अखबारों-चैनलों के मूर्खतापूर्ण आलेखों-बतकुचनों से स्वयं को दूर करें, महापर्व छठ के बारे में ज्यादा जानना है तो उम्रदराज वृद्ध माताओं से मार्गदर्शन प्राप्त करें, यही आपके और समाज के लिए हितकर होगा
महापर्व छठ शनिवार से प्रारंभ होने जा रहा है। शनिवार को नहाय-खा, रविवार को खरना, सोमवार को पहला अर्घ्य और मंगलवार को दूसरा अर्घ्य संपन्न होगा। इस महापर्व को लेकर अपनी आदत के अनुसार कई समाचार-पत्रों व कई चैनलों ने अपने मूर्खतापूर्ण आलेखों व बतकुचनों से छठव्रतियों और उनके परिवारों के दिमाग का दही बनाकर रख दिया है। आश्चर्य यह भी है कि कई छठव्रतियों का परिवार इन समाचार पत्रों और चैनलों के मूर्खतापूर्ण आलेखों-बहसों से प्रभावित होकर इस महापर्व का सत्यानाश भी करना शुरु कर दिया है। जो भारतीय संस्कृति का एक अनुपम व परमानन्द को देनेवाला महापर्व है।
सच्चाई यह है कि आजकल जिस अखबार या चैनल में जाइये। वहां के सर्वोच्च पद पर विद्वान न होकर धनपशु आकर बैठ गये। जिनका मूल कार्य हर पर्व का व्यवसायीकरण करना और उससे अपने अखबार व चैनल के लिए आर्थिक स्रोत तैयार करना है। इस चक्कर में अगर पर्व के मूल भावना का सत्यानाश ही क्यों न हो जाये, इसकी परवाह इन्हें नहीं हैं।
ठीक इसी प्रकार हर चौक-चौराहों पर तथाकथित पंडितों व ज्योतिषियों ने दुकानें खोल रखी हैं। जिनको धर्म के मूलस्वरुप से कोई मतलब नहीं। जिन्हें छठ पर्व या किसी अन्य पर्वं की महत्ता के बारे में एक अक्षर ज्ञान नहीं हैं। फिर भी वे किसी भी पर्व के बारे में इस प्रकार ज्ञान दे, दे रहे हैं, जैसे लगता है कि ये सीधे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से डिग्री लेकर बैठे हुए हो। इन मूर्खों ने अखबारों व चैनलों में कार्य करनेवाले महामूर्ख पत्रकारों के साथ मिलकर वो तिकड़ी बना रखी हैं, कि आनेवाले समय में लोग पर्व तो मना लेंगे। लेकिन उसके मूलस्वरूप को नहीं जानने के कारण अपने पापकर्मों से स्वयं का नाश तो करेंगे ही, समाज को भी ले डूबेंगे।
अब सवाल उठता है कि जब पूरा समाज ही विकृतियों का शिकार हो तो ऐसे में अब हम क्या करें? छठव्रती क्या करें? उनका परिवार क्या करें? उसका सीधा व सुंदर जवाब हैं कि सर्वप्रथम वर्तमान में छप रहे अखबारों व चैनलों से स्वयं को मुक्त करें। महामूर्ख पंडितों व ज्योतिषी जो आजकल हर चौक-चौराहों पर विद्यमान हैं। उनसे स्वयं को मुक्त करें और घर में या आपके परिवार में जो 80-90 वर्ष के उम्र की दादी मां हैं। उनके छठ के बारे में क्या अनुभव हैं। उन्होंने अपने पूर्वजों से छठ के बारे में क्या सीखा हैं? वो कैसे पूर्व में छठ व्रत संपन्न करती थी? उनके अनुभवों को शिरोधार्य करें और उनके बताये हुए मार्गों पर ही चलने का कार्य करें। निश्चय ही यही मार्ग आपके और आपके परिवार तथा समाज के लिए हितकारी है।
बाकी जो लोग आपको छठ के बारे में परोस रहे हैं। वे आपके दिमाग की दही बना रहे हैं। वे आपको मूर्ख बना रहे हैं। वे आपको गर्त में ले जा रहे हैं। दरअसल यह महापर्व छठ, ऐसे भी पूर्व में बुजुर्ग ही किया करते थे और उन बुजुर्गों की सेवा में सारा परिवार लग जाया करता था। लेकिन समय बदला। अखबारों-चैनलों ने इस छठ महापर्व को भी व्यवसायीकरण की चक्की में पिस डाला। जिसका परिणाम यह हुआ कि यह महापर्व बहुत तेजी से विदेशों का चक्कर काट लिया। लेकिन अपने मूल जड़ से कटता भी चला जा रहा है।
