अगर आपका व्यवहार आध्यात्मिकता से युक्त है, तो आप अकेले रहे या परिवार के साथ, आपका संबंध सर्वश्रेष्ठ संबंध ही कहलायेगाः स्वामी श्रेयानन्द
अगर आपका व्यवहार आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत है, तो आप अकेले रहे या आप अपने परिवार या मित्रों के साथ रहे, आप का सभी से संबंध सर्वश्रेष्ठ संबंध ही कहलायेगा। याद रखिये आप के द्वारा ही परिवार, परिवार के बाद समुदाय, कई समुदाय मिलकर एक राष्ट्र और कई राष्ट्र मिलकर संयुक्त राष्ट्र का रूप धारण कर लेते हैं। इसमें सभी का एक दूसरे से गहरा लगाव होता है। बिना गहरा लगाव के हम एक पल भी आगे बढ़ नहीं सकते। उक्त बातें योगदा सत्संग आश्रम के श्रवणालय में आयोजित रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए स्वामी श्रेयानन्द ने योगदा भक्तों के बीच में कही।
उन्होंने कहा कि लोग कहते हैं कि आजकल अब अच्छे मित्र नहीं मिलते। इसका मूल कारण लोगों में बढ़ती स्वार्थपरकता है। जिसके कारण अब मित्रता कही टिक नहीं पाती। उन्होंने कहा कि अच्छी मित्रता के लिए स्वार्थपरकता को त्यागने में ही हमारी भलाई है। स्वार्थपरकता की जगह विचारशीलता को स्थान दें। एक दूसरे से प्रेम करना सीखें। दूसरों के खुशियों में ही अपनी खुशियां देखने का भाव रखें। मेरा कोई दुश्मन नहीं, मैं सभी का मित्र हूं, मैं सभी के साथ खुश रह सकूं। इस प्रकार के भाव को अपने मन में स्थान दें। तो हम पायेंगे कि हमारा दूसरों के साथ आध्यात्मिक व्यवहार होता चला जायेगा।
उन्होंने कहा कि आध्यात्मिक संबंध या मित्रता परिमाणात्मक नहीं, बल्कि गुणात्मक है। हम अपने अंदर गुणात्मक सुधार लायें। केवल दूसरे से अच्छाई की अपेक्षा रखना और अपने में सुधार नहीं लाने की प्रवृत्ति ठीक नहीं होती। बहुत लोग ऐसे होते हैं, जिनके पास पावर और धन-संपदा प्रचुर मात्रा में होती हैं। जिनकी वजह से उनके पास मित्रों की संख्या भी अधिक होती हैं। लेकिन जैसे ही पावर और धन-संपदा का अभाव होता है। लोग उनसे दूरियां बना लेते हैं। ऐसे पावर और धन-संपदा से युक्त लोगों को पता भी नहीं होता कि सच्चा मित्र कैसा होता है?
स्वामी श्रेयानन्द ने कहा कि एक अध्यात्मिक मित्र हमेशा स्वार्थपरकता की भावना से दूर होगा। वो हमेशा दूसरों को आदर करना चाहेगा। दूसरे की अच्छाइयों को स्वीकार करते हुए उसकी दिल से प्रशंसा भी करेगा। ये तीन गुण बता देते है कि सामनेवाला व्यक्ति आध्यात्मिक मित्र है। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही उसका जीवन/व्यवहार छलप्रपंच रहित, निष्कपट व सत्य से युक्त होगा। वो अपने कार्यों को निष्ठापूर्वक करने की कोशिश करेगा।
स्वामी श्रेयानन्द ने कहा कि गुरु जी हमेशा कहा करते थे कि हर व्यक्ति को किसी की भी आलोचना, निन्दा, बुराई आदि करने से बचना चाहिए, क्योंकि जो भी व्यक्ति ऐसा करता है, वो न तो खुद और न ही अपने परिवार या संस्थान का भला करनेवाला होता है। वो अपनी आलोचनाओं से ही अपने आध्यात्मिकता को नष्ट कर डालता है। इसलिए व्यक्ति को नकारात्मक विचारों से दूर रहना चाहिए, क्योंकि न तो ये उसके लिए अच्छा है और न उनके मित्रों के लिए।
उन्होंने कहा कि जब भी आपको कष्ट, अंधकार या नकारात्मक विचार मन में आये। तो उसके शमन करने का उपाय ढूंढे। शमन का सबसे बढ़िया उपाय है कि हमारे साथ गुरुजी हैं, तो फिर किस बात का भय। हम अपने अंदर नकारात्मक विचार क्यों लाए? जो होगा, सो अच्छा ही होगा। साथ ही अगर आपका कोई मित्र कोई अच्छा काम करता है या कोई उपलब्धि प्राप्त करता है, तो उसकी मुक्तकंठ से प्रशंसा करना भी सीखिये, ये आदत आपकी लोकप्रियता और प्रतिष्ठा को बढ़ायेगी।