झारखण्ड के पूर्व वित्त मंत्री डा. रामेश्वर उरांव ने भी झारखण्ड हित में केन्द्रीय वित्त आयोग को दिये सुझाव
झारखण्ड के पूर्व वित्त मंत्री डा. रामेश्वर उरांव ने केन्द्रीय वित्त आयोग के समक्ष निम्निलिखित बातों को रखा और वित्त आयोग से झारखण्ड के हित में निर्णय लेने की अपील की। आयोग के समक्ष डा. रामेश्वर उरांव ने किन-किन बातों को रखा। वो आपको पता होना चाहिए।
डा. रामेश्वर उरांव का कहना था झारखंड राज्य ऐतिहासिक एवं भौगोलिक कारणों से एक पिछड़ा राज्य है। इसकी प्रति व्यक्ति आय उत्तर प्रदेश एवं बिहार को छोड़ कर देश के अन्य सभी राज्यों से कम है। प्रति व्यक्ति आय की रैंकिंग में देश के 28 राज्यों में इसका स्थान 26वाँ हैं।
(पिछड़ेपन का ऐतिहासिक कारण) नवम्बर 2000 में गठन के पूर्व झारखंड एक अति पिछड़े राज्य (बिहार) का एक पिछड़ा प्रदेश था। बिहार कई कारणों से एक अति पिछड़ा राज्य रहा जिसमें पूर्व के फ्रेट इक्वलाइज़ेशन पॉलिसी एक महत्वपूर्ण योगदान रहा। झारखंड उसी राज्य का एक उपेक्षित प्रदेश रहा।
रामेश्वर उरांव का कहना था कि झारखंड वन एवं खनिज संपदा से संपन्न राज्य है। लेकिन इसकी इन संपदाओं से पूरा देश लाभान्वित हो रहा है। राज्य तो संपदा के शाप (रिसोर्स कर्स) से ग्रसित है। वन के कारण इसकी खेती योग्य भूमि संकुचित है। विकास के कार्य भी फ़ॉरेस्ट क्लीयरेंस के चक्कर में बाधित होते हैं ।
उनका कहना था कि खनिज के कारण इसका पर्यावरण प्रदूषित होता है, माइनिंग का कुप्रभाव इसके भू-जल स्तर पर भी पड़ा है। इसका कई ज़िला गंभीर भू-जल संकट से जूझ रहा है। माइनिंग के कारण इसके इंफ्रास्ट्रक्चर, ख़ासकर सड़क का क्षरण भी तेज़ी से होता है। डीएमएफ़टी से मिलने वाली राशि माइनिगं के कुप्रभाव को दूर करने के लिए अपर्याप्त है।
इसलिए उनका अनुरोध है कि झारखंड राज्य को केंद्रीय करों में हिस्सा एवं ग्रांट्स-इन-ऐड के माध्यम से पर्याप्त राशि उपलब्ध कराई जाये ताकि यह राज्य भी विकास कर देश के धनी राज्यों की बराबरी कर सके। उनका अनुरोध था कि केंद्रीय करों (केंद्र के डिवीज़िबल पूल) में राज्यों का हिस्सा 50 प्रतिशत कर दिया जाय। चौदहवें वित्त आयोग ने केंद्रीय करों में राज्य के हिस्सा को 42 प्रतिशत किया था और पन्द्रहवें ने जम्मू कश्मीर के राज्य के दर्जा के समाप्त होने के कारण 41 प्रतिशत रखा गया था।
केंद्र के द्वारा सेस एवं सरचार्ज में की गई लगातार वृद्धि के कारण राज्यों के बीच विभाजित होने वाले केंद्रीय करों ( डिवीज़िबल पूल) में कमी आयी है। इसलिए अनुरोध है कि सेस एवं सरचार्ज से होने वाली कमी को दूर करने के लिए केन्द्रीय करों में राज्य के हिस्से को बढा़ कर 50 प्रतिशत कर दिया जाये।
राज्यों के बीच केन्द्रीय करों के राज्यांश के वितरण का फार्मूला कुछ इस तरह का होना चाहिए कि राज्यों के बीच व्याप्त आर्थिक असमानता दूर हो सके। इसके लिए आय के अन्तर ( धनी राज्य के प्रति व्यक्ति आय से राज्य के प्रति व्यक्ति आय के बीच का अंतर) को ज़्यादा महत्व दिया जाना चाहिए।
उसी तरह से जनसंख्या एवं राज्य के क्षेत्रफल को भी ज़्यादा महत्व दिया जाना चाहिए। जिन राज्यों में जंगल अधिक है उन्हें विकास के प्रयास में एक कॉस्ट डिसएडवांटेज होता है। फारेस्ट क्लीयरेन्स, या लोगों या क्षेत्र तक पहुँचने के लिए अधिक लागत लगता है। इसलिए जंगल के क्षेत्र पर दिये जाने वाले वेट को बढ़ना चाहिए।
पन्द्रहवां वित्त आयोग ने इसको 10 प्रतिशत वेट दिया था। फारेस्ट के कॉस्ट डिसएडवांटेज को कवर करने के लिए यह पर्याप्त नहीं है। इसे बढ़ा कर 15 प्रतिशत किया जाना चाहिए। फारेस्ट के क्षेत्र में अभी सिर्फ़ सघन जंगल (कमदेम फारेस्ट) को ही लिया जाता है जबकि मॉडरेटली डेंस फारेस्ट एवं ओपन फारेस्ट से भी विकास का लागत बढ़ता है। इसलिए फारेस्ट के क्षेत्र में मॉडरेटली डेंस एवं ओपन फारेस्ट को भी शामिल किया जाना चाहिए।
पन्द्रहवां वित्त आयोग ने राज्यों के बीच केंद्रांश निर्धारित करने के लिए दो परफॉरमेंस इंडिकेटर – डेमोग्राफिक परफॉरमेंस एवं फिस्कल परफॉरमेंस, को शामिल किया था। इन को प्राप्त करने के लिए एक निश्चित विकास ज़रूरी है । परफॉरमेंस को शामिल किए जाने पर राज्यों के बीच आर्थिक विषमता बढ़ जाएगी। इसलिए हमलोगों का अनुरोध है कि इसे ड्राप कर देना चाहिए। कम से कम डेमोग्राफिक परफॉरमेंस का वेट नील कर देना चाहिए।