अपनी बात

विद्रोही24 की बातों पर घाटशिला की जनता ने लगाई मुहर, कल्पना व हेमन्त ने मिलकर प्रदेश भाजपा के सभी धुरंधरों को चटाई धूल, झामुमो प्रत्याशी सोमेश चुनाव जीते, भाजपा प्रत्याशी बाबूलाल को मिली करारी हार

घाटशिला विधानसभा उपचुनाव के परिणाम भी अब आ चुके हैं। झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी सोमेश चंद्र सोरेन भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी व पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन को भारी मतों से पराजित कर दिया है। यह सीट पूर्व मंत्री रामदास सोरेन के निधन के कारण खाली हुई थी। जिसे भाजपा ने अपनी प्रतिष्ठा की सीट बना ली थी। इस सीट को हर हाल में जीतने का प्रण भाजपा ने कर लिया था। लेकिन कल्पना सोरेन और हेमन्त सोरेन की जोड़ी के आगे इनकी एक नहीं चली।

आश्चर्य की बात है कि इस सीट पर जीत दर्ज करने के लिए भाजपा की ओर से पूर्व मुख्यमंत्रियों का समूह जैसे बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा, रघुवर दास, मधु कोड़ा व चम्पाई सोरेन लगे थे। 40 स्टार प्रचारकों का समूह लगा था। केन्द्रीय मंत्री अलग से यहां चुनाव प्रचार कर रहे थे। दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री तक को यहां चुनाव प्रचार के लिए लाया गया। यहीं नहीं भाजपा के सारे विधायक इस विधानसभा सीट पर एड़ी-चोटी एक किये हुए थे। यहां तक की प्रत्येक बूथों पर भाजपा का एक-एक पदाधिकारी लगा हुआ था। उसके बावजूद भी घाटशिला सीट पर ये कुछ भी कमाल नहीं दिखा पाये।

लेकिन इन सब से अलग हेमन्त सोरेन और कल्पना सोरेन की जोड़ी ने घाटशिला की जनता पर अपनी पकड़ बनाये रखी। जनता ने भी अपने आशीर्वाद और प्रेम से इन्हें अलग होने नहीं दिया। यही कारण था कि ये दोनों नेता जिस ओर जाते लोग उन्हें सुनने और देखने के लिए उमड़ पड़ते, जबकि भाजपा की ओर से नेताओं का भारी हुजूम होने के बावजूद वो चीजें देखने को नहीं मिले, जो पार्टी के प्रत्याशी की जीत के लिए जरुरी होते हैं। जिसका परिणाम यह हुआ कि भाजपा के उम्मीदवार बाबूलाल सोरेन को भारी हार का सामना करना पड़ा।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो भाजपा झारखण्ड में नेतृत्वविहीन व श्रीहीन हो गई है। इनके नेताओं में वो तेज नहीं रहा। जिसके बल पर वे किसी को जीता सकें। ये खुद ही अपनी सीट पर जीत दर्ज करने-कराने के लिए दिल्ली की बांट जोहते हैं। सच्चाई यह है कि अगर नरेन्द्र मोदी की इन पर कृपा न हो तो ये अपनी सीट भी नहीं बचा सकें। जबकि इसके विपरीत कल्पना सोरेन और हेमन्त सोरेन की झारखण्ड में वो पकड़ हैं। जिसकी आप कल्पना नहीं कर सकतें।

आश्चर्य की बात है कि ये पकड़ समय के साथ रफ्तार पकड़ती जा रही हैं और लोग हेमन्त और कल्पना पर अपने विश्वास की पकड़ को और मजबूत कर रहे हैं। आश्चर्य यह भी है कि भाजपा द्वारा इन पर लगाये गये आरोपों का भी आम जनता पर कोई असर नहीं पड़ता। शायद राज्य की जनता जानती है कि भाजपा के नेता कितने दूध के धुले हुए हैं।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो घाटशिला का चुनाव परिणाम बताता है कि आनेवाले दस सालों में झामुमो और हेमन्त के राजनीतिक सेहत पर कोई असर नहीं होने जा रहा हैं, क्योंकि जिनका प्रभाव पड़ना है। वे स्वयं अस्वस्थ होकर जनता की नजर में कब के मृतप्रायः हो गये हैं।

राजनीतिक पंडित तो साफ कहते हैं कि आखिर हेमन्त सोरेन को कौन चुनौती देगा? नेता प्रतिपक्ष/प्रदेश अध्यक्ष/पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी या कार्यकारी अध्यक्ष आदित्य साहू या अर्जुन मुंडा या रघुवर दास या मधु कोड़ा, जिनका कोई राजनीतिक आधार ही नहीं हैं या हाल ही में भाजपा में आये पूर्व मुख्यमंत्री चम्पाई सोरेन, जो कल तक हेमन्त सोरेन और शिबू सोरेन की डोर पकड़कर राजनीतिक चमकाई और अब स्वयं को धुरंधर मानने लगे। अगर ये सचमुच धुरंधर होते तो घाटशिला से यह चुनाव परिणाम तो नहीं आना चाहिए था। झामुमो प्रत्याशी सोमेश चंद्र सोरेन जीते, तो साफ है कि हेमन्त और कल्पना की राजनीतिक लोकप्रियता में कही से कोई कमी नहीं आई हैं और आज भी झारखण्ड की जनता को कहने में कोई गुरेज नहीं कि उनका हीरो आज भी हेमन्त सोरेन है।

राजनीतिक पंडित तो साफ कहते हैं कि पहले भाजपा को झारखण्ड में राजनीतिक भूमि तलाश करनी चाहिए, क्योंकि वो अपनी राजनीतिक भूमि कब की खो चुकी है। जिसका प्रभाव यह है कि इनकी सभाओं या इनके द्वारा चलाये जानेवाले आंदोलनों में आम जनता की सक्रियता नहीं रहती। जबकि इसके उलट झामुमो में वो हर चीजें देखने को मिलती है, जो एक राजनीतिक दल को होना चाहिए। हेमन्त व कल्पना सोरेन ने अपने कार्यकर्ताओं को इस प्रकार संगठित और बलशाली किया है कि आज झामुमो का कार्यकर्ता हर जगह भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर भारी पड़ रहा हैं।

अगर ऐसा नहीं होता तो इतनी खुद को सशक्त बतानेवाली टीम भाजपा को इस प्रकार से मुंह की खानी नहीं पड़ती। हार का सामना करना नहीं पड़ता। घाटशिला का चुनाव परिणाम इस बात का साफ संकेत हैं कि आनेवाले वर्षों में झामुमो को कम से कम झारखण्ड में किसी से कोई चुनौती नहीं मिलने जा रहा, क्योंकि आम जनता ने इन्हें खुलकर आशीर्वाद दे रखा है। इसलिए विद्रोही24 ने पहले ही राजनीतिक आकलन कर 11 नवम्बर को मतदान के दिन ही घोषणा कर दी थी कि घाटशिला में झामुमो की जीत पक्की है और आज वो सिद्ध भी हो गई।

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