चालीस-पचास साल पहले गुंडों ने यही करिश्मा किया था और आज सत्ता दिलानेवाले ठेकेदारों-मीडियाधीशों ने शुरु किया है, समय है, इंतजार करिये, इनका भी अंत होगा, जैसे सभी का हुआ…
आज से चालीस-पचास साल पहले कुछ पॉलिटिशयन चुनाव जीतने के लिए गुंडों का सहारा लेते थे। जब गुंडों ने देखा कि ये पॉलिटिशयन हमारे ही बल पर चुनाव जीतते हैं, तो हम ही क्यों न सीधे चुनाव लड़ जाये। गुंडों के बीच पनपी इस सोच ने गुंडागर्दी में माहिर लोगों को एक रास्ता सुझाया। ये गुंडे खुद ही चुनाव लड़ने लगे और लोकसभा व विधानसभा में अपनी उपस्थिति भी दर्ज कराने लगे।
समय बदला। इन गुंडों की इतनी तरक्की हुई कि कई दलों ने उन्हें बाद में टिकट देना भी शुरु किया। इन गुंडों की तरक्की हुई, कुछ मंत्री भी बन गये। मंत्री बनकर नया इतिहास रचा। अपनी दुकानें और अपनी सेहत ठीक कर ली। गुंडागर्दी में कदम रखनेवालों को नया रास्ता सुझाया और कहा कि नेता बनकर गुंडागर्दी करने का और मजे से जीने का कुछ अपना अलग ही आनन्द है। इसका फायदा यह है कि नेता बनने के बाद जो पुलिस उनके पीछे लगी रहती थी। वहीं पुलिस उनकी सुरक्षा में लगकर उनका मान-सम्मान बढ़ाती है।
अब नया जमाना है। डिजिटल युग है। डिजिटल युग में ठीक गुंडों की तरह कुछ चालाक लोगों ने कदम रखा। इन चालाक लोगों ने कुछ दलों को सत्ता में लाने के लिए ठेका लेना शुरु किया। कुछ राज्यों में इन्हें सफलता भी मिली और कुछ जगहों पर इन्हें निराशा भी हाथ लगी। जहां सफलता हाथ लगी। वहां इन्होंने सोचा कि जब हम किसी को सत्ता में ला सकते हैं तो हम ही क्यों न, एक पार्टी बना लें और सत्ता पर कब्जा कर लें।
लीजिये, जल्द ही एक राज्य में ऐसी सोच वालों ने एक पार्टी बना ली और लगे क्रांति करने। इन चालाक लोगों ने जल्द ही पत्रकारिता में गुंडागर्दी का बीजारोपण कर, स्वयं को मीडियाधीश घोषित करनेवालों को अपने में मिलाया और विज्ञान की परिभाषा में सहजीविता (जिसमें एक जीव परस्पर एक दूसरे की सहायता करते हुए जीवन यापन करते हैं) को अपनाते हुए इस प्रकार से अपनी पकड़ मजबूत करने का दावा कर रहे हैं, जैसे लग रहा हो कि बस अब दिल्ली दूर नहीं। सत्ता मिलने ही वाली है।
लेकिन जो राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी हैं। वे जानते हैं कि गुंडागर्दी ज्यादा दिनों तक नहीं चलती और न ही सत्ता दिलाने की ठेकेदारी का धंधा ज्यादा दिनों तक चलता है, ऐसे तो जो मीडिया में गुंडागर्दी की बीजारोपण कर चुके हैं और मीडियाधीशी कर रहे हैं। उन्हें भी पता है कि उनकी मीडियाधीशी भी ज्यादा दिनों तक नहीं चलेगी। क्योंकि भारत का ध्येय वाक्य ही हैं- सत्यमेव जयते। मुण्डकोपनिषद् से लिया गया यह मंत्र इतना सत्य और शाश्वत हैं कि इसे कोई असत्य साबित कर ही नहीं सकता।
लेकिन कुछ लोग जो वर्तमान में जीते हैं। उन्हें लगता है कि दुनिया की सारी बुद्धि उनके ही भीतर समा गई है। रोज अपने यू-ट्यूब के माध्यम से ज्ञान देते रहते हैं। उसका मूल कारण होता है, सत्ता में बैठे लोगों से उनकी अच्छी पकड़। पर ये पकड़ कब ढीली पड़ जायेगी और कब ये काल की गाल में समा जायेंगे। इन्हें पता नहीं होता। क्योंकि जिनका जन्म ही गुंडागर्दी से हुआ है। उन गुंडों की आयु कितनी होती हैं, ये तो गुंडों को भी पता होता है। इसीलिए वे थोड़ी सी आहट सुनकर ही भयाक्रांत हो जाते हैं।
फिलहाल एक राज्य में चुनाव की आहट है। सारे तिकड़मबाज अपनी तिकड़मबाजी दिखा रहे हैं। वो भी ये जानते हुए कि आज से ठीक बीस-पच्चीस साल पहले तक इनसे भी बड़ा एक तिकड़मबाज बिहार में खुब अपना तिकड़म फैलाया। जनता खासकर उसके जाति के लोग उसके एक इशारे पर जान देने के लिए तैयार रहते थे। लेकिन आज उसकी स्थिति ऐसी है कि उसकी सारी हेकड़ी निकल चुकी है और उसकी सारी हेकड़ी को निकालनेवाला सिर्फ और सिर्फ एक ईमानदार अधिकारी था। जिसका नाम था टी एन शेषण। जिसने उसकी सारी गर्मी निकाल दी। टी एन शेषण ने रिकार्ड बनाया। इस व्यक्ति के ही शासनकाल में पटना और पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र के चुनाव रद्द हुए। वो इसलिए कि इन दोनों संसदीय क्षेत्रों में उस वक्त जमकर बूथ कैप्चरिंग हुई थी।
इसलिए, याद रखें। जिस दिन एक ईमानदार व सत्यनिष्ठ व्यक्ति सत्ता दिलानेवाले ठेकेदारों व मीडियाधीशी करनेवालों के सामने खड़ा हो गया। तो ये दोनों कहां होंगे? ज्यादा चिन्ता करने की जरुरत नहीं। फिलहाल, मजे लीजिये। लोकतंत्र का मजाक उड़ता देखिये। सत्ता दिलानेवाले ठेकेदारों की कल जादूगिरी देख रहे थे, आज उनकी सत्ता प्राप्त करने के लिए नेतागिरी और इनका सपोर्ट कर रहे कुछ मीडियाधीशों को देखिये।