अपनी बात

देर रात यू-ट्यूबर तीर्थनाथ में भाजपा नेताओं को दिखी अटल बिहारी वाजपेयी की झलक, उसके समर्थन में फेसबुक पर उतरे, हेमन्त सरकार व झारखण्ड पुलिस को खरी-खोटी सुनाई

कभी पत्रकार, कभी राजनीतिज्ञ तो कभी यूट्यूबर के रूप में चर्चित रहनेवाले युवा तीर्थनाथ आकाश एक बार फिर चर्चा में हैं। इस बार चर्चा में इसलिए हैं कि वर्तमान में भाजपा में शामिल झारखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्रियों को तीर्थनाथ में भाजपा के बड़े नेता, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की झलक देखने को मिल गई, फिर क्या था? झारखण्ड प्रदेश भाजपा के शीर्षस्थ नेता तीर्थनाथ आकाश के समर्थन में सड़कों पर तो नहीं, लेकिन सोशल साइट ‘फेसबुक’ पर खुलकर उतर गये।

इन भाजपाइयों ने तीर्थनाथ आकाश को शानदार, वजनदार पत्रकार की श्रेणी में रखते हुए, हेमन्त सोरेन सरकार और उनकी पुलिस को जमकर खरी-खोटी सुनाई। जबकि एक समय ऐसा भी था कि इसी भाजपा में शामिल एक मुख्यमंत्री रघुवर दास के शासनकाल में सन् 2018 में तीर्थनाथ आकाश के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हुई थी। उस केस में तीर्थनाथ को सात महीने राज्य से बाहर भी रहना पड़ा।

तीर्थनाथ आकाश के शब्दों में जब उस पर पारिवारिक दबाव बढ़ी तो उसने 2019 में आत्मसमर्पण किया। एक महीने जेल में भी रहा। छह साल बाद जब केस की सुनवाई हुई तो उसे उक्त केस से मुक्ति मिल गई। तीर्थनाथ आकाश ने ही फेसबुक पर एक जगह लिखा है कि अभी उसके उपर तीन केस और हैं। ऐसे भी तीर्थनाथ आकाश का प्राथमिकी व जेल से चोली-दामन जैसा रिश्ता रहा है।

इधर जैसे ही कल अरगोड़ा थाना ने कुछ समाचारों को लेकर तीर्थनाथ पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से उसे हिरासत में लेने की कोशिश की। तीर्थनाथ ने उस पूरे कांड को फेसबुक लाइव करना शुरु किया। फेसबुक लाइव से ही पता चला कि अरगोड़ा थाना के पुलिसकर्मियों ने उसे हिरासत में लेकर थाने ले आये हैं।

नेता प्रतिपक्ष बाबूलाल मरांडी, पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन, पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा, भाजपा के महान एवं अद्वितीय पूर्व प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश, भाजपा के ही महान सजायाफ्ता सांसद ढुलू महतो, प्रवक्ता अजय साह, रमेश पुष्कर की आत्मा जाग उठी। ये सारे के सारे भाजपा नेता ऐसे उछल पड़े, जैसे उन्हें एक बहुत बड़ा हथियार मिल गया हो। उक्त हथियार को इस्तेमाल करने से उनकी छवि चमक जायेगी और देखते ही देखते जनता के बीच में अलोकप्रिय हो चुकी भाजपा को फिर से लोकप्रिय होने का नया मौका मिल जायेगा।

इधर भाजपा का आंचल पकड़कर झारखण्ड में एक से दो होने का मौका ढूंढ रही आजसू के नेताओं ने भी इस मौके का इस्तेमाल करना चाहा और ये लोग भी फेसबुक पर क्रांति करने के लिए निकल पड़े। जब तक ये लोग क्रांति करते, अरगोड़ा पुलिस को जो टास्क मिला था। वो अरगोड़ा पुलिस अपना टास्क पूरा कर चुकी थी। वो तीर्थनाथ आकाश के कानों में मंत्र फूंक चुकी थी कि उसे अब आगे करना क्या है?

दूसरी ओर तीर्थनाथ आकाश को चाहनेवाले लोग भी तब तक उसके पक्ष में माहौल बनाने में लग चुके थे। कोई उन्हें जनता का दुख-दर्द बांटनेवाला पत्रकार तो कोई महान आंदोलनकारी कहकर संबोधित करने लगा था। ऐसे भी कहा जाता है जब तक पुलिस किसी को गिरफ्तार नहीं करती, थोड़ा दबाव नहीं बनाती, किसी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा पूरी नहीं होती। तीर्थनाथ आकाश 2024 में संपन्न हुई झारखण्ड विधानसभा चुनाव में बेरमो विधानसभा सीट से टेम्पो छाप पर निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ चुके हैं।

ये कभी जयराम महतो की पार्टी में भी किस्मत आजमा चुके हैं। कई यूट्यूब चैनलों में भी रहकर अपनी किस्मत आजमाई है। इस बार जिस प्रकार से भाजपा के दिग्गजों ने उनका खुलकर साथ दिया और उनमें अटल बिहारी वाजपेयी की झलक देखी। तीर्थनाथ आकाश को चाहिए कि वो भाजपा के इन दिग्गजों से मिले समर्थन का लाभ उठाएं। जैसे अटल बिहारी वाजपेयी पत्रकारिता से राजनीति में आकर अपनी हैसियत दिखाई, प्रधानमंत्री बने।

तीर्थनाथ आकाश और कुछ नहीं तो बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा और चम्पाई सोरेन जैसे भाजपा नेताओं के मार्गदर्शक तो अवश्य बन सकते हैं। अरे भाई जब भाजपा के लोग अरुप चटर्जी में पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान पं. दीन दयाल उपाध्याय का चरित्र देख रहे थे। उसके घर जाकर भाजपा कैसे आगे बढ़े, उससे मार्गदर्शन प्राप्त कर रहे थे, तो तीर्थनाथ आकाश भी भाजपा में जाकर, पूरे प्रदेश में अलोकप्रिय हो चुकी भाजपा को लोकप्रिय बनाने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी की भूमिका में फिट क्यों नहीं बैठ सकता।

इधर बुद्धिजीवियों का कहना है कि झारखण्ड पुलिस, यूट्यूबर तीर्थनाथ आकाश को हिरासत में लेती है। उधर भाजपा के प्रदेश के शीर्षस्थ नेता मुखर होते हैं। लेकिन जिस प्रकार से भाजपा के शीर्षस्थ नेता मुखर होते हैं। वैसा ही मुखर झारखण्ड का कोई पत्रकार क्यों नहीं हुआ और न ही कोई पत्रकार संगठन तीर्थनाथ आकाश के पक्ष में आगे क्यों नहीं आया या बयान क्यों नहीं दिया।

आश्चर्य यह भी है कि यहां रांची प्रेस क्लब भी है। उस क्लब का भी कोई पदाधिकारी तीर्थनाथ आकाश के पक्ष में बयान क्यों नहीं दिया। आखिर इसका मतलब क्या है? इस पर भी विचार होना चाहिए। एक पत्रकार की गिरफ्तारी और पत्रकार समुदाय ही चुप, लेकिन राजनीतिक दल के नेता का भौकाल देर रात तक जारी। यह तो सही मायनों में शोध का विषय है। जिसे लेकर जिस पत्रकार या यूट्यूबर समुदाय को दर्द होना चाहिए, उसे दर्द नहीं और जिसे दर्द नहीं होना चाहिए, उसे ही दर्द क्यों हुआ? इसका मतलब तो कुछ न कुछ तो है ….

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