रांची गौशाला न्यास के समीप सुप्रसिद्ध समाजसेवी पुनीत पोद्दार ने अपने पिता प्रेम कुमार पोद्दार की स्मृति में शुरु कराया अन्नपूर्णा सेवा
ईश्वर आनन्द प्रदान करने/करानेवाला कार्य करने का सौभाग्य विरले को ही प्रदान करता है। जिसे यह सौभाग्य प्राप्त होता है, वो पूर्व, वर्तमान व आनेवाले जन्मों को भी कृतार्थ कर डालता है। यह भी सत्य है कि कोई जरुरी नहीं कि जिसको ईश्वर ने धन-धान्यादिक से परिपूर्ण किया है, तो वो दयालु या परोपकारी ही होगा। दयालु व परोपकारी होना भी ईश्वरीय गुण है, जो ईश्वर के द्वारा ही प्रदत्त होता है।
पुनीत पोद्दार ऐसे ही शख्स है। वे ऐसे-ऐसे कार्य करते हैं/हाथों में लेते हैं, जिससे समाज को अनेक लाभ होता है। आज ही उन्होंने अपने प्रयासों से अपनी जिंदगी में एक और रंग भरने का प्रयास किया है। जिसकी सर्वत्र प्रशंसा हो रही है। उन्होंने आज ही अपने माता जी के हाथों से अपने स्व. पिता श्री प्रेम कुमार पोद्दार जी की स्मृति में ‘अन्नपूर्णा सेवा’ का उद्घाटन करवाया है। यह सेवा रांची गौशाला न्यास अर्थात् गोकुल धाम द्वारा संचालित की गई है।
जो इसी जगह लोगों को मात्र दस रुपये में छह रोटियां, एक सब्जी और अचार उपलब्ध करायेगी। कोई भी व्यक्ति इस सेवा का लाभ प्रतिदिन दोपहर 12 बजे से लेकर दो बजे तक उठा सकता है। इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। चूंकि आज पहला दिन था। आज कई लोगों ने बिना शुल्क के ही इस सेवा का लाभ उठाया और रांची गौशाला न्यास से जुड़े सभी लोगों की प्रशंसा की।
ऐसे भी रांची गौशाला न्यास से जो लोग जुड़े होते हैं। उनमें परोपकार व दया की भावना कूट-कूट कर भरी होती है। इस न्यास से जुड़े लोगों का मानना है कि गायें बचेंगी तो मानव बचेंगे। मानव बचेंगे तो देश बचेगा। गौ सेवा राष्ट्र सेवा के समान है। संप्रति पुनीत पोद्दार रांची गौशाला न्यास के अध्यक्ष भी है और वे गौ सेवा ही नहीं, बल्कि मानवीय मूल्यों से ओत-प्रोत होने के कारण, ऐसे कई परोपकार के कार्य वे अनायास भी कर देते हैं, जिसका किसी को पता भी नहीं चलता।
चूंकि आज अन्नपूर्णा सेवा का उद्घाटन था, तो इस उद्घाटन के अवसर पर एक छोटा सा कार्यक्रम भी रखा गया था। जिसमें समाज के संभ्रांत लोगों ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया। इस दौरान समाज के अग्रणी समाजसेवियों और संस्थाओं को सम्मानित भी किया गया। इसके पूर्व पुनीत पोद्दार ने अपने वक्तव्य में कहा कि रांची गौशाला न्यास 101 साल पुरानी संस्था है। शायद ही रांची में ऐसी कोई पुरानी संस्था है, जो परोपकार के कार्य में इस प्रकार लगी हो।
पुनीत पोद्दार ने कहा कि अगर ईश्वर ने हमे सामर्थ्यवान बनाया है तो हमें इसका भी ख्याल रखना चाहिए कि जो लोग विकास के क्रम में किसी कारणवश पीछे छूट गये हैं, उनके लिए हम कुछ करें। उन्होंने कहा कि जब हम गौशाला में आ जाते हैं, उसी वक्त हम पुण्य के भागी हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि गौशाला के प्रति समर्पण का भाव तो हमेशा से हिन्दू समाज में रहा है। करीब 80 प्रतिशत हिन्दू गौशाला की सेवा में रुचि रखते हैं।
लेकिन हिन्दू समाज के इतर भी कई समाज ऐसे हैं, जो खुलकर गौ-सेवा में लगे हैं। वे चुपके से अपना काम कर जाते हैं। लेकिन किसी को बताते तक नहीं। पुनीत पोद्दार ने कहा कि ऐसे ही सिक्ख समाज के एक व्यक्ति है, जो हमेशा गौशाला के लिए अपनी ओर से उदारता पूर्वक दान करते हैं। वे स्वयं ही उन्हें फोन करते हैं और कहते है कि पुनीत भाई, उन्हें गौशाला के लिए कुछ देना है और उनका दान करीब सात अंकों में होता है।
पुनीत पोद्दार ने कहा कि वे गौशाला के नाम पर कई प्रोजेक्ट चलाना चाहते हैं, जो समाज के लिए कल्याणप्रद हो। वे गौशाला के कायाकल्प पर भी सोच रहे हैं। उन्होंने कहा कि गौशाला के नाम पर बहुत सारे जमीन हैं, जिस पर हम मानवमात्र की सेवा के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि वे रामकृष्ण मिशन जैसे संस्थाओं से जुड़े हैं। जिसके स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि प्रत्येक को सभी जीवों के कल्याण के लिए सोचना चाहिए। वे नर सेवा-नारायण सेवा का भाव रखने की सभी से कामना करते थे। उन्होंने कहा कि उनके मन में इसी भाव को लेकर कई प्रोजेक्ट मन में चल रहे हैं। देखते हैं गौमाता हम पर कब कृपा करती हैं।
उन्होंने कहा कि उन्हें खुशी है कि इसी रांची में माहेश्वरी समाज, रांची के सेवा सदन के समीप अन्नपूर्णा सेवा पिछले 13 वर्षों से सफलतापूर्वक चला रही हैं। अब हमलोग भी यहां से इस कार्य को शुरु किया है। कोई भी व्यक्ति या संस्था अगर कोई अच्छा कार्य करता हैं तो लोगों को उससे प्रेरणा मिलती है। कई लोगों ने उनसे संपर्क किया कि हम भी कुछ इसमें योगदान करना चाहते हैं। आखिर ये क्या है, यही है कि हमारी संस्कृति और हमारी परम्परा।
उन्होंने सभी से कहा कि कुछ भी हो जाये। हम सब को अपनी संस्कृति से जुड़कर रहना चाहिए। सभी को चाहिए कि वे अपने बच्चों में संस्कृति के प्रति भाव जागृत करें। उन्हें गौशाला लाये। उन्हें बताएं कि हमारी संस्कृति ही हमारे जीवन का मूलाधार है। अगर हम इसे बचा लिये, तो हम जीवित हैं, नहीं तो जीने का कोई अर्थ नहीं।