अपनी बात

मैं अपने आत्मसम्मान के साथ कभी समझौता नहीं कर सकता, नहीं चाहिए मुझे झारखण्ड राज्य कर्मचारी स्वास्थ्य बीमा योजना का लाभः वरीय अधिवक्ता, झारखण्ड हाई कोर्ट

झारखण्ड हाई कोर्ट के वरीय अधिवक्ता अभय मिश्र गुस्से में हैं। उन्होंने सोशल साइट फेसबुक पर अपने गुस्से का इजहार किया है। क्या लिखा है, आप खुद पढ़िये, आपको सब समझ में आ जायेगा। अभय मिश्र, शायद पहले और आखिरी वरीय अधिवक्ता है, जिन्होंने झारखण्ड राज्य कर्मचारी स्वास्थ्य बीमा योजना पर अंगूली उठाकर, इसे आत्मसम्मान से जोड़ दिया।

एक तरह से देखा जाये, तो वे गलत नहीं कह रहे, उनकी बातों में दम है। लेकिन ऐसा वहीं कर या बोल सकता है, जिसके पास स्वाभिमान हो। सभी ऐसा नहीं कर सकते। फिलहाल फेसबुक पर लिखा उनका आत्मसम्मान से जुड़ा आलेख पढ़िये। जो आपके समक्ष है…

“मैं अपने आत्मसम्मान के साथ कभी समझौता नहीं कर सकता। मैंने अपने पिता के मान रखने के लिए नौकरी की थी। नौकरी छोड़कर मैंने वकालत को चुना था। 1999 से जोड़ा जाये तो आज 26 वर्ष हो गए। मुझे वकालत एक ‘स्वतंत्र’, ‘प्रतिष्ठित’,और ‘आत्मसम्मान’ का पेशा नजर आया था। इसलिए नौकरी छोड़कर वकालत चुना था।

मुझे मेरे सहमति के बिना  झारखंड राज्य कर्मचारी स्वास्थ्य बीमा का सदस्य बनाया गया है। ( मैंने कोई आवेदन नहीं दिया था। ) मुझे कर्मचारी के श्रेणी में नहीं आना है। मुझे मेरी ‘स्वतंत्रता’, ‘प्रतिष्ठा’,और ‘आत्मसम्मान’ ज्यादा प्रिय है। गर इस योजना को अधिवक्ता स्वास्थ्य बीमा योजना के नाम पर लागू किया जाता है, तो सही, नहीं तो मैं अपने ‘आत्मसम्मान’ को त्याग कर यह नहीं लेने वाला ।

दो पैसा और मात्र थोड़े से लाभ के लिए मै अपने ‘आत्मसम्मान’ के साथ सौदा नहीं कर सकता, कर्मचारी नहीं बन सकता। नौकर ही बनना रहता, तो मै नौकरी ही करता। मैं तब भी MBA कर 1996 में प्रबंधक था। मेरे साथ के मित्र गण आज MBA के डिग्री पर बड़े-बड़े उच्च पदाधिकारी है। मगर मैं तो वहां से भी आत्मसम्मान के लिए नौकरी छोड़कर चला आया। मैं तो झारखंड सरकार का स्थाई सलाहकार भी था मगर ‘राष्ट्रचिह्न’  के अपमान के चलते वह पद भी त्याग दिया।

यह तो मात्र कुछ मुफ्त के लाभ है। मात्र इतने के लिए है, मैं अपना आत्मसम्मान नहीं त्याग सकता। मरना जीना, बीमार होना, सब भगवान के हाथ में है। यह कार्ड क्या करेगा? मुझे मेरा आत्मसम्मान प्यारा है। मुझे नहीं बनना सरकारी कर्मचारी। बाकी जिन अधिवक्ता बंधुओं को बने रहना है, वो बने रहे‌। यह मेरा निजी विचार है। सभी बड़ों को सादर प्रणाम। सभी छोटो को ढेरों आशीर्वाद।”

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