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परमहंस योगानन्द व स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि का महासमाधि दिवस 7 व 9 मार्च को

योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया (वाईएसएस)/सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप (एसआरएफ) के संस्थापक परमहंस योगानन्दजी का महासमाधि दिवस 7 मार्च को और

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कही रामकथा, कही सुंदर कांड तो कही दुर्गासप्तशती के मंत्रों से सर्वत्र गुंजायमान है रांची का छोटा सा ब्रह्मांड

कोरोना, सुंदर कांड, दुर्गासप्तशती, रामकथा, ब्रह्मांडकोरोना ने गजब ढाया है। भक्ति पर भी उसने अपनी ओर से अंकुश लगाने का

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अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर योगदा सत्संग के साथ 19-21 जून तक ऑनलाइन जुड़िये और स्वयं को करिये अनुप्राणित

योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया (वाईएसएस) द्वारा विशेष रुप से बताया गया है कि अन्तरराष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष्य में संस्था द्वारा योग-ध्यान पर कई विशेष कार्यक्रम तैयार किये गये हैं। अलग-अलग सत्रों में ये कार्यक्रम 19 से 21 जून तक आयोजित किये जायेंगे। वैश्विक कोरोना महामारी को ध्यान में रखते हुए ये कार्यक्रम फिलहाल ऑनलाइन माध्यम से आयोजित किये जायेंगे।

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104 वर्ष योगदा सत्संग सोसाइटी के, जहां लोग पूर्ण ध्यान के दर्शन और जीवन के ज्ञान से होते हैं लाभान्वित

योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया (वाईएसएस) का 104 वां स्थापना दिवस 22 मार्च को है। इसी दिन परमहंस योगानन्द (1893 — 1952)  ने 1917 में भारत में कई सहस्राब्दियों पूर्व अद्भुत हुए पवित्र आध्यात्मिक विज्ञान, क्रियायोग की सार्वभौमिक शिक्षा को उपलब्ध कराने के लिए योगदा सत्संग सोसाइटी की स्थापना की थी। इन धर्म-निरपेक्ष शिक्षाओं में, सर्वांगीण सफलता और समृद्धि के साथ-साथ, जीवन के अंतिम लक्ष्य – आत्मा का परमात्मा से मिलन – के लिए ध्यान की विधियों का एक पूर्ण दर्शन और जीवन शैली का ज्ञान सम्मिलित है।

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योगदा सत्संग का दो दिवसीय ऑनलाइन साधना संगम 27 फरवरी से…

योगदा सत्संग आश्रम आत्म-साक्षात्कार के सत्यान्वेषियों के लिए दो दिवसीय साधना संगम का आयोजन आगामी 27 फरवरी को करेगा। इस  कार्यक्रम का संचालन योगदा संन्यासियों के नेतृत्व में ऑनलाइन  होगा। परमहंस योगानन्द  द्वारा स्थापित यह आध्यात्मिक संस्था कुछ अरसे से योग, ध्यान, प्रार्थना आदि का ऑनलाइन आयोजन कर रही है। आश्रम सूत्रों ने बताया कि क्रियायोगी साधकों की सुविधा और आध्यात्मिक उन्नति के लिए साधना संगम का आयोजन किया जा रहा है। इसमें देश-विदेश के हज़ारों साधक भाग लेंगे।

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नौ भारतीय भाषाओं में योगदा सत्संग ऑनलाइन ध्यान की होगी शुरुआत, YSS अध्यक्ष स्वामी चिदानंद करेंगे शुभारंभ 

योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इंडिया (वाइएसएस) द्वारा ऑनलाइन सामूहिक ध्यान का आयोजन रविवार से किया जाएगा। यह ध्यान अंग्रेज़ी के अलावा हिंदी, बंगला, ओड़िया, गुजराती, मलयालम, कन्नड़, तेलुगू, तमिल और मराठी में भी संचालित किया जाएगा। कोविड-19 महामारी के प्रकोप के कारण योगदा आश्रम और ध्यान केंद्रों के बंद रहने के कारण साधकों की सुविधा के लिए ऑनलाइन सामूहिक ध्यान और प्रार्थना की व्यवस्था की गई है।

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परमहंस योगानन्द ने बताया- जीवन क्यों और किसके लिए?

जब मैं रांची के योगानन्द पथ के आस –पास प्रतिदिन लाखों वाहनों व उनमें सवार लोगों को योगदा सत्संग मठ के समीप से गुजरते देखता हूं, तो मुझे आश्चर्य होता है कि ये कितने नादान है, जो उनके इतनी नजदीक बह रही आध्यात्मिक गंगा में डूबकी लगाने से वंचित हैं और जहां इस प्रकार की आध्यात्मिक गंगा नहीं हैं, वहां के लोगों का समूह बड़ी संख्या में यहां आकर इस आध्यात्मिक गंगा में स्नान कर स्वयं को प्रकाशित कर धन्य हो रहा हैं।

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आज ही के दिन (19 सितम्बर) यानी 100 साल पहले परमहंस योगानन्द ने अमेरिका की धरती पर पहला कदम रख, योग-विज्ञान की रखी थी नींव

 

आज से ठीक सौ साल पहले, 19 सितम्बर 1920 को एक युवा योगी अमेरिका की धरती, बोस्टन में अपने पांव रखे थे। उनका वहां जाना, भारत के अंतरराष्ट्रीय धार्मिक उदारवादियों के प्रतिनिधि के रुप में हुआ था। उस युवा योगी ने धर्म-विज्ञान विषय पर अपने प्रभावशाली व्याख्यान से सभी के हृदय में यह वाक्यांश स्थापित कर दी, कि अपने अंतःस्थल में परमात्मा की उपस्थिति का भान कर, जीवन का परम उद्देश्य, आनन्द की प्राप्ति संभव है।

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आज तीज है, इसी भादो शुक्लपक्ष तृतीया यानी तीज के दिन पार्वती ने अपने तपोबल से शिव को प्राप्त कर लिया था

बिहार और उत्तर-प्रदेश के इलाके में जब-जब भाद्रपद शुक्लपक्ष हस्तनक्षत्र युक्त तृतीया तिथि जिसे कुछ लोग तीज भी कहते हैं, आता है। बड़ी संख्या में इस इलाके की महिलाएं अपने सौभाग्य की रक्षा के लिए निर्जला व्रत रखती है। रात भर जागकर नृत्य गीतादि कर भगवान शिव और पार्वती की आराधना करती है, ताकि उनका सौभाग्य उनके आशीर्वाद से पुष्पित-पल्लवित होता रहे।

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गुरु पूर्णिमा पर विशेषः सदा जीवंत रहते हैं सद्गुरु – स्वामी ईश्वरानन्द गिरि

जिस तरह पश्चिम में “फादर्स डे” और “मदर्स डे” मनाने का रिवाज़ है (अब तो यह भारत में भी प्रचलन में आ रहा है), उसी तरह भारत में “गुरूज़ डे”  मनाने की बहुत प्राचीन प्रथा है। लेकिन इसे हम गुरु पूर्णिमा के नाम से मनाते हैं जो हर वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा के दिन पड़ता है। यह पर्व गुरु को समर्पित होता है, और इस दिन पूरे भारत में शिष्य अपने गुरु की पूजा करते हैं और उनके द्वारा दिखाये गए मार्ग पर निष्ठा के साथ चलते रहने का पुनः संकल्प लेते हैं। 

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