कल्पना और हेमन्त का जादू अब भी घाटशिला में बरकरार, सोमेश का जीतना तय, अब औपचारिकता मात्र बाकी
11 नवम्बर को घाटशिला विधानसभा का उपचुनाव होना है। भाजपा ने इस विधानसभा उपचुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन को अपना उम्मीदवार बनाया है और झारखण्ड मुक्ति मोर्चा ने इसी सीट पर चुनाव लड़ कर विधानसभा पहुंचे, मंत्री बने दिवंगत रामदास सोरेन के बेटे सोमेश सोरेन को अपना उम्मीदवार बनाया है।

दोनों पार्टियों की ओर से इस सीट पर परचम लहराने के लिए जोरदार प्रयास हो रहे हैं। भाजपा ने तो इस सीट को जीतने के लिए पूरी शक्ति लगा दी है। भाजपा के 40 लोगों की टीम इस सीट को अपने कब्जे में करने के लिए एड़ी-चोटी एक कर दी है। यहां भाजपा की ओर से कई पूर्व मुख्यमंत्री भी अपना पसीना बहा रहे हैं।

इन पूर्व मुख्यमंत्रियों में खुद भाजपा के प्रत्याशी बाबूलाल सोरेन के पिता चम्पाई सोरेन, बाबूलाल मरांडी, रघुवर दास, मधु कोड़ा जैसे लोग शामिल हैं। वहीं भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री व दूसरे राज्यों में विपक्ष के नेता पद पर विराजमान नेता व केन्द्रीय मंत्री भी यहां चुनावी दौरा कर चुके हैं। जिनमें ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण मांझी भी शामिल है। लेकिन इन सभी का इलाज करने के लिए झामुमो से दो लोग ही काफी है। एक मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन तो दूसरा मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन।

राजनीतिक पंडितों की मानें, तो शुरुआती दौर में तो भाजपावाले बहुत उछल रहे थे कि इस बार घाटशिला में उनकी जीत तय है। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव के दिन नजदीक आते गये। तस्वीर बदलती चली गई। भाजपा के द्वारा लगाया गया सारा तिकड़म अब बेकार सिद्ध हो रहा है। हेमन्त सोरेन और कल्पना सोरेन की जोड़ी ने घाटशिला की जनता का रुख मोड़ दिया है।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो कल्पना सोरेन की घाटशिला में आज की सभा को कोई भी देखेगा, तो उसे पता लग जायेगा कि जनता का मूड क्या है? कल्पना सोरेन की सभा में उमड़ी जनता और उन्हें सुन रही जनता ने लगता है कि बता दिया कि उनके मन में क्या है? जबकि यही चीजें भाजपा नेताओं की बनी टीम द्वारा आयोजित हो रही जनसभा में नहीं दिख रही।
हालांकि भाजपावाले अपनी ओर से खूब माहौल बनाने में लगे हैं। लेकिन अब वो माहौल धीरे-धीरे टूटता दिख रहा है। जबकि झामुमो कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ता दिख रहा है। ऐसे भी घाटशिला के मतदाता इस बार सहानुभूति वोट करने का मन बना चुके हैं। मतलब साफ है कि भाजपा के लिए झारखण्ड में खुद को स्थापित करने की मंशा फिलहाल पूरी होती नहीं दिखती।
क्योंकि हेमन्त व कल्पना की जोड़ी के आगे, भाजपाइयों के पास कोई नेता ही नहीं हैं। जो हैं भी, वे दूसरे दलों से आये हुए हैं। वे क्या भाजपा को मजबूत बना पायेंगे। फिलहाल हेमन्त व कल्पना की जोड़ी का कमाल देखिये। घाटशिला की जनता को क्या करना है, वो ठान चुकी है। सहानुभूति नैया पर सवार सोमेश को हेमन्त व कल्पना का मिल रहा आशीर्वाद आसानी से इस उपचुनाव को पार कराने को तैयार है।
