सभी के लिए सरल व सहज भाव से उपलब्ध रहनेवाले व मानवीय मूल्यों के लिए समर्पित डा. राघवेन्द्र नारायण शर्मा हुए सेवानिवृत्त
डा. राघवेन्द्र नारायण शर्मा गत 31 अक्टूबर 2025 को स्टेट रिप्रोडक्टिव चाइल्ड हेल्थ आफिसऱ के पद से सेवानिवृत्त हो गये। डा. राघवेन्द्र नारायण शर्मा रांची के श्रद्धानन्द रोड में निवास करते हैं। स्वभाव से मृदुभाषी, सर्वदा चेहरे पर मुस्कान और हर हाल में जनसामान्य के लिए सेवारत रहनेवाले डा. राघवेन्द्र नारायण शर्मा के सेवानिवृत्त होने का समाचार जैसे ही उनके चाहनेवालों को मिली। सभी का हृदय धक सा कर गया। क्योंकि राजकीय सेवा के दौरान जनसामान्य लोगों के लिए सहज रूप से उपलब्ध रहनेवाला, मानवीय मूल्यों से ओत-प्रोत रहनेवाला व्यक्ति/चिकित्सक अब लोगों को उस जगह उपलब्ध नहीं होगा, जहां वे हरदम दिख जाते थे।
डा. राघवेन्द्र नारायण शर्मा बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा जब पहली बार बहाली निकाली गई। उस परीक्षा में सफलता प्राप्त कर 11 मार्च 1988 को प. चम्पारण के सिकटा स्थित प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र में चिकित्सा पदाधिकारी के रूप में नियुक्त हुए थे और यहां से जो इनकी यात्रा शुरु हुई। वो 31 अक्टूबर 2025 को समाप्त हुई, जब वे स्टेट रिप्रोडक्टिव चाइल्ड हेल्थ आफिसर के पद से सेवानिवृत्त हुए।
इस बीच में कभी प्रा. स्वास्थ्य केन्द्र अनगड़ा में चिकित्सा पदाधिकारी, कभी आईसीडीएस के प्रोजेक्ट आफिसर के रूप में बसिया गुमला, राजभवन, झारखण्ड विधानसभा, मोडिफाइड कुष्ठ निवारण केन्द्र नामकुम, बिरसा मुंडा केन्द्रीय कारा आदि में योगदान दिया। कई वर्षों तक जमशेदपुर में जिला यक्ष्मा पदाधिकारी, उसके बाद रांची में एक वर्ष तक एसीएमओ, फिर उपनिदेशक स्वास्थ्य, क्षेत्रीय उपनिदेशक दक्षिण छोटानागपुर का अतिरिक्त प्रभार भी संभाला।
विद्रोही24 से बातचीत के क्रम में वे बताते हैं कि जब रांची के अनगड़ा में चिकित्सा पदाधिकारी के रूप में वे नियुक्त हुए थे। तब 1994 में वहां डायरिया का प्रकोप हुआ था। पूरे अनगड़ा में डायरिया ने महामारी का रूप धारण कर लिया था। उस दौरान उन्होंने वहां ड्रग डिपो बनाये थे। जल्द ही वहां डायरिया पर उन्होंने अन्य चिकित्सकों की सहायता से उस पर नियंत्रण पा लिया था। जिसकी ग्रामीणों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की थी। पंचायत समिति के लोगों ने उन्हें इसके लिए प्रशस्ति पत्र भी दिया था। वे बताते हैं कि अनगड़ा में ही उस वक्त विलुप्त हो रही आदिवासी जनजाति बिरहोर समुदाय के 97 लोग वहां रहा करते थे। जिनका वे हमेशा बेहतर इलाज कर उन्हें विभिन्न रोगों से बचाने का कार्य करते थे।
वे बताते है कि एक बार जब वे बसिया गुमला में बाल विकास समेकित परियोजना से जुड़े थे। तब वहां उन्होंने पाया कि वहां कोई व्यवस्था ही नहीं थी। उनके यहां पहुंचने के पहले और बाद में कोई पोस्टिंग तक नहीं हुई थी। फिर भी वे सेवा देते रहे। गांव में कैम्प लगाकर इलाज करते थे। वे बताते हैं कि उनकी इस सेवाभाव को देखकर यूनिसेफ के चीफ प्रोजेक्ट आफिसर डा. एम आर सर्वाडे ने स्टेट ट्रेनर के रूप में प्रशिक्षण दिलवाने के लिए उनका चयन किया था। बाद में वे स्टेट ट्रेनर भी बने।
डा. शर्मा कहते हैं कि जब वे रांची के बिरसा केन्द्रीय कारागार में नियुक्त थे। तब उन्होंने कैदियों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए बहुत कुछ किये। जैसे तीन हजार कैदियों को कैम्प मोड में दस दिनों के अंदर ही सभी का हेल्थ प्रोफाइल तैयार किया। आउटडोर रजिस्टर तैयार करवाये। जो ड्रग परचेज जहां-तहां से हुआ करते थे। उसे बंद करवाकर नियमानुकूल पद्धति से दवाएं कारागार में आये, इसकी व्यवस्था की।
डा. राघवेन्द्र नारायण शर्मा बताते हैं कि वे हालांकि सेवानिवृत्त हो चुके हैं। फिर भी वे चाहेंगे कि वे लोगों की अपनी ओर से बेहतर सेवा देते रहे। ताकि उनका जीवन पूर्णतः सफल हो सकें। विद्रोही24 की डा. राघवेन्द्र नारायण शर्मा से उस वक्त मुलाकात हुई। जब डा. राघवेन्द्र नारायण शर्मा झारखण्ड विधानसभा में कार्यरत थे। विद्रोही 24 ने पाया कि वे अपने कार्यों के प्रति अन्य चिकित्सकों की अपेक्षा ज्यादा सचेत रहते थे। उनके कारण किसी को असुविधा हो। उन्हें अच्छा नहीं लगता था। कभी-कभी जब किसी को दिक्कत होती, वे स्वयं खुद को असहज महसूस करते। यही कारण रहा कि जब विद्रोही24 को उनके अवकाश प्राप्त करने की खबर मिली। विद्रोही24 उनके घर तक पहुंच गया और उनकी हाल-चाल ली।

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