काम नहीं देने की गारंटी अगर कोई दे सकता है तो वो भाजपा सरकार है, वो भी यह कहकर कि हम काम नहीं देंगे, जो करना है, कर लो: सुप्रियो
झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के केन्द्रीय महासचिव व प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य ने आज संवाददाता सम्मेलन में कहा कि 2007-08 पूरे विश्व में आर्थिक मंदी का समय था। बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाएं ध्वस्त हो रही थी। नंबर एक अमेरिका, पूरा यूरोपीय देश, बड़ी वैश्विक संकट से जूझ रहा था। उस समय भी भारत की अर्थव्यवस्था ज्यादा इसलिए नहीं प्रभावित हुई थी, क्योंकि भारत की अर्थव्यवस्था का मूल प्राण, केन्द्र ग्रामीण अर्थव्यवस्था थी/है।
उन्होंने कहा कि उस वक्त करीब 85 प्रतिशत सम्पूर्ण आर्थिक व्यवस्था कृषि केन्द्रित थी। ऐसी अभूतपूर्व संकट का आगामी समय में कोई असर नहीं हो, 2009 में जब यूपीए की सरकार बनी तो तत्कालीन देश के प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन ने मिलकर ग्रामीण भारतीय अर्थव्यवस्था जो कृषि आधारित थी, उसको टिकाऊ बनाये रखने के लिए एक ऐसा व्यवस्था विकसित किया, जिसे हम मनरेगा के नाम से जानते हैं।
सुप्रियो ने कहा कि इसका मतलब था 100 दिन के काम की गारंटी। जो भूमिहीन मजदूर हैं। उनको 100 दिन के काम की गारंटी केन्द्र द्वारा दी गई थी। जो भूमिहीन मजदूर काम मांगने पंचायत जाये तो पंचायत को उन्हें पन्द्रह दिनों के अंदर काम देनी मजबूरी थी। नहीं तो, वे बेरोजगारी भत्ता पाने के हकदार थे। 2014 में जब सत्ता परिवर्तन हुआ, तो आज के प्रधानमंत्री और उस वक्त के भी प्रधानमंत्री ने संसद में भाषण दिया था, इसी मनरेगा को लेकर, उन्होंने हावर्ड और हार्ड वर्क का भी जिक्र किया था और अपनी अर्थव्यवस्था मोदीनोमिक्स पेश किया था और कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था को ढानेवाली इस व्यवस्था को बनाये रखूंगा, ताकि ये जीता जागता सबूत देश को याद दिलायें कि पिछली सरकार ने भारतीय अर्थव्यवस्था को कैसे बर्बाद किया।
सुप्रियो ने कहा कि उस वक्त उनके भाषण पर बहुत तालियां बाजी। जब कोरोना काल आया, तो सभी ने देखा कि केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था ही बची और इस व्यवस्था को मनरेगा ने ही बचाये रखा। जब गांव से दूर गये लोगों को कोरोना काल में कोई रोजगार नहीं मिला तो वे हार-पछताकर गांव आये, तो इसी गांव ने उन्हें मनरेगा को तहत रोजगार दिया और उनकी स्थिति संभली, देश बचा रहा। उस वक्त कोरोनाकाल में मनरेगा ने ही देश को बचाये रखा।
सुप्रियो ने कहा कि इसी मनरेगा के तहत बड़ी संख्या में बिहार और यूपी के लोग मिल-जुलकर पंजाब-हरियाणा में खेती करते थे। इन सबको तहस नहस करने के लिए एक नई योजना कल केन्द्र द्वारा लाया गया। विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन ग्रामीण। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून यानी मनरेगा को बदलकर वीबी जी राम जी लोकसभा में पेश किया गया। उन्होंने कहा कि अब सरकार का राम नाम सत्य होने का समय आ गया है।
सुप्रियो ने कहा कि पूरे देश के गरीबों को मार देने के लिए, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मृत बनाने के लिए कल एक कानून लाया गया। ये जो पहले पैन गारंटी एक्ट था। इसमें पांचवीं धारा जोड़ा गया। अब केन्द्र सरकार तय करेगा कि कौन सा गांव अधिसूचित हैं या नहीं? मतलब भाजपा सरकार तय करेगी कि कौन सा गांव भाजपा को वोट करेगा या नहीं करेगा। भाजपा समर्थित जो लाभार्थी होगा, उसी को इसका लाभ मिलेगा। वो भी रोजगार तभी मिलेगा जब 40 प्रतिशत राज्य सरकार और 60 प्रतिशत केन्द्र सरकार देगा।
सुप्रियो ने कहा कि इसमें गारंटी यह भी है कि हम 60 दिन का काम नहीं देंगे। हम 125 दिन का काम देंगे। लेकिन 60 दिन का काम नहीं देंगे। वो 60 दिन क्या होगा, जब वे खेत में काम करेंगे, अब ऐसे में भूमिहीन कहां जायेंगे। इसका मतलब है कि काम नहीं देने की गारंटी अगर कोई दे सकता है तो वो भाजपा की सरकार है, वो भी यह कहकर कि हम काम नहीं देंगे। जो करना है, कर लो।
