अपनी बात

प्रभात खबर यानी खुद ही आयोजक, खुद ही विशेषज्ञ और खुद ही अपने फोटो और बयानों से अपनी अखबार रंग ली, आखिर ये हेल्थ कॉन्क्लेव था या वेल्थ कॉन्क्लेव?

11 सितम्बर को रांची के होटल रेडिशन ब्लू में झारखण्ड का खुद को सर्वाधिक प्रसारित हिन्दी दैनिक बतानेवाला, जिसका ध्येय वाक्य है – अखबार नहीं आंदोलन अर्थात् प्रभात खबर ने हेल्थ कॉन्क्लेव का आयोजन किया। इस हेल्थ कॉन्क्लेव के माध्यम से प्रभात खबर का कहना था कि उसने स्वास्थ्य सेवाओं पर मंथन किया। अब इसने मंथन किया या हेल्थ कॉनक्लेव के नाम पर वेल्थ कॉन्क्लेव किया या अपनी आर्थिक स्थिति सुधारी या आम जनता को मूर्ख बनाया, इसका आकलन या फैसला कौन करेगा? प्रभात खबर या राज्य की जनता या राज्य सरकार?

इस कथित मंथन में कॉन्क्लेव के नाम पर पारस एचईसी हास्पिटल, आर्किड हास्पिटल, अंबिशा रियल एस्टेट डेवलपर्स प्रा लि., डॉ लाल हास्पिटल, अडानी पावर, होपवेल हॉस्पिटल, बर्लिन वायलिन डायग्नोस्टिक एंड डे केयर, सीएमपीडीआई, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने खुलकर प्रभात खबर को आर्थिक सहयोग दिया। जिसका इवेंट पार्टनर प्रभात खबर से ही जुड़ा प्रभात खबर डॉट कॉम डिजिटल न्यूज मीडिया पार्टनर, रेडियो धूम रेडियो पार्टनर, प्रभात खबर बज्ज रहा।

अब जरा देखिये। नाम क्या है? हेल्थ कॉन्क्लेव और काम क्या हो रहा है, यह किसी से पूछने की जरुरत नहीं। बस प्रभात खबर का आज का अखबार ही उठा लीजिये। अब जरा उसका प्रथम पृष्ठ देखिये। प्रथम पृष्ठ पर आठ कॉलम में आजू-बाजू दो मंत्रियों के पासपोर्ट साइज के फोटो हैं। एक वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर का और दूसरी ओर स्वास्थ्य मंत्री इरफान अंसारी और इसी में दोनों के बयान छपे हैं।

एक का बयान है -कमियां हर जगह, इसे मिलकर सुधारना होगा और दूसरे का है रिम्स टू से उम्दा होगी झारखण्ड की स्वास्थ्य सेवाएं और बीच में छः व्यक्तियों का एक साथ फोटो हैं। जो मंच पर विराजमान है। इस फोटो में स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव अजय कुमार सिंह, वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर, प्रभात खबर के चीफ एडीटर आशुतोष चतुर्वेदी, एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर आर के दत्ता, वाइस प्रेसिडेंट विजय बहादुर व सीएफओ आलोक पोद्दार साफ दिख रहे हैं।

मतलब हेल्थ कॉन्क्लेव के मंच पर एक भी हेल्थ से संबंधित चिकित्सक या उसका जानकार मौजूद ही नहीं और हेल्थ कॉन्क्लेव का उद्घाटन भी हो गया। तो क्या अब हेल्थ के नाम पर ये अखबार में काम करनेवाले सम्पादक और उनके तथाकथित विभिन्न पदों पर रहनेवाले अधिकारी ही झारखण्ड की जनता का इलाज करेंगे?

कमाल देखिये। अंदर के पेजों पर लाइफ सिटी पेज भी हेल्थ कॉन्क्लेव को समर्पित है। जहां हेल्थ कॉन्क्लेव का उद्घाटन का चित्र एक ओर छपा है। जिसका उद्घाटन राज्य के मुख्यमंत्री या स्वास्थ्य मंत्री नहीं, बल्कि वित्त मंत्री कर रहे हैं। मतलब हेल्थ कॉन्क्लेव का उद्घाटन वित्त मंत्री से और उस उद्घाटन कर रहे वित्त मंत्री को चारों तरफ से प्रभात खबर के प्रधान संपादक और वहां काम करनेवाले अधिकारियों ने घेर रखा हैं। मतलब नाम हेल्थ का और काम शत प्रतिशत अपनी वेल्थ का। वाह रे प्रभात खबर और वाह रे तुम्हारा आंदोलन।

अब ठीक इसके नीचे आइये। आठ कॉलम में हेडिंग हैं – स्वस्थ झारखण्ड का विजन, विशेषज्ञों ने सुझाए समाधान और विशेषज्ञ कौन बनें हैं तो सारे प्रभात खबर के लोग यानी प्रभात खबर के प्रधान संपादक आशुतोष चतुर्वेदी, प्रभात खबर के कार्यकारी निदेशक आर के दत्ता, प्रभात खबर के वाइस प्रेसिडेंट विजय बहादुर और प्रभात खबर के सीएफओ आलोक पोद्दार। इन चारों ने आधा से ज्यादा पेज अपने बेकार के बयानों से घेर लिया है।

यानी खुद ही ये हेल्थ विशेषज्ञ बन गये और जिसने इन्हें विज्ञापन दिया, यानी राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन। जिसके सचिव हैं अजय कुमार सिंह। उन्हें नीचे ठेल दिया। कमाल की बात है न। मतलब प्रभात खबर वालों ने हद कर दी। खुद ही कॉन्क्लेव के आयोजक, खुद ही हेल्थ विशेषज्ञ और खुद ही सम्मान पानेवाले बन गये और जिनसे आर्थिक सहयोग लिया, उनकी एक-एक पासपोर्ट साइज फोटो लेकर एक अन्य पेज में जगह देकर पूरे कार्यक्रम की इतिश्री कर ली।

एक समय यही प्रभात खबर था। जहां प्रधान संपादक की फोटो किसी भी पेज पर नहीं दिखती थी और अगर दिख गई तो जिसने फोटो लगाई, उसकी तबाही सुनिश्चित थी। लेकिन आज देखिये, कॉन्क्लेव के नाम पर ये कर क्या रहे हैं। खुद ही कॉन्क्लेव आयोजित करते हैं। मार्केट में पाई जानेवाली सरकारी व निजी संस्थाओं से जमकर इसके नाम पर उगाही करते हैं और खुद ही विशेषज्ञ बनकर, अपने ही अखबार में खुद की पीठ भी थपथपवाते हैं और आश्चर्य हैं कि कोई इस पर अंगूली नहीं उठाता है। दरअसल इस प्रकार की सोच रखनेवालों को चमड़ी इतनी मोटी हो गई हैं कि उन्होंने लाज-शर्म सब कुछ धो दिया है।

इन्हें ये भी नहीं पता कि इन्हीं सभी कारणों से समाचार पत्र और यहां कार्यरत लोगों के प्रति लोगों का अविश्वास बढ़ा है। ये अविश्वास का ही कारण रहा है कि नेपाल में जब युवाओं ने क्रांति की घोषणा की तो इस क्रांति की चपेट में आने से बड़े-बड़े अखबारों की बिल्डिंग भी नहीं बच सकी और वो भी आग की लपेटों में आ गये।

कमाल है। कॉन्क्लेव करो तुम। उसके नाम पर बाजार से माल उठाओ तुम। विशेषज्ञ बनो तुम। अपने ही अखबार में अपना नाम और फोटो छपवाओं तुम और उस अखबार को अपने पैसे से खरीदे झारखण्ड की भोलीभाली जनता। क्या लगता है कि आप इसी तरह मूर्ख बनाते रहोगे और लोग मूर्ख बनते रहेंगे। नहीं, एक दिन आयेगा। लोग जगेंगे और आपसे पूछेंगे कि आप जो इस प्रकार का इवेंट करके जो उन्हें मूर्ख बना रहे हो, वो अब बर्दाश्त नहीं करेंगे।

हेमन्त सरकार को चाहिए कि इस प्रकार के धूर्त लोगों पर प्रतिबंध लगाये। वैसे मंत्रियों और राज्य के प्रशासनिक अधिकारियों पर भी शिकंजा कसें। जो इस बेकार की, फालतू की कॉन्क्लेव में जाकर अपना और जनता का समय नष्ट करते हैं तथा राज्य की भोली-भाली जनता के पैसों को आयोजक के रूप में खुद को शामिल करवाकर लूटवा देते हैं। अच्छा रहेगा कि जनता का पैसा, जनता में खर्च हो। हां, जिन नेताओं व मंत्रियों या अधिकारियों को ये सब अच्छा लगता हैं, वे अपने पैसों से इस प्रकार का कार्यक्रम आयोजित करें/कराएं तो राज्य की जनता को क्या परहेज हो सकता है।

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