झारखंड में पेसा कानून लागू करना सरकार की प्राथमिकताः दीपिका पांडे सिंह, मंत्री ग्रामीण विकास
ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री दीपिका पांडे सिंह ने कहा कि झारखंड में पेसा कानून लागू करना सरकार की प्राथमिकता है। उन्होंने कहा कि हमारी सरकार बहुत तेजी से पेसा कानून लागू करने की दिशा में प्रयासरत है, लोगों से मिले सुझाव पर हमने विचार कर सारा मसला कैबिनेट को समर्पित कर दिया है। वे मंगलवार को ऑड्रे हाउस में आयोजित दो दिवसीय “नाची से बाची “जनजातीय स्वशासन महोत्सव के उद्घाटन के बाद बोल रही थी। इस अवसर पर मंत्री श्रीमती दीपिका पांडे सिंह ने पंचायत पत्रिका का लोकार्पण किया तथा पंचायत पोर्टल का भी उद्घाटन किया।
मंत्री श्रीमती दीपिका पांडे सिंह ने कहा कि हमारी सरकार ऐसा पेसा कानून पेश करेगी जिससे पूरा देश झारखंड का उदाहरण पेश कर सकेगा। उन्होंने कहा कि सुशासन सुनिश्चित होना चाहिए। ग्राम सभा को सशक्त किया जा रहा है। हम लोग किसी व्यक्ति विशेष को सुरक्षित न कर समूह को सुरक्षित करने की दिशा में प्रयासरत है। ग्राम सभा में हर समाज के लोगों को अपनी बातें रखने का अधिकार होगा। उन्होंने कहा की स्वशासन लागू कर हमलोग दिशोम गुरु शिबू सोरेन के सपनों को पूरा कर पाएंगे। मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के निर्देश पर पेसा कानून को लागू कर सुशासन को मजबूत करना सरकार की जिम्मेदारी है और हम जल्द ही इस मुकाम तक पहुंच जाएंगे।
निदेशक पंचायती राज श्रीमती राजेश्वरी बी ने कहा कि आज आयोजित हो रहे इस दो दिवसीय नाची से बाची जनजातीय स्वशासन महोत्सव में कई तकनीकी सत्र भी होंगे। जिसमें पेसा से संबंधित कई पहलू पर विचार किया जाएगा। इससे पूर्व नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी रांची के प्रोफेसर रामचंद्र उरांव ने कहा कि राज्य के अधिकतर आदिवासी ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है। अतः राज्य को यह प्रयास करना चाहिए ग्रामीण क्षेत्र को मजबूत करना है और उनके स्वशासन व्यवस्था के अनुरूप कानून बनाये।
पद्मश्री रामदयाल मुंडा के सुपुत्र शोधार्थी गुंजन ईकिल मुंडा ने कहा कि हम आधार को भूल जाते हैं। मंडा यात्रा को देखें तो लगेगा कि वहां नाच गाना हो रहा है। पर उसकी आत्मा स्वशासन है। पहले व्यवस्था एक छोटा स्थान पर वहां बैठक कर लोग संवाद करते हैं। बात के दौरान जो निर्णय लिया जाता है वही प्रजातंत्र है स्वशासन का।आधार यही छोटी-छोटी चीज हैं। उन्होंने कहा शासन एवं स्वशासन निरंतर प्रयोग में लाने की चीज इसे लिखित किताबों से तुलना नहीं किया जाता है। वरिष्ठ साहित्यकार महादेव टोप्पो ने कहा कि नाची से बाची को, हम लोग कम समझ पाते हैं इसके पीछे के दर्शन को समझना होगा, हमारे आसपास जो प्राकृतिक संसाधन है। उसे देखभाल करने की आवश्यकता है। आज आदिवासियों की भाषा संस्कृति को चिंतन एवं मनन करने की आवश्यकता है।
