अपनी बात

पत्रकार रंजन झा की नजरों में भाजपा के राज सिन्हा निकृष्ट विधायक और ढुलू महतो सर्व अवगुण संपन्न सांसद, भाजपा से अच्छा JMM वाले, जो न बड़े-बड़े आदर्शों की बात और न चोरी-चकारी पर झूठा प्रवचन ही देते हैं

धनबाद में कई राष्ट्रीय/क्षेत्रीय अखबार छपते हैं। कई इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व यूट्यूबरों की यहां फौज भी हैं। इनका काम क्या है? भगवान जाने। लेकिन जो यहां की जनता है, वो तो इन अखबारों, यूट्यूबरों व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के संपादकों/संवाददाताओं की करतूतों को जानती हैं। वो जानती हैं कि यहां के संपादक/संवाददाता कोयला माफिया व राजनीतिज्ञों की चरण-वंदना कर अपनी रोजी-रोटी चलाते हैं। कई तो ऐसा करते-करते बन भी गये।

यहां देखियेगा कि कई पत्रकारों की आलीशान बिल्डिंग व फ्लैट्स मुस्कुराते हुए दिखेंगे। जो बताते हैं कि ये किस गोत्र (कोयला माफिया/राजनीतिबाजों के चरण पखारने के लिए जीवन धारण करनेवाले) से आते हैं। लेकिन यह भी सच्चाई है कि यहां इक्के-दूक्के ऐसे भी पत्रकार हैं, जिनका आप गोत्र किसी भी जन्म में नहीं पता लगा सकते। आप मर जायेंगे। लेकिन आप उन्हें खरीद नहीं पायेंगे। उन्हीं में से एक हैं – रंजन झा।

जो किसी मीडिया हाउस में नहीं हैं और न ही कोई उन्हें रख पायेगा। लेकिन वे अपनी पत्रकारिता सोशल साइट के माध्यम से इस प्रकार जीवित रखे हुए हैं कि जिनके खिलाफ वे लिखते हैं। वे और उनके चरण वंदना करनेवाले लोग तिलमिला उठते हैं और फिर शुरु होती हैं, उनके उपर आरोपों की बौछार, जिससे वे विचलित तक नहीं होते। अब देखिये उन्होंने कल क्या लिखा? जिस धनबाद के विधायक राज सिन्हा को हाल ही में झारखण्ड विधानसभा ने उत्कृष्ट विधायक का खिताब दिया।

रंजन झा उन्हें निकृष्ट बता रहे हैं। धनबाद के भाजपा सांसद को वे सर्व अवगुण संपन्न सांसद कहकर उनका मान बढ़ाते हैं। खुलकर लिखते हैं। कोई भय नहीं। भय तो उसे होता है, जिसे खोने का डर हैं। इन्हें क्या खोना है। ये जो भी लिखते हैं। वे सामान्य जनता के लिए लिखते हैं। इस बार उन्होने ‘मोदी है तो मुमकिन है’ लोकोक्ति का मजाक उड़ाया है। हो सकता है कि कुछ लोगों को ये बुरा लगे। लेकिन आम आदमी जो लाचार है, और जब उसे ठीक से जीने भी नहीं दिया जाये, तो उसे यह लोकोक्ति क्रूर मजाक की तरह दिखता है। आखिर रंजन झा, वरिष्ठ पत्रकार को इतना गुस्सा क्यों आया? पढ़िये उनके विचार …

“मोदी है तो मुमकिन है। धनबाद का बड़ा-बड़ा गुंडा, माफिया भाजपा में हैं। कोयला चोर है। राज सिन्हा जैसा निकृष्ट विधायक हैं। सर्व अवगुण संपन्न सांसद ढुल्लू महतो है। कभी इसको अच्छी भाषा में बात करते नहीं देखा। अब किसी को कोई डर नहीं। गृहमंत्री अमित शाह ढुल्लू के पीछे मजबूती से खड़ा है। भाजपा विधायक दल के नेता बाबू लाल मरांडी के साथ कोयला चोरी लाल बाबू सिंह का फोटो सोशल मीडिया पर वायरल है। उनका इस संबंध में कोई स्पष्टीकरण मैंने नहीं देखा।

लाल बाबू एंड कंपनी ने सीबीआई के अफसरों को खदेड़-खदेड़ कर मारा। कोई इस गुंडे का बाल बांका नहीं कर सका। इसकी भाजपा में गहरी पैठ है। मैं समझता था मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भले आदमी हैं। मामा। कैसा मामा? वह तो लाल बाबू सिंह के कान में सार्वजनिक मंच पर फुसफुसाते देखें गये। इस निर्लज्जता से अच्छा तो जेएमएम वाले हैं जो बड़े -बड़े आदर्शों की बात नहीं करते। चोरी-चकारी पर झूठा प्रवचन नहीं देते।

‎यह स्थापित हो चुका है कि भाजपा चोरकटों, वसूलीबाजों का झारखंड में एक सुनियोजित गिरोह है। जनसेवा का आडंबर है, दिखावा है। भाजपा से सरकार की दलाली में पिछले रास्ते से लगे नपुंसक विधायकों से लाख गुना अच्छे विधायक जय राम महतो हैं। उनकी विधानसभा में गर्जना बताती है वह जनता के वास्तविक प्रतिनिधि हैं। ‎जब आम आदमी परेशान होता है तो पता चलता है मोदी है तो मुमकिन है का अर्थ क्या है? बकवास है। जनता के जले पर नमक छिड़कने जैसा है।

‎हीरापुर की बैंक आफ इंडिया शाखा को बचाने के लिए एसपी रणधीर वर्मा के साथ एक नागरिक भी शहीद हुए पर वहां तो कोई आदमी दिखता ही नहीं। सभी चिरकुट मिलते हैं। एक चिरकुट है वहां का बड़ा मैनेजर। वह आज गायब मिला। दूसरा, चिरकुट मिला उससे छोटा मैनेजर। बैंक को तथाकथित हेल्प लाइन नंबर के माध्यम से पांच दिन पहले मेल भेजा था। जिसमें एक सत्तर+ चलने -फिरने से लाचार पेंशनर की व्यथा बताई थी। पेंशनर की कमर की हड्डी टूटी हुई है। मुश्किल से बाथरूम जा पाती है। उस मेल का बैंक ने कोई जवाब नहीं दिया। क्यों दे। कौन क्या बिगाड़ा लेगा। इसी गुमान में वह बोल जाता है, सब आपके ही पक्ष में होगा। तो ?

‎बैंक तो ग्राहकों को उत्तम सेवा देने का दावा करता है। सब ग्राहक के पक्ष में नहीं होगा तो क्या आपके कमीशन खाने के अनुकूल होगा। वह सलाह देता है, क्यों नहीं आधार से पैसा निकलवाते हैं। यानी कमीशन का धंधा। शर्म भी नहीं आई चिरकुट को। बाद में बताया, बैंक से आदमी को बुला कर लें जाइएगा तो वह भी ठेपा लेकर पैसा दे देगा। मगर, इनसे पूछे लीजिएगा कि पैसा देगा कि नहीं। अजब, यह कौन कानून हैं, नियम है? छोटे चिरकुट साहब ही थे सबकी सुनने वाले। बैंक में महज़ दस-पंद्रह लोग थे।

सब छोटे चिरकुट साहब के पास जाते। उनको चिरकुट कुछ भी बोल कर टहलाता। लोग पूछते बड़े वाले कहां हैं तो एक बार बोला मीटिंग में हैं। फ़िर बड़बड़ाया, आनलाइन मीटिंग है। मतलब बड़े वाले कक्ष छोड़ कर फांकीबाजी कर रहे हैं। यह तो हाल है बड़े वाले का। छोटे वाले, एक ग्राहक को कह रहे हैं कि आपका कंबाइंड बिल्डिंग शाखा से आधार लिंक है। मामला सुकन्या योजना का है। उनके झूठ की पोल बगल में बैठी मैम खोल लेती है। बताती है कि ऐसा कुछ भी नहीं है। मतलब कि यह बैंक जैसे-तैसे चल रहा है। इसका कोई माई-बाप नहीं है। मोदी है तो मुमकिन है।”

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