पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जन-आकांक्षाओं और क्षेत्रीय विकास को ध्यान में रखकर झारखण्ड राज्य का गठन करवाया थाः संतोष गंगवार
राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार ने आज झारखण्ड विधानसभा की 25वीं वर्षगांठ (रजत समारोह) पर झारखण्ड विधानसभा परिसर में आयोजित कार्यक्रम में झारखण्ड राज्य के गठन हेतु पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी के दूरदर्शी नेतृत्व और महत्वपूर्ण योगदान का श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हुए कहा कि श्रद्धेय अटल जी के नेतृत्व में ‘बिहार राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 2000’ के अंतर्गत झारखंड राज्य का गठन हुआ था।
उन्होंने जन-आकांक्षाओं और क्षेत्रीय विकास की दृष्टि से यह ऐतिहासिक निर्णय लिया था। उन्होंने कहा कि ‘उस समय मैं केन्द्रीय मंत्रिपरिषद का सदस्य था और लोकसभा सदस्य के रूप में राज्य गठन के पक्ष में मत देकर इस महत्वपूर्ण निर्णय में अपना योगदान दिया था।’
राज्यपाल महोदय ने कहा कि भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, जिसकी जड़ें हमारी प्राचीन सभ्यता और विचारधारा में निहित हैं। वैशाली को विश्व का प्रथम गणतांत्रिक गणराज्य माना जाता है, जहाँ यह विचार जन्मा कि शासन जनता की इच्छा, जनता के हित में और उनकी सहभागिता से संचालित हो। आज भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता और सशक्तता पूरे विश्व के लिए अनुकरणीय है।
राज्यपाल ने कहा कि लोकतंत्र में जनता द्वारा चुने गए विधायक न केवल राज्य में कानून-निर्माण प्रक्रिया के महत्वपूर्ण अंग होते हैं, बल्कि वे जनता और सरकार के बीच एक सशक्त सेतु की भूमिका भी निभाते हैं। यह पावन स्थल राज्य के विकास की दिशा निर्धारित करता है, जनता की आकांक्षाओं को स्वर देता है और लोकतंत्र की वास्तविक शक्ति को प्रकट करता है। उन्होंने कहा कि विधान सभा का सत्र केवल बहस का मंच नहीं होता, यह नीति-निर्धारण का मुख्य केंद्र है तथा जनता की अपेक्षाओं, विश्वास और आशाओं का सजीव प्रतिबिंब भी है।
राज्यपाल ने कहा कि विधायक व जन-प्रतिनिधि का सबसे बड़ा दायित्व जनता के विश्वास को बनाए रखना है। जनता द्वारा दिया गया अधिकार सेवा का अवसर है, सत्ता का साधन नहीं। उन्होंने कहा कि वे स्वयं बरेली की जनता के स्नेह और विश्वास के कारण आठ बार लोक सभा का सदस्य निर्वाचित हुए। उन्होंने सदैव क्षेत्र के विकास और लोगों की समस्याओं के समाधान को ही अपना कर्तव्य माना।
उन्होंने कभी यह नहीं देखा कि किसने उन्हें वोट दिया और किसने नहीं, उनके द्वार सभी के लिए खुले रहते हैं और वे सबका बनकर रहे। आज भी उनकी जीवनशैली और कार्यशैली इसी भावना पर आधारित है। उन्होंने कहा कि ‘आप सभी साथीगण को यदि कभी बरेली जाने का अवसर मिले, तो वहाँ के लोग मेरे कार्यों और व्यवहार के बारे में आपको और विस्तार से बताएँगे।’
राज्यपाल ने कहा कि विधायकों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सरकारी योजनाओं का लाभ राज्य के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे। विधान सभा की गरिमा बनाए रखना, स्वस्थ और सार्थक बहस करना तथा संविधान की मर्यादाओं का पालन करना प्रत्येक जनप्रतिनिधि का पवित्र कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र स्वस्थ चर्चा से मजबूत होता है, टकराव से नहीं। सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों का उद्देश्य जन-कल्याण और राज्य का विकास होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि अपेक्षा है कि विधायक स्वस्थ, तथ्यपूर्ण, शालीन और रचनात्मक संवाद की संस्कृति को आगे बढ़ाएँ। उन्होंने कहा कि जब जन-प्रतिनिधि अपनी जिम्मेदारियों का निष्ठापूर्वक निर्वहन करते हैं, तब जनता का विश्वास सुदृढ़ होता है और राज्य के विकास की गति भी तेज होती है। जनता ने जिन अपेक्षाओं और विश्वास के साथ अपने प्रतिनिधियों को चुना है, उसका सम्मान करते हुए शालीन व्यवहार, विकास कार्यों की निगरानी और जनसरोकार के साथ कार्य करने हेतु सक्रिय रहना चाहिए। ऐसा होने पर विधान सभा एक आदर्श लोकतांत्रिक संस्थान के रूप में निरंतर सशक्त होती है।
राज्यपाल ने कहा कि आज राज्य में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, कृषि, उद्योग, आधारभूत संरचना और सामाजिक कल्याण जैसे क्षेत्रों में अनेक चुनौतियाँ एवं अवसर भी मौजूद हैं। इन सभी क्षेत्रों में प्रगति सुनिश्चित करने में झारखंड विधानसभा की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण और निर्णायक है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि आने वाले समय में झारखंड विधानसभा और अधिक पारदर्शी, संवादपरक और जनता की आकांक्षाओं को पूर्ण करने में और भी प्रभावी भूमिका निभाएगी। उन्होंने सभी से झारखंड को राजनीतिक रूप से सशक्त, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और सामाजिक रूप से समरस बनाने की दिशा में एकजुट होकर कार्य करने का आह्वान किया।
