धर्म

पूर्व में क्या हुआ, उसे भूलकर आज ही गुरु के प्रति निष्ठा रखते हुए आध्यात्मिक पथ पर कदम बढ़ाइये, निश्चय ही आपका भविष्य सुधर जायेगाः स्वामी अमरानन्द

आप भूल जाये कि पूर्व में आपके जीवन में क्या हुआ या आपने क्या किया? वर्तमान देखें और आज से ही अपने आध्यात्मिक पथ को ठीक करने का प्रयास करें, निश्चय ही ऐसा करने से आपका भविष्य संवर जायेगा, आपका जीवन आलोकित हो जायेगा। उक्त बातें आज रांची स्थित योगदा सत्संग आश्रम में रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए योगदा भक्तों के बीच स्वामी अमरानन्द गिरि ने कहीं।

उन्होंने कहा कि अगर आपने आज से ही आध्यात्मिक पथ पर अपना कदम बढ़ा दिया। आपने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति द्वारा मजबूती से प्रयास करना शुरु कर दिया। ईश्वर या गुरु कृपा के माध्यम से उक्त प्रयास को निरन्तर जारी रखा, तो फिर दिक्कत कहां है? सफलता मिलनी ही है। उन्होंने कहा कि भूलिये मत आप लोग भाग्यशाली है क्योंकि आप योगदा सत्संग से जुड़े हैं।

जहां गुरुओं की एक समृद्ध पंक्ति हैं, जिन्होंने भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दी गई क्रिया योग को गुरु परम्परा के माध्यम से आप तक पहुंचा दिया है। ऐसे में परमहंस योगानन्द द्वारा दी गई तकनीक को आप अपनायेंगे तो आप निश्चय ही ईश्वरीय मार्ग का स्वाद चखेंगे। उन्होंने कहा कि योगदा गुरुओं की बताई तकनीक पर चलने के साथ-साथ आपको अपने अंदर पनपनेवाली अहंकार को भी त्यागना होगा। क्योंकि अहंकार हमारे अंदर पनपनेवाली सारे सद्गुणों को नष्ट कर डालती है।

स्वामी अमरानन्द गिरि ने कहा कि आप सभी से प्रेम करें। सभी के प्रति दया का भाव रखें। अपने अंदर हमेशा विनम्रता के भाव को जगायें रखें। क्योंकि ये वे गुण हैं, जो ईश्वर तक पहुंचने में हमारी काफी मदद करते हैं। उन्होंने बहुत ही सुंदर दृष्टांत के माध्यम से बताया कि आखिर ये गुण कितने जरुरी है। उन्होंने कहा कि कर्ण दानवीर थे। लेकिन उनकी हृदय में सभी के प्रति प्रेम नहीं था। वे जानते थे कि पांडव सत्य मार्ग पर हैं। पर उन्होंने उनका साथ नहीं दिया। नतीजा क्या हुआ, दानवीर होते हुए भी वे ईश्वर के निकट नहीं पहुंच सकें। जबकि पांडवों के साथ भगवान श्रीकृष्ण सदैव विराजमान रहें।

उन्होंने गुरुकृपा पर भी एक दृष्टांत दिया। स्वामी अमरानन्द गिरि ने कहा कि गुरुकृपा उसी पर बरसती है। जो गुरु के आदेश का हरदम पालन करता है। उन्होंने बताया कि दयामाता को पता था कि परमहंस योगानन्द जी हर हालत में व्यायाम करने को बराबर कहा करते थे। एक समय ऐसा भी आया कि दयामाता व्यायाम कर सकने की स्थिति में नहीं थी। उसके बावजूद भी उन्होंने अन्य के सहयोग से व्यायाम को मृत्युपर्यन्त तक करना नहीं छोड़ा। ये हैं गुरुभक्ति और ऐसे लोगों पर ही गुरुकृपा बरसती है।

उन्होंने कहा कि गुरुजी ने हमें कई तकनीकें दी हैं। जो बहुपयोगी है। जो ईश्वर के पास पहुंचने में सहायक हैं। हमारे जीवन को उन्नत करने में सहायक हैं। जैसे हंस-सः तकनीक, ओम् तकनीक। लेकिन इन तकनीकों को प्रयोग करने के समय अहंकार आ जाये और हम गुरु के आदेशों का पालन न करें, गुरु को ही नजरंदाज करने लगे तो फिर इन तकनीकों को उपयोग करने से भी आपको कोई फायदा नहीं मिलता।

उन्होंने कहा कि गुरुजी तो एक ही दो क्रिया करने में समाधिस्थ हो जाते थे और यहां बहुत सारे लोग हैं, जो क्रियावान हैं। कहते हैं कि कई क्रिया करते हैं। लेकिन वे समाधिस्थ नहीं हो पाते। उसका मूल कारण यहीं हैं, गुरु के प्रति या ईश्वर के प्रति उस प्रकार की श्रद्धा का नहीं होना, जो प्रत्येक साधक के मन में होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति के मन में ईश्वर को पाने की दृढ़इच्छा शक्ति, उन्हें पाने की जीजिविषा, गुरु के बताये पाठमाला का अभ्यास, सभी के प्रति दया भाव, करुणा, विनम्रता आदि सद्गुण होने ही चाहिए और अगर ये गुण नहीं हैं तो फिर आप ईश्वर और गुरु से उतने ही दूर हैं, जितना की कल थे या जब से आपने गुरुजी की तकनीकों को अपनाने का प्रयास शुरु किया था। उन्होंने यह भी कहा कि आप कभी मत सोंचें कि आपको ईश्वर या सद्गुरु की प्राप्ति नहीं हो सकती। आप वो सब कुछ पा सकते हैं। बस आपके अंदर उन्हें पाने की इच्छा बलवती होनी चाहिए। ईश्वर तो उस व्यक्ति की कभी मदद नहीं करते, जो खुद उन्हें पाने की इच्छा नहीं रखता।

उन्होंने कहा कि जब भी ध्यान करें, तो आप अपने गुरु का विजुयलाइजेशन करें। ये भी एक साधना का एक पार्ट हैं। गुरुजी से बातें करने की कोशिश करें। कभी धैर्य और विश्वास को कमजोर न होने दें। अपने गुरुजी पर निष्ठा रखिये। वे हमेशा आपके साथ हैं। वे आपको कभी असफल नहीं होने देंगे। बशर्तें आपकी निष्ठा उनके प्रति गहरी हो।

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