अपनी बात

रांची प्रेस क्लब के चुनाव में बदस्तूर फल-फूल रही ‘ले-दे’ की संस्कृति, सदस्यता शुल्क जमा करने के एवज में वोटों की खरीद-बिक्री शुरु

जब प्रभात खबर डिजिटल और दैनिक भास्कर डिजिटल में काम कर चुके एवं वर्तमान में नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ स्टडीज एंड रिसर्च इन लॉ, रांची में पब्लिक रिलेशन ऑफिसर पद पर कार्यरत पंकज पाठक ने सोशल साइट फेसबुक पर निम्नलिखित बातें पोस्ट की थी, तो बहुत सारे लोगों के कान खड़े हो गये थे। सभी ने यह सोचना शुरु कर दिया, साथ ही कुछ कहने लगे कि अगर ऐसा होता है तो यह पत्रकारिता का इससे बड़ा और घिनौना चेहरा दूसरा कोई और नहीं हो सकता। आखिर वो पोस्ट क्या थी? पंकज पाठक ने 16 नवम्बर को अपने फेसबुक पर ये पोस्ट किया था, इसे आपको भी पढ़ना चाहिए।

“बिहार चुनाव खत्म हुए, अब झारखंड में रांची प्रेस क्लब का चुनाव दिसंबर में होना है। कई प्रत्याशी मैदान में हैं। कई ने प्रचार भी तेज कर दिया है, फोन मैसेज आने शुरू हो गये हैं। अभी चुनाव प्रचार की धार और तेज होगी। इस बीच बकायदारों की एक लिस्ट भी जारी हुई है। उनसे कहा गया है कि समय से यह पैसा भर दीजिए नहीं तो आप वोट नहीं दे पायेंगे।

कभी- कभी सोचता हूं बिहार, झारखंड सहित कई राज्यों में चुनाव हुए, उसमें जीतने वाली पार्टियों की रणनीति क्या रही? जवाब मिलता है, जनता को सीधा लाभ, उनके खाते में पैसे ट्रांसफर किए गये। कहीं मईंया सम्मान के नाम पर, तो कहीं व्यापार के नाम पर। अब चुनाव आयोग भी इस तरह के पैसे बंटवारे पर मौन है। फिर दिक्कत क्या है…

अगर यह फार्मूला हिट है, तो क्या प्रेस क्लब के चुनाव में किसी उम्मीदवार और ग्रुप को यह जिम्मेदारी नहीं उठानी चाहिए। कई लोग तो कह रहे हैं हमारा बकाया चुकाओ और वोट पाओ, अगर यह फार्मूला काम कर गया तो प्रचार धरे के धरे रह जायेंगे। सवाल है कि इतनी फंडिंग करेगा कौन और क्यों?

इस सवाल का जवाब तो उम्मीदवार ही दे सकते हैं कि फंडिंग कहां से आयेगी, मैं इतना जरूर कह सकता हूं कि प्रेस क्लब का अध्यक्ष. सचिव. कोषाध्यक्ष सहित किसी भी पद पर होना आपको नई पहचान के साथ-साथ कई तरह के व्यक्तिगत लाभ तो देता ही है…. बाकी तो चुनाव तक चर्चा चलती रहेगी। और हां, फंड करने वालों की कमी भी नहीं है, सूत्र बताते हैं…”

जब पंकज पाठक ने ये पोस्ट किये थे, तो हो सकता है कि रांची प्रेस क्लब के कई सदस्यों का ध्यान इस ओर नहीं गया होगा। लेकिन सच्चाई तो अब खुलकर सामने आने लगी है। हालांकि जो लोग ले-दे की इस संस्कृति को फौलो कर रहे हैं। वे सामने तो कुछ नहीं बोल रहे। लेकिन इस ले-दे की संस्कृति को अपनाने से गुरेज भी नहीं कर रहे हैं।

विद्रोही24 ने जब इस बात का पता लगाने की कोशिश की कि क्या पंकज पाठक की बातों का रांची प्रेस क्लब में हो रहे चुनाव पर असर है, तो पता चला कि कई लोग जो चुनाव लड़ने को तैयार है और अपनी जीत सुनिश्चित करना चाहते हैं। उन्होंने ऐसे लोगों की लिस्ट तैयार की है, जिनका रांची प्रेस क्लब के पास सदस्यता शुल्क बकाया है। ये लोग उनकी सदस्यता शुल्क जमा करने को उतावले हैं और सदस्य भी इसके बदले उन्हें उपकृत करने की हामी भर रहे हैं। कुछ ने तो इसमें बाजी भी मार ली है। इसका फायदा भी उठा लिया है और कुछ इसका लाभ उठाने के लिए कतार में हैं।

इसी बीच पत्रकारिता पेशे में ईमानदारी और शुचिता से जुड़े लोगों का कहना है कि रांची प्रेस क्लब के चुनाव में इस प्रकार का शुरु हुआ कुकर्म कोई नया नहीं हैं। ये पहले से चलता रहा है। अब चूंकि यह व्यापक और वृहद रूप में सामने आया है, जो खतरनाक है। इससे साफ पता चलता है कि पत्रकारिता पेशे को कलंकित करने के लिए कुछ लोगों ने बीड़ा उठा लिया है और ये तब तक इस पेशे को कलंकित करते रहेंगे, जब तक उनका मतलब सधता रहेगा।

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