झामुमो का सवाल – भाजपा जवाब दे, केन्द्र जवाब दे कि उसने धनखड़ को धक्का क्यों मारा?
झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के केन्द्रीय महासचिव व प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने आज संवाददाता सम्मेलन में भाजपा से सवाल पूछते हुए कहा कि भाजपा बताए कि उसने धनखड़ को धक्का क्यों मारा? वो भी तब जबकि जगदीप धनखड़ ने भारत के उपराष्ट्रपति के पद पर रहते हुए सर्वाधिक सरकार के लिए काम किया। अपने कार्यकाल में कई रिकार्ड बनाएं। विपक्ष के सांसदों को निलंबित किया। जिसके खिलाफ विपक्ष महाभियोग का नोटिस दिया। उसको भाजपा ने धक्का क्यों मारा?
सुप्रियो ने कहा कि कही ऐसा तो नहीं कि चूंकि जगदीप धनखड़ जाट समुदाय से आते हैं। जाट समुदाय सेना में पराक्रम के लिए जाना जाता है। धनखड़ चाहते थे कि पहले सेना की पराक्रम की चर्चा हो और सरकार सेना के पराक्रम को महत्व न देकर अडानी को महत्व दे दी हो, इसलिए धनखड़ ने इस्तीफा दे दिया।
सुप्रियो ने कहा कि दरअसल भाजपा इस प्रकरण पर बुरी तरह फंस चुकी है। देश को जिस प्रकार से भाजपा ने गुमराह किया। प्रधानमंत्री ने गलत बयानी की। 24 बार जिस प्रकार अमरीकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने लड़ाई रुकवाने की बात कही। वो हमारी संप्रभुता पर हमला नहीं तो और क्या है?
सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि कल मानसून सत्र की शुरुआत के पहले जब सदन के बाहर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पत्रकारों से बातचीत कर रहे थे तो उनका कहना था कि यह मानसून सत्र नहीं, बल्कि विजय उत्सव है। प्रधानमंत्री के इस बयान से उन्हें लगा कि केन्द्र की सरकार जब सदन में बैठेगी तो वह भारत की पराक्रमी सेना के बारे में बात करेगी कि उसने कैसे चीन, पाकिस्तान और तुर्की की तिकड़ी को परास्त किया।
उन्हें यह भी सुनने को मिलेगा कि ट्रम्प जो बार-बार कह रहे हैं कि उन्होंने इस युद्ध को रुकवाया। उसके बार में भी सही-सही बातें सुनने को मिलेंगी। संसद में विजय उत्सव के बारे में पहले सुनने को मिलेगा कि कैसे ऑपरेशन सिन्दूर संपन्न हुआ। लेकिन जैसे ही सदन प्रारंभ हुआ तो पहली ही चर्चा पोर्ट को लेकर थी। उस पोर्ट को लेकर जिसमें मालवाहक जहाज समुद्री तटों पर आते हैं। उस पोर्ट का, जिस पर सर्वाधिकार पोर्ट ट्रस्ट ऑफ इंडिया का है। जिसे प्राइवेटाइजेशन कर अडानी पोर्ट को देने को था।
सुप्रियो ने कहा कि मामला लोकसभा के बाद राज्यसभा में आया तो मल्लिकार्जुन खरगे ने ऑपरेशन सिन्दूर का मामला उठाया। इधर एक बात और प्रधानमंत्री फिर 23 जुलाई से विदेश दौरे पर हैं। मतलब लोकसभा में विजय उत्सव की बात नहीं होगी। बाहर में ये बातें करेंगे। लेकिन जब मामला राज्यसभा में था, तो भाजपा की अधिनायकवादी चरित्र सामने आ गया। जब केन्द्रीय मंत्री व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने चेयर की उपेक्षा करते हुए यह कह दी कि मैं जो बोलूंगा, वहीं रिकार्ड में आयेगा, कोई और बोलेगा, रिकार्ड में नहीं आयेगा।
सुप्रियो ने कहा कि ये विशेषाधिकार तो चेयर के पास, अध्यक्ष के पास, सभापति के पास सुरक्षित रहता है। जब सीमा का उल्लंघन हुआ, तो उसके बाद अध्यक्ष ने कार्यमंत्रणा समिति की बैठक बुलाई। जिसमें न तो सदन के नेता पहुंचे और न ही संसदीय कार्य मंत्री। ऐसी घटना देश में पहली बार हुई। होता तो यह है कि किसी बात पर विरोध होता हैं तो विपक्ष कार्य मंत्रणा समिति की बैठक में अपना विरोध दर्ज करता है। लेकिन यहां तो सत्तापक्ष ही विरोध दर्ज करा दिया। कार्यमंत्रणा समिति की बैठक में उपस्थित ही नहीं हुआ। शाम-शाम तक इन्हीं बातों को लेकर ऐसी घटना घट गई कि कल तक के उपराष्ट्रपति रात के साढ़े नौ बजे के बाद पूर्व उपराष्ट्रपति बन गये।