संपन्न, विकसित और समर्थ भारत के निर्माण का संकल्प लेकर घर-घर पहुंचने लगे संघ के स्वयंसेवक
आज मेरी नींद ही टूटी। दरवाजे पर किसी के दस्तक से। दरवाजा खोला तो सामने संघ के दो स्वयंसेवकों को मुस्कुराते हुए दोनों हाथ जोड़े नमस्ते करते हुए पाया। उनके साथ बहुत सारे स्वयंसेवक थे। जो हमारे मुहल्ले में अन्य के दरवाजों पर दस्तक दे रहे थे और मुहल्ले के निवासियों को नमस्ते करते हुए उन्हें पर्चियां थमा रहे थे। मुझे इन स्वयंसेवकों को देख, यह समझते देर नहीं लगी कि ये किसी विशेष कार्य के लिए निकल पड़े हैं।
जब मेरे हाथ में उनके द्वारा दी गई पर्चियां मिली, तो उन पर्चियों में ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, संगठन व सेवा के 100 वर्ष, आओ बनाएं समर्थ भारत’ बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था। जब इन स्वयंसेवकों को मैंने कहा कि आइये बैठिये, चाय पीकर जाइये। तब उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा कि फिर कभी, आज कुछ लक्ष्य ज्यादा है। ज्यादा से ज्यादा घरों में सम्पर्क करना है। चूंकि सुबह का समय है। सभी लोग मिल जायेंगे। ज्यादा समय बीतने पर फिर वे अपने काम-धाम में निकल जायेंगे और हम अपने लक्ष्य को पाने में विफल रहेंगे।
ऐसे भी कहा जाता है कि संघ का स्वयंसेवक, जो ठान लेता है। उसे कर के ही विश्राम लेता है। अगर किसी को इस बात पर विश्वास नहीं होता हो, तो आज के ही दिन अयोध्या में भगवान श्रीराम के मंदिर में ध्वजारोहण का कार्यक्रम देख लेना चाहिए। जहां दो स्वयंसेवकों एक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और दूसरे सरसंघ चालक मोहन भागवत ने देश किधर जायेगा। उसकी आधारशिला रख दी। आज पूरा विश्व देख लिया कि संघ क्या है और क्या कर सकता है?
संघ के स्वयंसेवकों के कथनानुसार, संघ किसी से द्वेष नहीं करता। वो अपना काम करता है। उसका मूल ही है – राष्ट्र निर्माण। आप भले ही संघ पर दोषारोपण करते रहे। लेकिन वो उन दोषारोपणों पर भी ध्यान नहीं देता और न ही इन बेकार की बातों में उलझकर अपना समय बर्बाद करता है। उसका लक्ष्य सामने होता है। चाहे देश में प्राकृतिक आपदा हो या अन्य आसुरी शक्तियों द्वारा देश को विचलित करने का प्रयास, सभी का इलाज करना संघ जानता है।
हमने देखा कि संघ के स्वयंसेवकों ने जो हमें पर्चियां दी। उन पर्चियों में संघ की स्थापना, व्यक्ति निर्माण की कार्यपद्धति, संघ कार्य का विस्तार, सेवा कार्य, पंच परिवर्तन जिसमें सामाजिक समरसता, पर्यावरण संरक्षण, कुटुम्ब प्रबोधन, स्वआधारित जीवन व नागरिक कर्तव्य बोध का संक्षिप्त विवरण दिया गया था। साथ ही यह आवाहन भी किया गया था कि हम देशवासियों को अपने देश के लिए आगे क्या करना है? साथ ही गुरुजी के वक्तव्य दिये गये थे – संपूर्ण व शक्तिशाली हिन्दू समाज यहीं हम सबका एकमात्र श्रद्धास्थान होना चाहिए। जाति, भाषा, प्रान्त, पक्ष, ऐसी सभी विचारों को समाज भक्ति के बीच में नहीं आने देना चाहिए।
