धर्म

आप स्वयं को शरीर नहीं आत्मा समझें, आप ईश्वर के प्रतिबिम्ब के रूप में बने हैं, इसलिए आपको हर हाल में ईश्वर में ही एकाकार होना हैः स्वामी शुद्धानन्द

आप शरीर नहीं, आत्मा हैं। आप ज्ञान हैं। आप प्रकाश हैं। आप शांति हैं। आप प्रेम हैं। आप स्वप्न शरीर में रहते हैं। आप नित्य शाश्वत ब्रह्म हैं। आप ईश्वर के प्रतिबिम्ब के रूप में बने हैं। स्वयं को कभी छोटा मत समझिये। अपने को शरीर समझने की भी कोशिश मत करिये। जैसे ही खुद को शरीर के रूप में समझेंगे, आप की चेतना निम्न स्तर को पहुंच जायेगी। स्वयं को आत्मा के रूप में प्रतिष्ठित करिये। उक्त बातें आज रांची के योगदा सत्संग आश्रम में आयोजित रविवारीय सत्संग को संबोधित करते हुए स्वामी शुद्धानन्द गिरि ने कही।

उन्होंने कहा कि स्वयं को हमेशा ध्यान में केन्द्रित रखिये। हमेशा ये भाव रखिये कि आपको हर हाल में ईश्वर चाहिए। ईश्वर पाने का प्रयास उस बाल हठ की तरह होना चाहिए, जैसे रोता हुआ बच्चा हर हाल में अपनी मां को चाहता है और जैसे ही उसे मां मिल जाती हैं, वो प्रसन्न हो उठता है। ठीक उसी प्रकार आपकी भी चेष्टा ईश्वर को पाने के लिए बाल हठ की तरह होनी चाहिए। ईश्वर पाने का प्रयास निरन्तर करते रहिये, ये प्रयास किसी भी हाल में शिथिल नहीं पड़नी चाहिए, प्रयास होगा तो ईश्वर मिलेंगे। शायद इसीलिए लाहिड़ी महाशय कहा करते थे कि बनत-बनत बन जाये।

स्वामी शुद्धानन्द गिरि ने कहा कि ध्यान करने के पूर्व शरीर और मन को उस ओर तैयार करना जरुरी होता है। ठीक उसी प्रकार जैसे उड़ान भरने के पहले एरोप्लेन में सवार यात्रियों को एरोप्लेन के कर्मचारी पहले तैयार करते हैं। ध्यान करने में सबसे पहले मेरुदंड को सीधा करना, मन के अंदर चल रही बातों को बाहर करना आदि बातें प्रमुख हैं।

उन्होंने कहा कि सबसे कठिन आसन शवासन है। स्वयं को आराम की मुद्रा में ले आना इतना आसान नहीं होता। वर्तमान में रहने की आदत डालना इतना आसान नहीं हैं। उन्होंने कहा कि अगर जीवन को सुंदर बनाना है तो आप ईश्वर के साथ एकाकार होना सीखिये। दैविक योजना में खुद को लगाइये। ये दैविक योजना आनन्द को देनेवाला है। केवल कल्पना करने  से कुछ नहीं होगा। इसमें स्वयं को लगाना होगा।

उन्होंने दया माता से जुड़ी एक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि दया माता सर्वप्रथम आश्रम से 19 नवम्बर 1931 को जुड़ी थी। कुछ वर्षों यानी छः वर्षों के बाद हम जल्द ही दया माता के आश्रम से जुड़ने का 100 वर्ष मनायेंगे। दया माता से गुरुजी यानी परमहंस योगानन्द ने बार-बार भारत जाने को कहा था। दया माता जी अपने जीवनकाल में पांच बार भारत आई। जब पहली बार उनका 1958-59 में भारत दौरा हुआ, तो यहां आकर वो बहुत दुखी हुई। क्योंकि आश्रम की स्थिति उस वक्त बहुत ही दयनीय थी। उन्होंने सबसे पहले आश्रम की स्थिति सुधरवाई और आज तो आश्रम की स्थिति ऐसी है कि क्या कहने।

स्वामी शुद्धानन्द ने कहा कि स्वाध्याय के तीन चरण है। पहला – श्रवण, दूसरा- मनन और तीसरा – निदिध्यासनम्। श्रद्धावान भक्त गुरु के सान्निध्य में रहकर स्वाध्याय करता हुआ, अपने जीवन को निश्चय ही परिवर्तित कर लेता है। दया माता कहती थी कि उन्होंने खुद को चार मार्गों से ले चलकर ईश्वर को प्राप्त किया। वो मार्ग थे। पहला -प्रेम, दूसरा – सेवा, तीसरा – साहस और चौथा – विश्वास। दया माता कहती थी कि परमहंस योगानन्दजी बार-बार कहा करते थे कि केवल प्रेम ही उनके स्थान को प्राप्त कर सकता है।

उन्होंने कहा कि दया माता जी कहती थी कि जब वो भारत भ्रमण के दौरान काठगोदाम के पहाड़ियों में परिभ्रमण कर रही थी, तो उस वक्त महावतार बाबाजी के माध्यम से उन्हें यही ज्ञात हुआ कि महावतार बाबाजी के शब्दानुसार उनकी प्रकृति ही प्रेम की है। वे कहा करते थे कि केवल प्रेम से ही पूरे विश्व को परिवर्तित किया जा सकता है। आगे दया माता कहती है कि माया से बचना कठिन है। लेकिन यह भी सत्य है कि ईश्वर के आगे खुद को आत्मसमर्पण कर देने से माया से बचना सरल हो जाता है।

स्वामी शुद्धानन्द ने आगे कहा कि सुप्रसिद्ध तमिल कवि तिरुवल्लुवर कहा करते थे कि भवसागर से वहीं पार कर सकता है, जो खुद को ईश्वर के प्रति समर्पित कर देता है। उन्होंने कहा कि यही प्रेम आपकी सेवा में भी दिखनी चाहिए, जितना आप सेवा में लीन रहेंगे। आप आनन्द को अनुभव करेंगे। बिना साहस के ईश्वर की प्राप्ति नहीं हो सकती और इसके लिए उसके साथ विश्वास को भी होना जरूरी हैं।

उन्होंने सभी से कहा कि आप अपनी आदतों को बदलें। सुबह-शाम हर हाल में ध्यान करें। सत्संग- सामूहिक ध्यान में अवश्य भाग लें। ईश्वर को प्राप्त करने के लिए आपको स्वयं दृढ़ इच्छा जागृत करनी पड़ेगी, बिना दृढ़ इच्छा के यह संभव नहीं। जब आप भगवान से प्रेम करेंगे, तो भगवान का प्रेम अपने आप आपका हो जायेगा। फिर आप स्वयं आनन्द में आ जायेंगे। बाहरी शक्तियां कुछ भी नहीं कर पायेंगी। हमेशा याद रखिये कि आपको हर हाल में ईश्वर ही चाहिए, आप इसी के लिए इस दुनिया में आये हैं।

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