भाजपाइयों ने चुटिया के अयोध्यापुरी मंदिर में लगे राज्यसभा सांसद महुआ माजी के शिलापट्ट को उखाड़कर कचरे में फेंका, मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के शिलापट्ट भी इन इलाकों से गायब, जिला प्रशासन ने साधी चुप्पी
भाजपाइयों की संकीर्ण मानसिकता देखिये। इन्हें इस बात पर आपत्ति हैं कि झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के नेता उनके इलाके में प्रवेश कर, आम जनता के बीच लोकप्रिय कैसे हो रहे हैं? वे चाहते हैं कि उनके इलाके में सिर्फ और सिर्फ भाजपा ही दिखे। झामुमो का शिलापट्ट या झामुमो का झंडा इन्हें चुटिया इलाके में पसन्द नहीं। तभी तो चुटिया के अयोध्यापुरी मंदिर में लगे राज्यसभा सांसद महुआ माजी के शिलापट्ट को आनन-फानन में उखाड़कर उसे कचरे में फेंक दिया गया।

प्रमाण इसी न्यूज में स्पष्ट दिख रहा है। आश्चर्य इस बात की भी है कि इन भाजपाइयों ने इस कुकर्म के लिए एक यूट्यूबर का भी इस्तेमाल किया और वो यूट्यबर बड़ी ही तन्मयता के साथ खुद को इस्तेमाल भी होने दिया और अपने नाम के अनुसार ऐसा न्यूज आम जनता के सामने पेश किया, जैसे कि राज्यसभा सांसद महुआ माजी अपराधी हो। उन्होंने ऐसा कर अपराध किया है।

जब विद्रोही24 ने इस पूरी घटना की जांच पड़ताल की, तो पाया कि इस इलाके में भाजपा के कुछ नेता ऐसे हैं, जो इस पूरे इलाके को अपनी जागीर समझ रखा है और उसी के मातहत वे सारा काम करते हैं। ये इस क्षेत्र में झामुमो नेताओं की चहल-पहल देखना पसन्द नहीं करते। इनका कहना है कि ये इलाका भाजपा का है, यहां झामुमो का क्या काम? इसलिए यहां महुआ माजी का शिलापट्ट लगने नहीं देंगे।

मंदिर से जुड़े पदाधिकारियों का कहना था कि राज्यसभा की झामुमो सांसद महुआ माजी ने उनलोगों से संपर्क किया था। कि वो चाहती है कि मंदिर में एक बोरिंग और चबूतरा का निर्माण करायें। ऐसे में उन्होंने इसे मंजूरी दी, क्योंकि मंदिर किसी पार्टी का तो नहीं होता, वो तो सभी का हैं, जो भी चाहे, सेवा करना चाहे, उनका स्वागत है। इसी भाव से महुआ माजी को इसकी मंजूरी दे दी गई।
महुआ माजी ने भी बड़ी ही सुंदर ढंग से इस मंदिर में बोरिंग और चबूतरे के निर्माण में अपना कदम बढ़ाया। इसी बीच गत् सोमवार को, उन्हें यहां अपनी शिलापट्ट का सायं सात बजे अनावरण करना था। जिसकी तैयारी पहले से कर ली गई थी। उनके नाम और कार्य का शिलापट्ट भी लगाया गया था। जिस पर यहां के कुछ भाजपा नेताओं को आपत्ति थी। इतनी आपत्ति की वे शिलापट्ट को देखना पसन्द नहीं कर रहे थे।
जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। मंदिर सभी का है। किसी एक दल का नहीं। लेकिन किया ही क्या जा सकता है? राजनीति करनेवाले सक्रिय हो गये। एक यू-ट्यूबर को बुलाया गया और वो भी आकर ऐसे लोगों का सपोर्ट कर दिया। बात फिर महुआ माजी के कानों तक पहुंची और उन्होंने सोमवार के कार्यक्रम में शामिल होने से मना कर दिया तथा कहा कि बाद में वे इस कार्यक्रम में शामिल होंगी। इसी बीच जब मंदिर के पदाधिकारियों का दल आज सुबह मंदिर पहुंचा तो देखा कि जहां महुआ माजी का शिलापट्ट लगा हुआ था, वहां वो शिलापट्ट नहीं हैं और उसे मंदिर में जहां मंदिर का कचरा रखा जाता है, वहां फेंक दिया गया है।
अब सवाल उठता है कि मंदिर में कौन क्या काम करवायेगा? ये भाजपा के नेता और यूट्यूबर तय करेंगे? अगर किसी का विचार नहीं मिलेगा तो वो अपने विरोधियों के शिलापट्ट को उखाड़ फेंकवा कर कचरा में फेंकवायेंगा? इसका उत्तर कौन देगा? इसी बीच इसी मंदिर के पास विन्ध्यवासिनी नगर रोड नं. दो है। जिसके मुहाने पर राज्य के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का शिलापट्ट लगा हुआ था। उसे भी उखाड़कर फेंक दिया गया है।
इसे फेंकवानेवाले वे लोग हैं, जिन्होंने अपना वहां घर बना रखा है और जहां हेमन्त सोरेन की शिलापट्ट थी। उस जगह अपना नाली का चेंबर बनवा दिया है। अब सवाल उठता है कि जहां मुख्यमंत्री का शिलापट्ट था, वहां अपने घर का नाली का चेंबर बनाना क्या इतना जरुरी था और जब नाली का चेंबर बनाना इतना ही जरुरी था तो फिर हेमन्त सोरेन का वो शिलापट्ट कहां गया?
जब विद्रोही24 ने इस मामले को उस वक्त के ठेकेदार के समक्ष उठाया कि भाई मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का शिलापट्ट कहां गया? तो वह मुस्कुराकर इस प्रश्न को झेल गया। सवाल उठता है कि जब कोई व्यक्ति काम करवा रहा है, तो वह शिलापट्ट भी लगवायेगा, जब शिलापट्ट से इतनी ही नाराजगी हैं तो उस व्यक्ति के द्वारा बनवाये गये सड़क और नाली का लाभ आप क्यों उठा रहे?
हद तो इन नाली के चेम्बर बनवानेवाले मकान मालिक ये कर दी है कि अपने घर के पास पड़नेवाले बरसाती छिद्रों को भी इन्होंने अपने घर से निकलनेवाले बिल्डिंग मैटरियलों से बंद करवा दिया। अब स्थिति यह है कि यहां सड़कों पर पानी लगा रहता है और नाली के उपरि छिद्र बंद हो जाने से पानी नाली में न जाकर सड़क पर ही सड़ रहा हैं। लेकिन ऐसे लोगों को शर्म कहां?
इधर बुद्धिजीवियों का कहना है कि पहले मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन का शिलापट्ट का गायब हो जाना और उसके बाद महुआ माजी के शिलापट्ट को उखाड़कर मंदिर के कचरे के पास फेंकवा देना, सब कुछ बता रहा है कि यहां किस प्रकार एक राजनीतिक दल और उसके नेताओं के प्रति घृणा का वातावरण तैयार किया जा रहा हैं। अगर ये घृणा का वातावरण इसी प्रकार चलता रहा, तो यह सही मायनों में न तो समाज के हित में हैं और न राज्य के हित में हैं।
आश्चर्य तो तब है कि जिसकी देखरेख में शिलापट्ट लगाई जाती हैं, वो रांची नगर निगम और जिला प्रशासन भी इस मामले में मौन व्रत कर रखा हैं, नहीं तो ऐसे लोगों के साथ कड़ी कार्रवाई तो होनी ही चाहिए। पुलिस प्रशासन भी इस पूरे मामले में चुप्पी साधे हुए हैं। शायद, उसे इस बात का इंतजार है कि कोई उसके पास इस मामले कि शिकायत करेगा या प्राथमिकी दर्ज करायेगा या उपर से आदेश आयेगा।