अपनी बात

दुर्भाग्य देखिये! आई है यूं प्यार पे जवानियां, अरमां दिल में हैं, दिल मुश्किल में हैं जाने तमन्ना… जैसे फिल्मी गीतों के साथ भाजपाइयों ने मनाई अपने प्रिय नेता वाजपेयी और मालवीय जी का जन्मोत्सव

25 दिसम्बर को भारत के दो महान चरित्रों का जयंती था। वो महान चरित्र जिनको वर्तमान भारत सरकार ने भारत रत्न से नवाजा हैं। ये दोनों महान चरित्र हैं – महामना मदन मोहन मालवीय और अटल बिहारी वाजपेयी। अटल बिहारी वाजपेयी तो देश के प्रधानमंत्री, भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता व वरिष्ठ पत्रकार भी रहे हैं। खुद भाजपा के लोग भी उनकी महानता के गान कहते नहीं थकते।

लेकिन जब उनकी जयंती होती है, तो ये करते क्या है? फिल्मी गीतों का सहारा लेकर स्वयं के दिल को आनन्दित करने का प्रयास करते हैं। जैसे लगता हो कि जिस व्यक्ति का वे जन्मदिन मना रहे है, वो व्यक्ति कोई फिल्मी दुनिया से जुड़ा शख्स रहा हो। अगर इस दिन फिल्मी गीतों का अगर प्रोग्राम नहीं रखें, तो ऐसे महान शख्स का अपमान हो जायेगा।

आम तौर पर एक साधारण व्यक्ति भी जानता है कि किसी महान राजनीतिज्ञ का जयंती कैसे मनाया जाता है? लेकिन इन दिनों पूरे समाज में इतनी गिरावटें आ रही हैं कि वो गिरावटें अब महापुरुषों के जयंती के दिन भी दिखाई देने लगे हैं और ऐसा करनेवाले कौन लोग हैं? वे लोग हैं, जो देश, राष्ट्र और महापुरुषों के सम्मान के नाम पर पता नहीं, क्या-क्या करने की रट लगा रहे होते हैं?

आज से कुछ दिन पहले 25 दिसम्बर की रात, रांची के चुटिया में यही देखने को मिला। आप भी इस न्यूज के साथ जो फोटो दिये गये हैं, उसे देख सकते हैं कि मंच पर जो बैकड्राप बना है। जिस पर दो महापुरुषों एक भारत रत्न महामना मदन मोहन मालवीय और दूसरा भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी के चित्र बने हैं और उस मंच पर गायक और गायिका विराजमान हैं। जो अपने गीत-संगीत से वहां उपस्थित भाजपा के दिग्गज नेताओं व कार्यकर्ताओं का फिल्मी गीतों से मनोरंजन कर रहे हैं। गीत के बोल है – आई है यूं प्यार पे जवानियां, अरमा दिल में है, दिल मुश्किल में हैं जाने तमन्ना ….।

अब क्या कोई भाजपा का नेता बतायेगा कि अटल बिहारी वाजपेयी और महामना मदन मोहन मालवीय की जयंती पर यही सब होगा या इनकी जयंती सम्मानपूर्वक मनाई जायेगी। ठीक उसी प्रकार जैसा कि इन दोनों महापुरुषों का चरित्र रहा है। क्या किसी महापुरुष के जन्मदिन के दिन लिट्टी-पार्टी होगी? मनोरंजन के कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे या ऐसे महापुरुषों के व्यक्तित्व व कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए, उनके पदचिह्नों पर चलने का संकल्प लिया जायेगा।

दरअसल भाजपा नेता व कार्यकर्ता दोनों ने अपना संस्कार व चरित्र खोना शुरु कर दिया है। जिसका परिणाम है कि भाजपा झारखण्ड में सिमटती जा रही है। लेकिन, इस पर ध्यान कौन देगा? जब भाजपा के शीर्षस्थ नेता ही, इस प्रकार की गीतों को सुनकर आनन्दित होंगे। मस्ती में डूबेंगे तो जो पार्टी का क्षरण हो रहा है। वो तो होगा ही। जो लोग, जो भाजपा के नेता उक्त पार्टी में शामिल थे, उन्हें स्वयं चिन्तन-मनन करना चाहिए कि क्या गलत है और क्या सही?

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