रांची के सभी प्रमुख अखबारों ने कहा, CS शरणं गच्छामि, IAS शरणं गच्छामि, रघुवरं शरणं गच्छामि

रांची के प्रमुख अखबारों का हाल देखिये, इनके संपादकों के कार्य देखिये और इनकी पत्रकारिता का भी अवलोकन करिये। कल राज्य के मुख्य सचिव की बेटी की शादी की रिसेप्शन पार्टी थी, और इस शादी के रिसेप्शन को सभी अखबारों ने कलरफुल ढंग से किसी ने पांच, तो किसी ने चार कॉलम में, खबर बना दिया और उसे जनता के बीच परोस दिया।

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अर्जुन मुंडा की राजनीतिक कैरियर को प्रभावित करने के लिए झारखण्ड में कुछ लोग सक्रिय, मुंडा ने फर्जी खबरों से लोगों को किया सचेत

शायद भाजपा में ही कुछ लोगों को तथा उनके कट्टर राजनीतिक दुश्मनों को अर्जुन मुंडा का मोदी मंत्रिमंडल में कैबिनेट मंत्री के रुप में शामिल होना, अच्छा नहीं लग रहा। जैसे ही उन्होंने जनजातीय मंत्रालय संभाला हैं, उनके विरोधी भी लगता है, सक्रिय हो गये और बड़ी ही सोची समझी रणनीति के तहत एक ऐसी फर्जी खबर सोशल साइट पर वायरल करवा दी, जो अर्जुन मुंडा ने कही ही नहीं।

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ये सिर्फ BJP में ही नहीं, बल्कि अन्य पार्टियों ने भी इस प्रकार के कार्य कर अपने पक्ष में तालियां बटोरी हैं

ये सिर्फ भाजपा में ही नहीं होता, बल्कि बहुत सारी पार्टियों ने भी इस प्रकार के कार्य कर अपने पक्ष में तालियां बटोरी हैं, ये अलग बात है कि आप उनके द्वारा किये गये अच्छे कामों को इस फेसबुक और व्हाट्सएप युग में भूल गये। पर याद रखिये जब आप अन्य पार्टियों के द्वारा किये गये अच्छे कामों को भूलते चले जायेंगे, तो यकीन मानिये आप एक व्यक्ति अथवा उस पार्टी विशेष के गुलाम हो जायेंगे,

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जिसने नीतीश पर किया विश्वास, उसने खाया धोखा, नीतीश भारतीय राजनीति के सर्वाधिक अविश्वसनीय नेता

नाम जनता दल यू, पर सही में ये जनता दल यू हैं क्या? सच्चाई है कि यह भी राष्ट्रीय जनता दल व समाजवादी पार्टी के जैसा ही पार्टी है, ये अलग बात है कि उन पार्टियों में पारिवारिक फार्मूला ज्यादा टिकता है, यहां सिर्फ और सिर्फ नीतीश फार्मूला टिकता है, आखिर नीतीश फार्मूला है क्या? इसको समझने के लिए संस्कृत की एक सूक्ति ही काफी है, “एकोsहं, द्वितीयोनास्ति।”

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कुछ अच्छी बातें अपने दुश्मनों से भी सीख ली जाये, तो क्या हर्ज है? पर क्या भाजपा विरोधी पार्टियां सीख पायेंगी?

भाजपा ने एक बार फिर अकेले 303 सीटें जीतकर सिद्ध कर दिया, कि उसकी ग्राह्यता पूरे देश में अब भी प्रभावी है, कुछ इलाकों में जहां ग्राह्यता नहीं थी, वहां पर भी भारी भरकम जीत ने सारे रिकार्डों को ध्वस्त कर दिये। हमें याद है, जब प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार बने और संसद में विश्वास मत को लेकर बहस हुए, तो एक स्वर से सभी ने अटल बिहारी वाजपेयी की प्रशंसा की थी पर उनकी पार्टी भाजपा को सांप्रदायिक बताते हुए, उनकी कटु आलोचना भी की थी।

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लोकतंत्र की खुबसूरती विपक्ष से है, विपक्ष को नजरंदाज करने का खामियाजा जनता को ही भुगतना पड़ेगा

पूरी दुनिया में जो भी देश लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाये हुए हैं, उन देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था वहीं मजबूत हुई, जहां विपक्ष मजबूत हैं, नहीं तो सत्तापक्ष के मनमानेपन रवैये से लोकतांत्रिक व्यवस्था को ही गहरा आघात लगता है, चूंकि भारत में एक नई प्रकार की लोकतांत्रिक व्यवस्था है, यहां की जनता किसी पर भरोसा करती हैं, तो उसे छप्पड़ फाड़ कर दे देती हैं, और जिससे नाराज होती है, तो उसे धूल चटा देती है।

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सुख क्या है? सुख कहां होता है? कोई कल PM मोदी की मां से पूछता तो वो उसका सही उत्तर बता देती

कल हमें दुनिया की सबसे सुंदर तस्वीर देखने को मिली, एक मां जो बहुत ही सामान्य ढंग से अपना जीवन व्यतीत करती हैं, वह अपने बेटे को दुबारा भारत का प्रधानमंत्री बनता हुआ देख रही थी, उसका बेटा प्रधानमंत्री पद का शपथ ले रहा था, इसके पहले वह अपने बेटे को तीन-तीन बार गुजरात का मुख्यमंत्री बनते हुए देख चुकी थी, सचमुच ऐसा सौभाग्य बहुत कम मां को मिलता हैं, निश्चित ही नरेन्द्र मोदी की मां का प्रारब्ध बहुत ही सुंदर हैं, जो ऐसा देखने में वो सफल हुई।

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हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर उन सारे पत्रकारों को बधाई, जो निरन्तर हिन्दी पत्रकारिता की साख को गिराने में लगे हैं

भाई, मैं तो धन्य हूं कि उस समय भी पत्रकारिता कर रहा हूं, जब पत्रकारिता अपने चाटुकारिता के स्वर्णिम युग में हैं। मैं आज हिन्दी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर उन सारे हिन्दी पत्रकारों को धन्यवाद देता हूं, दिल से बधाई देता हूं कि उन्होंने बड़ी मेहनत करके इस चाटुकारिता को एक धर्म का रुप प्रदान कर, स्वयं तो इसमें स्नान किया ही, और लोगों को भी इसमें स्नान करने को प्रेरित किया और जो इस पेश को अपनाना चाहते हैं,

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गांधी-वाजपेयी की समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित करने से अच्छा है कि उनके विचारधारा को आत्मसात् किया जाय

जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे, तब उन्होंने पं. जवाहर लाल नेहरु से संबंधित एक वाकया लोकसभा में सुनाया। उन्होंने बताया कि साउथ ब्लॉक में पं. नेहरु की एक चित्र लगी हुई रहती थी, जब वे उधर से गुजरते थे, तो बराबर देखा करते थे। सदन में नेहरु जी के साथ उनकी एक बार नहीं, कई बार नोक-झोंक हुआ करती थी, कभी –कभी तो उन्हें बोलने के लिए सदन से वॉक आउट भी करना पड़ता था,

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हम भारत के लोगों को देश से ज्यादा अपनी जाति और धर्म प्यारी है, वोट किसे देना है, हमें कोई नहीं बताएं

53 साल का हो गया हूं, भारत की जनता को नजदीक से देखा हूं, गजब है, इसके दिलों के राज को जान लेना सबके वश की बात नहीं हैं, ये क्या कहेगी और क्या कर देगी? आप अंदाजा नहीं लगा सकते। जरा देखिये, पहले हम आपको ज्यादा दूर नहीं ले चलेंगे, झारखण्ड की ही बात करेंगे, जिस चतरा और पलामू के लोगों ने जमकर भाजपा कैडिंडेट को लताड़ा, उसका खुलकर विरोध किया,

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