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RTI एक्टिविस्ट महेश को राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को पत्र लिखना पड़ा महंगा, झेल रहे हैं मुकदमा, मिली अग्रिम जमानत

एक आरटीआई एक्टिविस्ट को कितना दर्द झेलना पड़ता है, कितना झूठा केस झेलना पड़ता है और उससे उसकी जिंदगी कितनी तबाह होती है, वो कोई बाघमारा के आरटीआई एक्टिविस्ट महेश कुमार से जाकर पूछे। धनबाद के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश की अदालत ने महेश को एक केस में अग्रिम जमानत दी है। ये अग्रिम जमानत उसे उस केस में लेनी पड़ी है, जिसकी सच्चाई से कोई वास्ता ही नहीं, दरअसल महेश ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग को पोषाहार मामले पर एक पत्र भेजा था,

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किसी को भी इज्जत देना अगर सीखना हो तो कोई CM हेमन्त सोरेन से सीखें 

जोहार जगरनाथ दा, टाइगर महतो का अपने घर स्वागत है। जी हां, रांची के बिरसा मुंडा एयरपोर्ट पर राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने इन्हीं शब्दों से स्वागत किया है। राज्य के मंत्री जगरनाथ महतो का। जब वे विमान से रांची की सरजमीं पर स्वास्थ्य लाभ कराकर आज लौटे। राज्य के मंत्री जगरनाथ महतो पिछले कई महीनों से चेन्नई के एक अस्पताल में स्वास्थ्य लाभ ले रहे थे। स्वास्थ्य लाभ लेने के बाद रांची पहुंचने का जैसे ही समाचार राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन को मिला, वे स्वागत करने के लिए स्वयं एयरपोर्ट पर मौजूद थे।

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अरे वो तो अपना पंकज था, वो आखिरी call और सपना (पार्ट-2)

रांची के पत्रकार पंकज टीएमएच की सीसीयू में जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे थे और मेरा मन यही कह रहा था – कि काश पत्रकार पंकज ठीक हो जाए। कौन नहीं लगा हुआ था उसके लिए। अप्रैल का महीना, कोरोना पीक पर जा रहा था, मेरे पास ट्वीटर पर पंकज की मदद के लिए गुहार लगाती मैसैज आई थी। रोजाना ऐसे मैसेज आते रहते थे और मैं मदद के लिए जुट जाती थी, लेकिन यहां पत्रकार की बात थी तो और भी जिम्मेदारी बढ़ गई।

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सुरेन्द्र किशोर जैसे वरिष्ठ पत्रकार पर अंगूली उठाने के पूर्व शिवानन्द व श्याम जैसे राजनीतिबाजों को सौ बार अपने गिरेबां में झांककर देख लेना चाहिए

सच पूछिये, तो मैं कभी भी वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र किशोर जी से नहीं मिला हूं, हालांकि वे वहीं रहते हैं, जहां से करीब 12 किलोमीटर की दूरी पर पूर्व में, मैं रहा करता था, बराबर पटना आना-जाना लगा रहता है, फिर भी कभी उनके यहां गया नहीं। इस जीवन में एक बार सिर्फ उनसे मोबाइल पर बातचीत हुई, जब मुझे किसी राजनीतिक रैली पर एक कमेन्ट्स उनसे लेनी थी, उन्होंने दिया भी।

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CM हेमन्त को मिला जनता का साथ, संपूर्ण लॉकडाउन को जनता ने दिया भरपूर सहयोग, लोग नहीं निकले घरों से

आज संपूर्ण लॉकडाउन था। जिसकी घोषणा राज्य सरकार ने की थी। चूंकि कोरोना से जंग इतना आसान नहीं हैं, जितना लोग समझ रहे हैं। फिर भी राज्य सरकार ने आज के दिन कोरोना के खिलाफ अपनी जंग को और मजबूत करने के लिए संपूर्ण लॉक डाउन की घोषणा की थी, जिसको लेकर पूरे राज्य में मुस्तैदी दिखी। यह संपूर्ण लॉक डाउन शनिवार की शाम चार बजे से लेकर सोमवार की सुबह छह बजे तक चलेगा।

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बंगाल में रहकर “ममता बनर्जी” और “तृणमूल कांग्रेस” से वैर, पागल हो क्या?

बंगाल में रहकर “ममता बनर्जी” और “तृणमूल कांग्रेस” से वैर, पागल हो क्या? अरे भाई किस नेता या किस पत्रकार या किस अखबार या किस चैनल या किस पोर्टल की हिम्मत है कि वो बंगाल में रहकर ममता बनर्जी या उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के खिलाफ एक बयान दे दें, या रिपोर्ट छाप दें, किसको अपनी इज्जत प्यारी नहीं हैं और किसे अपने बदन से प्यार नहीं हैं, क्या भूल गये कि चुनाव परिणाम आने के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं व समर्थकों की क्या गत हुई है?

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सोनू सूद इसलिए आगे आएं क्योंकि उन्हें सच्चाई नहीं मालूम और अबुआ नेताओं का दिल इसलिए नहीं पिघला क्योंकि वे भास्कर और बिरसा के वंशजों की सच्चाई से वाकिफ हैं…

दैनिक भास्कर के एक पत्रकार का कहना है कि झारखण्ड के किसी अबुआ नेता का दिल नहीं पिघला, लेकिन दूर मुंबई के अभिनेता सोनू सूद बिरसा के परिजनों के लिए मदद को आगे आए, तो भाई मेरे  झारखण्ड का बच्चा-बच्चा को पता है और जानता है कि भगवान बिरसा के वंशजों को जो मिलना चाहिए, वो सरकार और समाज दोनों ने दिया है, उनके दोनों पड़पोते सरकारी सेवा में हैं।

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क्या सचमुच बिरसा के वंशज आज भी दबे-कुचले हैं, जैसा कि दैनिक भास्करवालों ने कहा या माजरा कुछ और है?

सवाल न. 1 – सबसे पहले “दैनिक भास्कर” के प्रथम पृष्ठ के सबसे उपर लिखी दो पंक्तियों पर नजर डालें, क्या लिखा है? –“एक गरीब आदिवासी बच्चा। एक युवा बागी किसान। जिसने आदिवासियों को जंगलों से खदेड़ने-मारने के विरोध में अंग्रेजों और सामंतों से लड़ाई शुरु की, आजाद भारत का सपना देखा। बिरसा को अंग्रेजों ने छल से पकड़ा, जेल में ही जहर देकर मार डाला। उसी भगवान के बच्चे आज भी दबे-कुचले हैं…”

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प्रेस क्लब की बैठक में कानूनी कार्रवाई को लेकर सहमति नहीं, वयोवृद्ध पत्रकारों ने चेताया क्लब को अपने ही चिराग से खाक होने से बचाएं

मंगलवार को रांची प्रेस क्लब की कार्यकारिणी की बैठक थी। यह बैठक संस्थान में ही आयोजित थी, जिसमें ज्यादातर प्रेस क्लब के अधिकारियों लोगों ने हिस्सा लिया। इसकी जानकारी वरिष्ठ पत्रकार सुशील कुमार सिंह मंटू ने अपने सोशल साइट फेसबुक के माध्यम से दी है। सुशील कुमार सिंह मंटू के कथाननुसार पूर्व में लिए गये निर्णय के तहत बैठक की मिनट्स टू मिनट्स की गतिविधियों की जानकारी सार्वजनिक करनी थी, लेकिन कमेटी में शामिल अधिकारियों ने इसे सार्वजनिक नहीं किया,

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“बिरसा का गांडीव” तो इस जेठ की दुपहरिया में कई लोगों के तन-बदन में आग लगाकर फागुन की मस्ती में डूबा था, मतलब समझे कि ना समझे

भर फागुन रांची प्रेस क्लब के अधिकारी देवर लगिहे, भर फागुन… जोगी जी धीरे-धीरे रंग लगइहो धीरे-धीरे, गाली दियो धीरे-धीरे… आप कहेंगे कि अरे विद्रोही जी को क्या हो गया, इ तपती जेठ महीने में इनको फगुनाहट कैसे सुझ गया, तो भैया जी लोग, झारखण्डी जनता लोग, विभिन्न अखबारों-चैनलों में काम करनेवाले विद्वान पत्रकारों वो इसलिए कि अभी-अभी रांची से प्रकाशित “बिरसा का गांडीव” नामक अखबार ने हमें बताया है कि आज फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि है, जिसका विक्रमी संवत् 2077 है।

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