकास की क्या स्थिति है? यह भी विचारणीय है कि सारण्डा क्षेत्र में अबतक स्वीकृत खनन लीज में खनन के दौरान स्थानीय क्षेत्र का कितना विकास हुआ है ?
  2. उपर वर्णित विभिन्न उच्चस्तरीय समितियों के प्रतिवेदनों के आधार पर सरकार को सस्टेनेबल माईनिंग प्लान बनाना चाहिए। महत्वपूर्ण यह नहीं है कि सारण्डा में जमीन के अंदर कितना लौह अयस्क मौजूद है, बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि आज झारखण्ड राज्य के लिए अथवा पूरे देश के लिए इस्पात बनाने के कारखानों में कुल कितने लौह अयस्क की आवश्यकता है? अगले 50 वर्षों तक इस आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए अब तक सारण्डा के जितने क्षेत्रों में लौह अयस्क और मैंगनींज का खनन पट्टा दिया गया है, वह पर्याप्त है। 50 वर्ष के बाद अगर देश को जरूरत होती है तो अभ्यारण्य घोषित होने वाले क्षेत्र में से कतिपय क्षेत्रों को डिनोटीफाई किया जा सकता है, इस पर कोई प्रतिबंध नहीं है। परंतु लौह अयस्क का व्यापार करने और इसका निर्यात करने के लिए सारण्डा क्षेत्र की प्राकृतिक संपदा को दाँव पर लगाना उचित नहीं होगा।

सारण्डा वन्य जीव अभ्यारण्य घोषित होने के बाद पर्यटन, वन उत्पाद आदि से आजीविका के जो साधन पैदा होंगे वे खनन से वहां की जनता को मिलनेवाले लाभों से कई गुणा अधिक है और ये स्थायी लाभ हैं।

  1. यह कहना कि सारण्डा क्षेत्र में खनन से विकास होगा, कतई विश्वसनीय प्रतीत नहीं हो रहा है। अब तक खनन ने सारण्डा के जल, जंगल, नदियों एवं जलस्रोतों, वन्यजीव एवं जन स्वास्थ्य पर कितना प्रतिकूल प्रभाव डाला है इस पर विचार किया जाना आवश्यक है।
  2. कई मुकदमों में सर्वोच्च न्यायालय का स्पष्ट आदेश है कि यदि खनन और पर्यावरण संरक्षण के बीच एक को चुनना हो तो पर्यावरण संरक्षण को प्राथमिकता दी जाएगी।
  3. राज्य सरकार से अनुरोध है कि सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष झारखण्ड के वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के सचिव द्वारा सारण्डा वन्य जीवन अभ्यारण्य घोषित करने और रिजर्व क्षेत्र घोषित करने हेतु जो प्रस्ताव है तत्काल उसे स्वीकार करे और आगामी 08 अक्टूबर के पहले इस आशय की अधिसूचना निर्गत करे ताकि एशिया के सुप्रसिद्ध वन क्षेत्र सारण्डा को सरंक्षित किया जा सके।

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