पेसा पर बोले सुप्रियो, अब एसी कमरों में बैठने वाले बाबू लोग यह नहीं तय करेंगे कि गांवों में क्या होगा? हमारी प्राथमिकताएं क्या होगी? जो गांव तय करेगा, उस पर राज्य चलेगा
झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के केन्द्रीय महासचिव व प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने आज संवाददाता सम्मेलन में कहा कि राज्य सरकार द्वारा कल लागू किया गया पेसा कानून एक युगांतकारी कदम है। यह पैसा कानून केवल कानून नहीं, बल्कि ये आदिवासियों-मूलवासियों के पारम्परिक जीवन शैली के साथ-साथ, धरती वंदना, जन-वंदना, पर्वत वंदना, जंगल वंदना, खेत-खलिहान की वंदना व मातृशक्ति वंदना है।
सुप्रियो ने कहा कि हमलोग सभी जानते हैं कि हजारों-हजार साल पहले आदिवासी समाज ने ही लोकतंत्र की नींव रखी थी। ये नींव आदिवासी समाज द्वारा सामुदायिकता-सामूहिकता और प्रकृति से लेकर मानव जीवन को प्रधान स्थान देने के लिए ही डाली गई थी। वर्तमान समय में जिस प्रकार भाजपा लोकतांत्रिक व्यवस्था को अधिनायकवादी व्यवस्था की ओर ले जा रही है, ऐसे में यह पैसा कानून को लागू करना झारखण्ड के लिए सुखदायी है।
उन्होंने कहा कि हेमन्त सोरेन ने कल इतिहास रचा है। ये अमिट है। जो लोक पारंपरिक मान्यताएं हैं, ग्राम सभाएं हैं। जो लोकतंत्र का प्रमुख केन्द्र हैं। उसे आज लागू कर दिया गया। यह एक्ट 1996 में बना था। यह एक्ट तब बना जब सुप्रीम कोर्ट ने एक केस को देखते हुए अपना जजमेंट दिया था। जिसे समता जजमेंट के नाम से जाना जाता है।
उन्होंने कहा कि दरअसल आंध्र प्रदेश से एक मामला था, जो माइनिंग लिस्ट में था। उसमें कम्यूनिटी रिस्पांसिबिलिटी की बात थी कि यदि हमारी जमीन पर आपको कुछ भी करना है, तो आपके द्वारा जो भी कुछ हो रहा है और उसके कारण हमारे जीवन जो प्रभावित हो रहे हैं। उसके लिए आपको रिस्पांसिबिलिटी लेनी होगी, उसे आपको समझना होगा। लेकिन वर्तमान सरकार ने उस अविभाज्य शर्त को भी हटा दिया।
सुप्रियो ने भाजपा नेताओं से पूछा कि बाबूलाल मरांडी भी मुख्यमंत्री रहे, अर्जुन मुंडा भी मुख्यमंत्री रहे, रघुवर दास भी पांच साल सत्ता में रहे, क्यों नहीं पैसा लागू किया? हमसे यह पूछने का अधिकार उन्हें किसने दिया? उन्होंने कहा कि पहली बार जब हेमन्त जी सरकार में आये तो पहले दो साल में क्या हुआ, कौन नहीं जानता? और जैसे ही दो साल वो बिता, तो उनके पीछे केन्द्रीय एंजेसियां लगा दी गई। आदिवासी अस्तित्व को ही समाप्त करने का प्रयास किया जाने लगा।
लेकिन जैसे ही दूसरा टर्म आया। एक साल बीतते-बीतते हमलोगों ने पैसा लागू कर दिया। हालांकि कई राज्यों में पैसा लागू हैं। जैसे आंध्र प्रदेश और ओडिशा में। लेकिन सच्चाई यही है कि वहां पेसा की आत्मा को ही मार दिया गया है। जबकि झारखण्ड में ऐसा नहीं है। अब ग्राम सभा तय करेंगी कि उनकी जरुरतें क्या है? रोजगार का क्या होगा? इससे समाज को ताकत मिली है। अब विकास का रास्ता समाज से तय होगा। अब एसी कमरों में बैठनेवाले बाबूलोग यह नहीं तय करेंगे कि गांवों में क्या होगा? हमारी प्राथमिकताएं क्या होगी? जो गांव तय करेगा, उस पर राज्य चलेगा।
