अपनी बात

रांची के एक होटल में आज एक ओर जदयू नेता हरिवंश के हाथों भाव-विह्वल होते, पुरस्कृत होते श्रीनिवास जैसे लोग थे तो दूसरी ओर इन सबसे दूरियां बनाते फैसल, चंदन और श्याम किशोर जैसे पत्रकार भी थे

रांची प्रेस क्लब और आरबीएस वैदिक ट्रस्ट द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित झारखण्ड जर्नलिज्म अवार्ड्स आज उन लोगों को दे दिये गये। जो इस अवार्ड्स को पाने के लिए लालायित थे। जिन्होंने ऐसे ही अवार्ड्स को पाने के लिए जीवन धारण किया है। दूसरी ओर ऐसे लोग भी थे, जिन्हें इस कार्यक्रम में सम्मानित होने के लिए बुलाया तो गया था, पर उन्होंने इस कार्यक्रम से यह कहकर दूरियां बनाई कि उन्होंने पत्रकारिता कार्य इसलिए नहीं किया था कि वे ऐसे पुरस्कारों के लिए नामित हो और चर्चा में आएं।

रांची के होटल रेन ड्यू में आयोजित इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए जनता दल यूनाइटेड, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और झारखण्ड मुक्ति मोर्चा आदि के नेताओं को रांची प्रेस क्लब और आरबीएस वैदिक ट्रस्ट के लोगों ने इनके आवास/कार्यालय जाकर गुहार लगाई थी। जिस गुहार को देखकर इन नेताओं ने अपने स्वभावानुसार आकर इन दोनों संस्थाओं को उपकृत किया और एक तरह से आश्वासन दिया कि वे जो भी करेंगे। उन नेताओं का आशीर्वाद हमेशा उन्हें मिलता रहेगा, ताकि उनका जीवन और उनकी पत्रकारिता फलती-फूलती रहे।

इन नेताओं को अपने बीच पाकर और इन नेताओं से पुरस्कृत होकर कई पुरस्कार पानेवाले पत्रकारों के पांव जमीन पर ही नहीं थे। वे स्वयं को ऐसा महसूस कर रहे थे। जैसे कि उन्हें भारत रत्न मिल गया हो। प्रभात खबर में कभी काम करनेवाले, कभी जेपी-जेपी जपनेवाले श्रीनिवास तो जनतादल यूनाईटेड के वरिष्ठ नेता व परमप्रिय नीतीश भक्त हरिवंश से पुरस्कृत होकर इतने भावविह्वल दिखे कि जैसे लगता हो कि उनका जीवन आज धन्य-धन्य हो गया हो।

लेकिन इसी कार्यक्रम में शामिल न होकर प्रभात खबर में कभी काम करनेवाले शकील अख्तर ने बता दिया कि उनकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं। उन्होंने कुछ दिन पहले ही विद्रोही 24 से बातचीत में कहा था कि वे कभी इस प्रकार के गेम में नहीं पड़ते। कई लोगों ने विद्रोही24 को बताया भी था कि शायद ही वो दो नवम्बर को अवार्ड लेने के लिए उक्त होटल में जाये। जहां इन लोगों ने अवार्ड देने की घोषणा की है। कई पत्रकारों ने यह भी कहा था कि जब शकील अख्तर जी ने अवार्ड पाने की इच्छा जाहिर ही नहीं की तो फिर उन्हें अवार्ड क्यों दिया जा रहा? आज शकील अख्तर का इस कार्यक्रम से दूरी बनाना साफ कर दिया कि उनकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं। वे इस प्रकार के अवार्ड्स को दूर से ही प्रणाम करते हैं।

इसी कार्यक्रम में आज श्याम किशोर चौबे, फैसल अनुराग और चंदन मिश्र को भी आना था। लेकिन इन तीनों वरिष्ठ पत्रकारों में किसी ने भी आने की जरुरत नहीं समझी। चंदन मिश्र ने विद्रोही24 से बातचीत में आज कहा कि वैसे तो वे आज रांची में नहीं हैं। लेकिन रांची में आज रहते भी तो उस कार्यक्रम में नहीं जाते। फैसल अनुराग ने कहा कि हमने पत्रकारीय कार्य इसलिए नहीं किया कि ऐसे-ऐसे अवार्ड्स से मैं अलंकृत होऊं। किसी पत्रकार ने अगर बढ़िया काम किया है, तो उसे ऐसे अवार्ड्स उसे प्रभावित नहीं कर सकते। उसके लिए तो जनता द्वारा मिला आशीर्वाद ही काफी है।

मतलब एक ओर ऐसी सोच और दूसरी ओर ऐसे अवार्ड्स को पाने की ललक पाले लोग बताने के लिए काफी है कि समाज में अगर पत्रकारिता को नीचे ले जानेवाले राजनीतिज्ञों/पत्रकारों/लोभ-लालच का बाजार जमानेवाले लोगों की एक लंबी शृंखला हैं तो उनके खिलाफ मजबूती से चट्टान की तरह खड़ा होने वाले लोगों की भी अनवरत शृंखला है। जिसे कोई हिला नहीं सकता।

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