अभय मिश्र ने कहा 26 वर्षों से वकालत में हूं, अधिवक्ता या उसका परिवार विषम परिस्थितियों में ही क्यों न हो, मुवक्किल इंतजार नहीं करता, लेकिन भैरव सिंह की मां को अपने बेटे के बजाय मेरी मां की ज्यादा चिन्ता थीं
झारखण्ड उच्च न्यायालय के बहुचर्चित व ख्याति प्राप्त अधिवक्ता है – अभय कुमार मिश्र। वे किसी भी मुद्दे पर खुलकर बोलते हैं। डरते नहीं हैं। इसलिए उनके चाहनेवाले उन पर भी कई मुकदमें कर रखे हैं और वे उन मुकदमों का खुब इंज्वाय भी करते हैं। इन्हीं के बारे में धनबाद का एक आरटीई एक्टिविस्ट ने विद्रोही24 को बताया था कि जब वो एक जनहित याचिका डालने गया था, तो एक अधिवक्ता ने उसे धोखा दिया था। जबकि अभय कुमार मिश्र ने उन्हें काफी सहायता की, उलटे आर्थिक मदद भी दी थी।
जब आप अभय कुमार मिश्र की सोशल साइट देखेंगे तो पायेंगे कि वे सामाजिक, न्यायालयीय, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय मुद्दे पर खूब जोर-शोर से लिखते हैं। मतलब कही घटना घटी नहीं, और वे मुखर हो गये। बाकी लोगों को तो अपने परिवार से ज्यादा किसी की फिक्र नहीं होती। लेकिन ये उन सब की फिक्र करते हैं, जो उनसे किसी न किसी प्रकार से जुड़े हैं। अभी हाल ही में उन्होंने सोशल साइट पर लिखा – मां तो आखिर मां है। तो यह चर्चा का विषय बन गया। आखिर किस मां की बात हो रही है। लोगों का ध्यान उस ओर चला गया।
अभय कुमार मिश्र फेसबुक पर लिखते है कि उन्हें कुछ दिन पूर्व भैरव सिंह की मां से मुलाकात हुई। वहीं भैरव सिंह जिसे राज्य सरकार ने जबरन झारखण्ड अपराध अधिनियम 2002 के तहत पेशेवर अपराधी घोषित कर, निरुद्ध कर दिया है। अभय कुमार मिश्र कहते हैं कि उन्हें समझ नहीं आता कि आखिर 32 वर्षीय भैरव सिंह करता क्या है, जिसे पेशेवर अपराधी घोषित कर दिया गया है। वो तो सिर्फ राम नाम का जप करता है। हनुमान चालीसा का पाठ करता है। सनातन संस्कृति जागरण के लिए तत्पर रहता है। लव जिहाद का मुखर विरोधी है। ऐसे में वह अपराधी कैसे हो गया?

सुप्रसिद्ध अधिवक्ता अभय कुमार मिश्र के शब्दों में, खैर सरकार तो सरकार है, जय श्री राम का नारा लगाने वाला तो झारखंड में आंतकवादी ही हुआ ना? सरकार के हिसाब से। वे बताते है कि कुछ दिन पहले उनके पास भैरव सिंह की माता जी आई थी। अपने पुत्र का याचिका दायर करने के लिये। झारखण्ड उच्च न्यायालय में झारखंड अपराध अधिनियम 2002 में भैरव सिंह को निरूद्ध करने के पारित आदेश के विरुद्ध।
अभय कुमार मिश्र कहते है कि भैरव सिंह की मां ने आते ही उनसे यह प्रश्न किया कि आपकी (अधिवक्ता अभय कुमार मिश्र की) मां कैसी है, बाबू? अस्पताल में है या सब ठीक-ठाक तो है? दरअसल कुछ दिनों से अभय कुमार मिश्र की मां अस्पताल में भर्ती थी, उनका तबियत ठीक नहीं था।
अभय कुमार मिश्र बताते है कि उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ क्योंकि वे विगत 26 वर्षों से वकालत करते आ रहे हैं। कितना भी अधिवक्ता का अथवा उसके परिवार में विषम परिस्थितियां हो। कभी भी मुवक्किल इंतजार नहीं करता है। वह हमेशा अपने लिए परेशान रहता है। मेरी मां के अस्पताल में रहने के चलते भैरव सिंह की याचिका दायर करने में दो दिनों का विलम्ब हो गया था। अधिवक्ता अभय कुमार मिश्र चिन्तित थे कि जिस मां का बेटा कारागार में निरुद्ध हो, तो वो क्रोधित होगी। मगर यहाँ उल्टा हुआ। उन्होंने उनकी मां की तबियत से ही ज्यादा परेशान दिखी।
अभय कुमार मिश्र बताते है कि उनका पहला सवाल था कि आपकी मां कैसी है बाबू। अधिवक्ता अभय जी ने उत्तर दिया – अब तो ठीक है चाची। अस्पताल से छुट्टी मिल गई। वे आगे उन्हें बताते है कि चाची मां के साथ हम भी अस्पताल में थे, इसलिए दो दिन देरी हो गई, केश दायर करने में। भैरव सिंह की मां कहती है कि – हां बाबू , मगर मां को छोड़कर कैसे केश मुकदमा बनाने आते, मां को देखना ज्यादा जरूरी था।
अभय कुमार मिश्र बताते है कि यह सुनकर तो वे बड़ा ही भावुक हो गये। जिस मां का पुत्र कारागार में था, उन्हें याचिका देरी से दायर करने का चिंता नहीं थी, बल्कि अभय कुमार मिश्र की मां की तबियत खराब होने से ज्यादा दुखी थी, चिन्तित थी। वे कहते है कि इतना बड़ा हृदय उन्होंने किसी भी मुवक्किल का अपने 26 वर्ष के वकालत में नहीं देखा। कोई और होता तो दो दिनों के विलंब हेतु मुझे तो बात अवश्य ही बोलता। मगर यह तो सनातन सेवक भैरव सिंह की मां है। बेटे से ज्यादा दुसरे मां की चिंता है। मां तो आखिर मां है।
अभय कुमार मिश्र भावुक होकर कहते है – मातृशक्ति को सादर प्रणाम। ऐसे संस्कारी मां के पुत्र को जबरन परेशान किया जा रहा है। भैरव सिंह की मां ने जो संस्कार दिए हैं अपने पुत्र में, उस अलौकिक संस्कार, सेवा भाव, सनातन जागरण का भाव सिर्फ वहीं दे सकती हैं। इसके लिए यह संसार उनका सदैव ऋणी रहेगा। रही बात सरकार द्वारा भैरव सिंह को बार बार प्रताड़ित करने का। वो तो मात्र कुछ दिनो की बात है। उसके उपरांत तो भैरव सिंह राष्ट्रीय पटल पर रहेगा। सरकार ने अपनी मूर्खता पूर्ण कार्य से भैरव सिंह को नेता बना दिया। जबकि पूर्व में भैरव सिंह सनातनी सेवक था ।
अधिवक्ता अभय कुमार मिश्र कहते है कि भैरव सिंह की याचिका दाखिल हो चुकी हैं, हालांकि न्यायालय भी तो तो सेकुलर होता है। आरोप भी भयंकर है – जय श्री राम का नारा लगाने का। हनुमान चालीसा पाठ करने का। बड़ी ही संवेदनशील और सांप्रदायिक मामला है। अभय मिश्र कहते है कि उन्हें पूरा भरोसा है कि सरकार द्वारा पारित आदेश उच्च न्यायालय से खारिज हो जायेगा।
