मन की समस्याएं मन के स्तर पर नहीं सुलझाई जा सकती, इसके लिए हमें मन के परे जाना होगा और ये सिर्फ योग से ही संभव हैः ब्रह्मचारी सच्चिदानन्द
रांची स्थित योगदा सत्संग आश्रम में रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए ब्रह्मचारी सच्चिदानन्द ने योगदा भक्तों को संबोधित करते हुए कहा कि मन अगर आपका शांत है, तो आप बधाई के पात्र है और अगर मन आपका शांत नहीं है, तो इस पर आपको बहुत काम करने की जरुरत है। इसलिए माइन्ड मोटर को कैसे बंद करें, माइन्ड मोटर कैसे ठीक से काम करें, इस पर हर व्यक्ति को ध्यान देने की जरुरत है।
उन्होंने यह भी कहा कि दरअसल हमलोग भूत काल की स्मृतियों में ज्यादा समय व्यतीत करते हैं और आनेवाली कल्पनाओं में खोये रहते हैं। लेकिन जो वर्तमान चल रहा होता है। उस पर हमारा ध्यान नहीं रहता। भूतकाल की स्मृतियों में रहना और भविष्य की कल्पनाओं में खोये रहना, ये सभी बेकार की चीजें हैं। इनमें कोई सत्यता भी नहीं हैं। इस प्रकार की स्मृतियों में रहना ही माइन्ड मोटर को प्रभावित करता है।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में रहने से ही माइन्ड मोटर ठीक रहता है, जैसे बच्चों को देखिये। वे कभी पूर्व की स्मृतियों या भविष्य की कल्पनाओं में खुद को नहीं रखते। वे हमेशा वर्तमान में स्वयं को रखते हैं। यही कारण रहता है कि हमलोगों की अपेक्षा उनका मन अत्यधिक शांत रहता है। ब्रह्मचारी सच्चिदानन्द ने कहा कि हर व्यक्ति को बीती हुई स्मृतियों और भविष्य की कल्पनाओं से दूर वर्तमान में भगवान की चिन्तन में खुद को रखना चाहिए। अगर भौतिक वस्तुओं और पूर्व तथा भविष्य की स्मृतियों में रहेंगे तो आप ईश्वर से दूर होते चले जायेंगे।
उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में स्वयं कहा कि सबके हृदय में आत्मा के रूप में मैं ही निवास करता हूं। नेत्रों का आहार है – सर्वत्र ईश्वर को देखना, न कि मनुष्यों या अन्य वस्तुओं को देखना। उन्होंने कहा कि हमलोग इस मेंटल वर्ल्ड में रहते हैं, इसलिए हम मेंटल मोटर की बातें कर रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति का मेंटल वर्ल्ड अलग और भिन्न है। इसका किसी से कोई मेल नहीं।
उन्होंने कहा कि चेतना की तीन अवस्था होती है – जागृत, सुसुप्त, स्वप्निल और एक इससे भी अलग तुरीयावस्था होती है, जो इन तीनों से परे होती है। यह अवस्था शुद्ध चेतना, आनन्द और सत्य से प्रेरित होती है। जिसमें व्यक्ति अपने इंद्रियों से परे जाकर स्वयं को ब्रह्म के स्वरूप में अनुभव करता है। उन्होंने कहा कि मन की समस्याएं मन के स्तर पर नहीं सुलझाई जा सकती। इसके लिए हमें मन के परे जाना होगा और ये सिर्फ योग से ही संभव है।
उन्होंने कहा कि सर्वश्रेष्ठ योग है – राज योग। जिसके बारे में योगदा में बताया जाता है। यो यहां उपस्थित है, वे सभी राज योग के आनन्द को ही प्राप्त करने के लिये आये हैं। उन्होंने कहा कि समाधि पद में योगद्रष्टा अपने आपको अपने स्वरूप में ही पाता है। अभ्यास और वैराग्य से हम पनपनेवाली विभिन्न वृत्तियों पर अंकुश लगा सकते हैं। अगर आप वृत्तियों में फंसे हैं तो आप अपने स्वरूप में नहीं रह सकते।
उन्होंने कहा कि जगत को सपना नहीं मानना ही पाप है। इसके कारण ही मन मोटर तेज चलता है और आप शांत नहीं रहते। उन्होंने इसी बीच छान्दग्योपनिषद में वर्णित सत्यकाम जाबालि की कथा सुनाई कि कैसे उन्होंने अपने गौतम ऋषि के कारण ब्रह्म का चिन्तन करते-करते ब्रह्म को प्राप्त कर लिया।
उन्होंने भक्ति योग के दृष्टांत के क्रम में संत तुकाराम की जीवनी का चित्रण किया। उन्होंने सभी से संत तुकाराम के जीवनी को मनन करने को कहा। उन्होंने यह भी कहा कि योगदा के भक्त स्वामी भक्तानन्द की लिखी आर्टिकल को पढ़कर भी भक्तियोग के मर्म को अच्छी तरह समझ सकते हैं। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि आपके सद्विचारों का ईश्वर के श्रीचरणों में जाना ही जप योग है, भक्तियोग है।
उन्होंने कहा कि जप और ध्यान एक नहीं हैं। ध्यान के इतर है – जप। ध्यान, जप से भी श्रेष्ठ है। ब्रह्मचारी सच्चिदानन्द ने कर्म योग की भी व्याख्या की। उन्होंने कहा कि आप कोई भी कर्म करेंगे तो उसके फल आपको तीन प्रकार से मिलेंगे। पापफल, पुण्यफल व मिश्रित फल। लेकिन जो महायोगी हैं, वे जो कर्म करते हैं, उनको उनके कर्मों को फल नहीं मिलता, क्योंकि वे अपने सारे कर्म ईश्वर को समर्पित किये होते हैं। उन्होंने ज्ञान योग की व्याख्या करते समय दक्षिण के महान संत रमन महर्षि की कथा सुनाई। जो रोचक थी। जो हमेशा अपने स्वरूप में रहते थे।