स्वयं को आध्यात्मिक रूप से सुदृढ़ करने, अपनी आत्मा को परमात्मा के साथ एकाकार करने, स्वयं को आलोकित करने एवं स्वयं को राम बनाने के लिए उद्यत होने का नाम है दीपावली
क्या है दीपावली? क्या दीपावली खुशियां मनाने का पर्व है? मिठाइयां खाने का पर्व है? पटाखे छोड़ने अथवा फोड़ने का पर्व है? अपने आस-पास जो लोग रहते हैं, उनके बीच धमाका करने का पर्व है? जो नाना प्रकार के बीमारियों से ग्रसित है, जिनको आपका एक धमाका, उनकी जिंदगी तबाह कर सकता है, वो करने का पर्व है। अगर ये आपकी सोच है, तो भाई, आपकी सोच, आपको मुबारक।
लेकिन हमारी बात मानें, तो दीपावली स्वयं को आलोकित करने का पर्व है। ऐसा आलोकित जिसके केवल आप ही नहीं, बल्कि आपके आस-पास रहनेवाले लोग भी आलोकित व प्रकाशित हो। दीपावली तो राम बनने का पर्व है, क्योंकि कहा जाता है कि जहां राम, वही अयोध्या और जहां अयोध्या वही दीपावली।
राम का मतलब क्या? राम, राम उस वक्त नहीं बने थे, जब महर्षि वशिष्ठ ने उनका नामकरण संस्कार किया था। राम, राम उस वक्त भी नहीं बने थे, जब महर्षि विश्वामित्र उन्हें अपना यज्ञ सफल करने के लिए उन्हें अपने साथ बक्सर ले आये थे। राम को जनकपुर ले आये थे। जहां राम ने सीता स्वयंवर में रखा शिव-धनुष को भंग किया था। राम तो राम तब बने थे, जब वे 14 वर्षों के लिए वनगमन किया।
उस वनगमन के दौरान उन्होंने अपने सत्यनिष्ठता के साथ वन में जीवन यापन किया। धर्मानुसार आचरण किया। वनों में रहनेवाले ऋषि-महर्षियों का भय दूर किया। सुग्रीव से मित्रता की। रावण के अत्याचार से धरती को पापमुक्त किया। श्रीलंका पर विजय प्राप्त करने के बावजूद भी, उन्होंने श्रीलंका विभीषण को दे दी। कहने का तात्पर्य यह है कि श्रीराम ने अपने नाम की सार्थकता को सिद्ध किया और जब वे अयोध्या लौटे, तो वैसे श्रीराम जिन्होंने अपने नाम को सार्थक कर दिया था। उस राम के लौटने पर अयोध्यावासियों ने दीपोत्सव से उनका स्वागत किया।
ऐसे भी जिस देश में हम रहते हैं। उस देश का नाम ही भारत है। भा का अर्थ ही है -प्रकाश और रत का अर्थ ही है उसमें हमेशा लगे रहनेवाला। हम ने सर्वदा प्रकाश को अपनाया है। अंधकार से हमने सदैव स्वयं को दूर रखा है। हम तो सर्वदा भारतीय वाड्मय के इस वाक्यों को बार-बार दुहराया है – असतो मा सदगमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्यो र्मां अमृतंगमय।
हे प्रभु, मुझे आप असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर तथा मृत्यु से अमरता की ओर ले चल। हमने कभी धन की कामना नहीं की और न धन के लिए कभी युद्ध किया। हमने तो चरित्ररूपी धन को ही सर्वश्रेष्ठ माना और जिसने अपने चरित्र की शुद्धता पर जोर दिया। उसकी प्रतिमा स्थापित की। उसके पदचिह्नों पर चलना स्वीकार किया। उनकी प्रतिमाओं को फूल-मालाओं से लाद दिया।
आज भी इतने पतन के बावजूद भी हम अडानी या अंबानी की फोटो या चित्र को अपने घर में नहीं लगाते। आज भी हमारे घरों में राम, कृष्ण या अन्य महात्माओं के चित्र ही दिखाई पड़ते हैं, क्योंकि आज भी हमारे लिए चरित्र ही महत्वपूर्ण है। दीपावली चरित्र को ही प्रधानता देता है। दीपावली कहता है कि आप अपने चरित्र पर ध्यान दें। दीपावली कहता है कि आप अपनी चेतना को और अत्यधिक सुसंस्कृत करें।
दीपावली कहता है कि आप स्वयं को आध्यात्मिक रूप से इतना सुदृढ़ कर लें कि आपकी आत्मा, परमात्मा के साथ एकाकार होने की ओर कदम बढ़ा सकें। अगर आप ऐसा करते हैं तो सही मायनों में आप दीपावली मना रहे हैं और अगर ऐसा नहीं करते, तो बस आप सामान्य हैं, सामान्यों की तरह दीपावली मना रहे हैं। यानी पशुओं की तरह खा रहे हैं, पी रहे हैं और जी रहे हैं। जैसे पशुओं को यह नहीं पता कि वो क्या और क्यों खा रहा है, क्या पी रहा है, किसलिए जी रहा है। ठीक उसी तरह आप भी कर रहे हैं।
लेकिन जो अलौकिक पुरुष हैं। जिन्हें पता है कि हमने इस शरीर को किसलिए धारण किया है। वो ऐसा नहीं करते। वो एक-एक पल का सदुपयोग करते हैं। वे अपनी आत्मा को अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलने के लिए दीपावली तक की प्रतीक्षा नहीं करते। उनके लिए हर दिन दीपावली होता है। वे बार-बार ईश्वर के निकट रहने की इच्छा करते हुए, ईश्वरीय कृपा पाने का प्रयास करते रहते हैं। असली दीपावली मनाते हैं। सद्गुरु की तलाश में रहते हैं और जैसे ही उन्हें सद्गुरु मिल गया। वे परमानन्द में डूबकी लगाने लगते हैं।