कार्तिक शुक्ल रवि षष्ठी व्रत के प्रथम दिन अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के लिए झारखण्ड के विभिन्न जलाशयों के समीप उतरा छठव्रतियों का विशाल परिवार
आज कार्तिक शुक्ल रवि षष्ठी व्रत, जिसे छठ भी कहा जाता है। उसका पहला दिन था। इस महापर्व छठ के प्रथम दिन अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के लिए छठव्रतियों का विशाल परिवार झारखण्ड के विभिन्न जलाशयों के समीप पूरे भक्तिभाव से उतरा। सभी ने भगवान भास्कर को नमन किया। छठि मइया को हृदय से प्रणाम कर अपना भक्ति निवेदित किया।

इस बार पहली बार राज्य सरकार ने छठव्रतियों और उनके परिवारों के लिए विशेष व्यवस्था की थी। छठ घाटों की तो विशेष सफाई हुई ही, छठ घाटों तक पहुंचने के लिए सड़कों की भी मरम्मति कराई गई। विभिन्न घाटों पर लाइट की विशेष व्यवस्था की गई थी। ड्रेस चेंज करने के लिए कई जगह घाटों पर विशेष व्यवस्था भी थी। जिसका छठव्रतियों ने खुलकर उपयोग किया और सरकार की प्रशंसा भी की।

विद्रोही24 ने महसूस किया कि जैसे ही दोपहर के दो बजे, झारखण्ड के विभिन्न जलाशयों पर छठव्रतियों और उनके परिवारों का आना शुरू हो गया। पीले व भगवा वस्त्र धारण किये महिला व पुरुष बेहद ही आकर्षक लग रहे थे। उनके चेहरे पर दिव्यता साफ झलक रही थी। इन छठव्रतियों के पीछे-पीछे छठि मइया की गा रही गीतों के साथ आ रहा उनका परिवार मन को मोह रहा था।

विभिन्न जलाशयों पर छठि मइया के गाये जा रहे गीत, भगवान भास्कर को मंगल गीतों के द्वारा गोहराया जाना कानों को अति प्रिय लग रहा था। बड़े-बड़े ईखों के साथ आ रहे छठव्रतियों का परिवार बड़े ही आकर्षक ढंग से ईखों की सहायता से छठ घाटों को सजा रहे थे। पीले कपड़ों से ढके फलों व पकवानों से लदे दउरे मनोहारि दृश्य उपस्थित कर रहे थे।
जैसे ही दउरा घाटों पर रखा जाता। छठव्रतियों का परिवार, उसमें रखे फलों से लदे सूपों को निकालते और घाटों पर सजा देते। अचानक छठव्रतियों और उनके परिवारों की नजर आकाश में विचरण कर रहे भगवान भास्कर को अस्त होते देखती हैं। चारों ओर शोर होता है। अर्घ्य देने का समय हो चुका है। लोग अर्घ्य देना शुरू करते हैं। यह दृश्य आंखॆं को बहुत ही आनन्द देनेवाला होता है।
लोग छोटे-छोटे बच्चों को अपने गोद में लेकर भगवान भास्कर और छठि मइया को हृदय से प्रणाम करते हुए अर्घ्य दे रहे होते हैं। उधर छठव्रतियों के परिवारों का समूह छठ गीत गा रहा है। सभी आनन्दमग्न है और इस प्रकार आज का पहला दिन समाप्ति की ओर अग्रसर होता है। लोग धीरे-धीरे अपने-अपने दउरे को सहेजते हैं और फिर अपने घर की ओर छठि मइया का गीत गाते चल देते हैं।

